‘माइंड योर ओन बिज़नेस’ कहते हुए आपने काफ़ी लोगों को सुना होगा, लेकिन ‘माइंड योर फ़ूड’ कहते हुए आपने केवल डायटीशियन या हेल्थ को लेकर सजग रहने वाले लोगों को ही सुना होगा, जबकि आपकी जीवन शैली में आपकी फ़ूड हैबिट से अधिक ज़रूरी कोई भी चीज़ नहीं है. आख़िर क्यों लोग कहते हैं कि आपको मन लगा कर और अच्छा ही खाना खाना चाहिए? आइए, इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं.
क्या है माइंडफ़ुल ईटिंग
हम अपनी जीवन शैली में अपने कपड़ों को सबसे ज़्यादा अहमियत देते हैं. मटिरीअलिस्टिक चीज़ों पर पैसे ख़र्च करने में हमें कोई परेशानी नहीं होती है, लेकिन बात जब अपने भोजन की आती है तो सबसे कम समय और बेहद लापरवाही से हम अपने भोजन को खाते हैं या बनाते हैं. कई बार काम की हड़बड़ी में हम नाश्ता नहीं करते हैं, कई बार लंच स्किप कर देते हैं. फिर भूख लगने पर हम ढेर सारा जंक खाने लगते हैं. माइंडफ़ुल ईटिंग आपकी इसी फ़ूड हैबिट को सुधारने की बात करता है. आप जब बेहद शांति से केवल खाने के बारे में सोचते हुए, सिर्फ़ खाने पर ध्यान देते हैं, उस वक़्त आपका किसी गैजेट्स या किन्हीं और चीज़ों पर ध्यान नहीं होता है और आप बहुत आराम से, खाना खा रहे होते हैं, उसे ही माइंडफ़ुल ईटिंग कहते हैं. आप क्या खा रहे हैं और कैसे खा रहे हैं, ये दो बातें ही आपकी ईटिंग हैबिट को परिभाषित करती है. इन दिनों, हर चीज़ में हड़बड़ी के चक्कर में, हम बस पेट भर लेने भर के लिए खाना खाते हैं, इससे काफ़ी परेशानी बढ़ती है. कई बार मोटापा, कब्ज़ की समस्या होती है. इसलिए आपको अपनी पाचन क्रिया को ठीक करने के लिए, अच्छा खाना खाने की और उस खाने को अच्छे तरीक़े से खाने की भी ज़रूरत होती है. आनंद लेकर, अच्छा खाना और समय पर खाना आपके लिए बेहद ज़रूरी है. अब आपको इसके लिए क्या करना होगा? आइए बताएं.
धीरे खाएं और बैठ कर खाएं
आप जितने भी फ़ूड एक्सपर्ट्स से बात करेंगे, हर कोई आपको यही राय देगा कि आपको एकदम आराम से बैठ कर खाना खाना चाहिए, भागते हुए नहीं. कभी भी खड़े होकर खाना खाना सही नहीं होता है. अपने कंप्यूटर या किसी भी गैजेट के साथ खाना खाने की ग़लती तो बिल्कुल न करें. आपके दिमाग़ को यह समझने का समय चाहिए होता है कि आप क्या खा रहे हैं. इसलिए धीरे-धीरे और बैठ कर खाना खाना सबसे अच्छा होता है.
चबा-चबा कर खाएं
खाना धीरे-धीरे और चबा-चबा कर खाना जरूरी है. एक बाइट या खाने के कौर या टुकड़े को कम से कम मुंह में 16 से 32 बार चबाने की कोशिश करनी चाहिए. तब जाकर यह आपके शरीर में सही तरीक़े से पहुंचता है और सही तरीक़े से पचता है. चबा के खाने से, आपके मुंह में जो लार यानी सलाइवा होता है, उससे खाने को पाचन क्रिया करने में आसानी होती है.
खाते वक़्त सिर्फ़ खाएं
जब आप खाना खाते हों, तो उस वक़्त न तो किसी से बातचीत करें न ही कुछ और के बारे में सोचें. यह बेहद ज़रूरी है कि आप खाना खाते हुए केवल खाने के बारे में ही सोचें. भले ही आप कितने भी तनाव में क्यों न हों, खाते वक़्त सिर्फ़ खाने के बारे में सोचें. इससे ही आपके शरीर में पोषक तत्व सही तरीक़े से पहुंच पाएंगे.
खाते वक़्त नेगेटिव बातें नहीं सोचें
आपको शायद यह बात पता न हो, लेकिन आप जब खाते हुए नेगेटिव बातें सोचते हैं तो कई बार इमोशनल ईटिंग के शिकार हो जाते हैं. फिर यह आपके लिए परेशानी का सबब बन जाता है. इसलिए खाते हुए यह भी एक शर्त है कि आपको नेगेटिव चीजों के बारे में हरगिज़ नहीं सोचना है.
भूख लगने पर ही खाएं
अपनी खाने की आदत में बदलाव करना भी बेहद ज़रूरी है. सबसे पहली बात तो ये है कि आप ज़बरदस्ती कुछ भी न खाएं, आपको अगर भूख लगी हो, तभी खाना खाने के बारे में सोचें. पहले अपनी भूख को अपने मन में ही एक से दस के स्केल पर नापें. अगर आपको 5 से ऊपर की भूख लगी है, तभी खाने के बारे में सोचें.
अपने खाने के पोषक तत्वों को जानें
यह भी एक ऐसी काम की आदत है, जिसे आपको तुरंत अपना लेना चाहिए. जैसा कि हमने ऊपर बताया आपको अनाप-शनाप खाने की आदत से ख़ुद को दूर तो रखना ही है, साथ ही आपको अपने खाने के पोषक तत्वों के बारे में भी जानने की कोशिश करनी है. अगर आपको जानकारी होगी तो आप उस आधार पर अपने शरीर और उसकी ज़रूरत को समझ कर खाना खाएंगे, जिससे आपको काफ़ी फ़ायदा होगा.