साल 2024 अपने अंत की तरफ बढ़ रहा है। ऐसे में आपके लिए यह जानना जरूरी है कि यह साल सेहत के लिहाज से कौन-से जरूरी अध्ययन लेकर आया है। साल 2024 में महिलाओं की सेहत से जुड़े कई सारी रिपोर्ट सामने आयी हैं। ऐसे में हम एक बार इस साल के कुछ जरूरी अध्ययन पर नजर डालते हैं, जिसे हमें अपनी डायरी में नोट कर लेना चाहिए। आइए जानते हैं विस्तार से।
सेहत को दें प्राथमिकता
न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट अनुसार ज्यादातर महिलाएं सुंदरता से अधिक अपनी सेहत को प्राथमिकता देती है। ज्ञात हो कि इस सर्वे में 2 हजार अमेरिकी महिलाओं से पूछा गया था कि वे सेहत और सुंदरता में किसे प्राथमिकता देते हैं। इसमें से लगभग 80 प्रतिशत महिलाओं ने कहा है कि सेहत उनके लिए सबसे जरूरी है। इस सर्वे के अनुसार 30 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि उन्हें अपनी मेंटल और इमोशनल हेल्थ सबसे अधिक जरूरी लगती है। वहीं दूसरी तरफ 30 प्रतिशत महिलाएं शारीरिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देती हैं। इस सर्वे के अनुसार लगभग 80 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि उनके लिए अंदरूनी स्वास्थ्य सबसे जरूरी है।
वर्क लाइफ में बैलेंस बड़ी चुनौती
एजुकेशन टेक्नोलॉजी कंपनी हीरो वायर्ड ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भारत में 70 प्रतिशत महिलाओं के लिए वर्क लाइफ को बैलेंस करना उनकी प्रोफेशनल ग्रोथ के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। बता दें कि इस सर्वे को 2 लाख से अधिक महिलाओं से बातचीत करके इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि महिलाओं को अक्सर अपनी वर्क लाइफ और निजी जिंदगी को लेकर हर दिन की चुनौती का सामना करना पड़ता है। ऐसे में वर्क लाइफ को बैलेंस करना महिलाओं के लिए हर दिन की परेशानी बन जाती है।
सोशल मीडिया का बुरा असर
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन ने अपनी रिपोर्ट में सोशल मीडिया के प्रभाव को लेकर निर्देश जारी किए हैं। यूनेस्को के अनुसार सोशल मीडिया यूजर्स को एल्गोरिथम के आधार पर मल्टीमीडिया सामग्री दी जाती है। इससे होता यह है कि यौन सामग्री से जुड़े हुए वीडियो के सामने आने का खतरा होता है। इसकी वजह से लड़कियों में मानसिक तनाव बढ़ जाता है। साथ ही इससे उनके आत्म सम्मान को भी ठेस पहुंचती है और खुद के शरीर के प्रति उनकी धारणा पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में यूनेस्को ने इस संबंध में कहा है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल के समय ऐसे उपाय खोजने चाहिए, जिसकी वजह से महिलाओं को मानसिक परेशानी न हो। जान लें कि यूनेस्को ने फेसबुक रिसर्च के जरिए युवा लड़कियों से बात की। वहां से उन्हें यह जानकारी हासिल की है कि उन्हें कई बार सोशल मीडिया के इस्तेमाल के दौरान खुद के शरीर को लेकर बुरा महसूस होता है।
दोस्ती से बुर्जुगों में स्वस्थ जीवन को मिलता है बढ़ावा
महिलाएं बढ़ती उम्र के साथ कई बार खुद को अकेला महसूस करती हैं। मिशिगन विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सर्वेक्षण के निष्कर्ष के अनुसार 50 साल और उससे अधिक उम्र के 90 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनके पास कम से कम एक करीबी दोस्त है और 75 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनके पास भी करीबी दोस्त हैं। इसके साथ 70 प्रतिशत लोगों का कहना है कि करीबी दोस्तों के साथ सेहत से जुड़ी चर्चा होती है। लेकिन जिनके पास दोस्त नहीं है, उनका स्वास्थ्य प्रतिशत खराब अवस्था में हें। सर्वे में शामिल 20 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उनका मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है, वहीं 18 प्रतिशत लोग अपने शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर चिंतित हैं।
फास्टिंग से बालों की ग्रोथ धीमी
जर्नल सेल में इस साल एक रिपोर्ट सामने आयी। जिसके अनुसार अगर आप इंटरमिटेंट फास्टिंग करती हैं, तो इसका बुरा असर आपकी बालों की सेहत पर पड़ सकता है। जर्नल सेल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार इंटरमिटेंट फास्टिंग का असर सेहत पर काफी बुरी तरह से पड़ता है। इस अध्ययन के अनुसार बालों की बढ़त पर इसका असर दिख सकता है। हालांकि शोधकर्ताओं ने चूहों पर इसके प्रभाव की जांच की। वहीं यह भी पाया गया है कि इंसानों पर इसका प्रभाव कम पड़ सकता है। अध्ययनकर्ताओं मे चूहों को इंटिमेट फास्टिंग पर रखा था। इसके फलस्वरूप चूहों को आंशिक तौर पर फिर से बाल आने मे ंअसुविधा हुई। यह भी सामने आया कि फास्टिंग करने वाले चूहों के बाल फिर से उगाने में 96 दिन लग गए। वहीं सामान्य चूहों के बाल 30 दिनों में ही उगने लगे। इसमें यह भी सामने आया कि बालों की कोशिकाओं में एनर्जी और ग्लूकोज बहुत ही कम मात्रा में पहुंचता है। इस अध्ययन में यह भी पाया गया है कि इस पूरे मामले में बालों के पोषण के लिए एंटीऑक्सीडेंट सहायता करता है। इससे हेयर ग्रोथ में मदद मिलती है।
सुबबूल के बीज से मधुमेह का इलाज
मधुमेह की बीमारी से पुरुषों के साथ महिलाएं भी पीड़ित रहती है। ऐसे में हाल ही में एक शोध सामने आयी है,जो यह बताती है कि सुबबूल के इस्तेमाल से आपको इंसुलिन को नियंत्रित किया जा सकता है।भारतीय वैज्ञानिकों ने इसकी खोज की है। उन्होंने अपने शोध में पाया है कि मधुमेह के इलाज में सुबबूल का पौधा कारगर हो सकता है। जर्नल एसीएस ओमेगा में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार डायबिटीज जैसी बीमारियों को ठीक करने में सुबबूल का पौधा काम कर सकता है। इस शोध में यह पाया गया है कि सुबबूल के बीज और फलियां इंसुलिन प्रतिरोध को नियंत्रित करने की क्षमता रखती है। इस शोध में यह भी स्प्षट हुआ है कि भारत में 18 साल से अधिक आयु के तकरीबन 7 करोड़ लोग मधुमेह टाइप टू से पीड़ित हैं। वहीं करीब 2.5 लोग प्री डायबिटिक है। शोध में यह भी सामने आया है कि न केवल डायबिटीज बल्कि सुबबूल के बीज से ठंड और बुखार में भी राहत मिलती है। पाचन शक्ति बढ़ती और शरीर भी मजबूत रहता है। क्योंकि सुबबूल के पौधे के इस्तेमाल से एंटीबायोटिक, एंटी वायरल और एंटी फंगल गुण पाए जाते हैं। बता दें कि भारत में इस प्रजातियों के 7 हजार से अधिक पौधें पाए जाते हैं। याद दिला दें कि साल 2023 में भी मधुमेह को लेकर एक रिपोर्ट सामने आयी थी। ग्लोबल डायबिटीज कम्युनिटी की वेबसाइट के अनुसार महिलाएं अगर प्लास्टिक की बोतल में पानी पीती हैं, तो उन्हें टाइप 2 डायबिटीज का खतरा और अधिक बढ़ जाता है। इस अध्ययन में माना गया है कि प्लास्टिक में फटा लेट्स केमिकल होता है। इसके संपर्क में आने से महिलाओं में डायबिटीज का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। ज्ञात हो कि 1300 महिलाओं पर इस अध्ययन को किया गया था। इस अध्ययन को पूरा करने के लिए 6 साल तक महिलाओं की सेहत की लगातार जांच की गई है। इसके बाद पाया गया कि जो भी महिलाएं फटालेट्स केमिकल के संपर्क में आयी हैं, उनमें से 63 प्रतिशत महिलाएं डायबिटीज से पीड़ित पाई गई हैं।
वर्क फ्रॉम होम की चुनौतियां
कोविड के दौरान से ही वर्क फ्रॅार्म होम का चलन तेजी से आगे बढ़ा था। हालांकि घर से काम करना कई सारी चुनौतियां भी लेकर आता है। इसे लेकर इस साल भारतीय उद्योग परिसंघ की एक रिपोर्ट सामने आयी है। इस रिपोर्ट में वर्क फ्रॉम होम के फायदे और नुकसान पर बात की गई है। इस रिपोर्ट में फायदे को लेकर कहा गया है कि घर से काम करने से पैसे की बचत होती है। इसमें कर्मचारियों के आने-जाने का समय और पैसे कम लगते हैं साथ ही अधिक किफायती क्षेत्रों में रहने की क्षमता भी मिलती है। कर्मचारी पर आफिस पहुंचने का तनाव भी कम होता है। साथ ही वह अपनी पूरी ऊर्जा के साथ वर्क फ्रॉम होम में काम शुरू करती हैं। हालांकि वर्क फ्रॉम होम करने का नुकसान यह है कि अनुशासन की कमी देखने को मिलती है। वर्क फ्रॉम होम चुनौतियां भी आती हैं, जो कि काम के तनाव को बढ़ाती है। साथ ही कर्मचारी को खुद को साबित करने की जरूरत अधिक पड़ती है। इससे कर्मचारी पर निगरानी बढ़ जाती है और विश्वास कम हो जाता है।