‘मेरा स्वास्थ्य मेरा अधिकार’ इस थीम के साथ इस साल भी विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जा रहा है। हर साल विश्व स्वास्थ्य दिवस अपनी एक थीम और एक सोच को दुनिया के समक्ष रखता है। इस बार की थीम हमें यह बताती है कि क्यों सेहत हमारे लिए सर्वोपरि होनी चाहिए। क्यों हमारी सेहत की जिम्मेदारी हमें अपने कंधों पर लेनी चाहिए? उल्लेखनीय है कि साल 1948 से लगातार विश्व स्वास्थ्य दिवस के जरिए सभी की स्वास्थ्य समानता और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर जागरूकता फैलाई जा रही है। इस साल फिर से सेहत की कीमत समझाने के लिए विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल को मनाया जा रहा है। देखा जाए, तो इस साल थीम खास तौर पर महिलाओं पर आधारित है। जरूरी है कि महिलाएं अपने जीवन में कुछ खतरनाक बीमारियों को लेकर सतर्क हो जाएं। आइए जानते हैं विस्तार से।
सर्वाइकल कैंसर
सर्वाइकल कैंसर गर्भाशय ग्रीवा( सर्विक्स) में होने वाला कैंसर है। इसे महिलाओं में पाए जाने वाला सबसे आम कैंसर माना जाता है। महिलाओं में इस तरह के कैंसर का संचार कई वजहों से हो सकता है। सर्वाइकल कैंसर का सबसे आम लक्षण है, पैरों में सूजन। कई बार आपके मासिक धर्म यानी कि पीरियड्स में गैप होना भी इस बीमारी का लक्षण हो सकता है, हालांकि कई तरह की सावधानी बरतकर महिलाएं सर्वाइकल कैंसर के खतरे से खुद को दूर रख सकती हैं। जानकारों का कहना है कि बीते कुछ सालों से सर्वाइकल कैंसर दुनिया में महिलाओं के सेहत से जुड़ी बड़ी चिंता लेकर आयी है। सही समय पर सर्वाइकल कैंसर की जांच और साथ ही टीकाकरण सर्वाइकल कैंसर से बचने में आपकी मदद कर सकता है। जरूरी है कि आप नियमित रूप से इसकी स्क्रीनिंग करवाएं। पैप परीक्षण के जरिए सर्वाइकल कैंसर का पता लगाया जा सकता है। यह भी माना गया है कि सर्वाइकल कैंसर होने की प्रमुख वजह एक तरह के वायरस से होने वाला संक्रमण है, ऐसे में वैक्सीनेशन से इस कैंसर की रोकथाम की जा सकती है। जानकारों का यह भी मानना है कि 9 से 14 साल की लड़कियों का टीकाकरण कराने से उन्हें घातक सर्वाइकल कैंसर से बचाया जा सकता है।
ब्रेस्ट कैंसर
इस बीमारी के होने की वजह यह है कि ब्रेस्ट के टिशू में सेल्स यानी कि कोशिकाओं की ग्रोथ जब असमान्य तरीके से बढ़ने लगती है, तो महिलाओं के शरीर में ब्रेस्ट कैंसर पनपने लगता है। महिलाओं को इससे बचने के लिए एहतियात रखना जरूरी होता है। महिलाओं में सबसे तेजी से फैलने वाली गंभीर बीमारी ब्रेस्ट कैंसर भी होती है, लेकिन ब्रेस्ट कैंसर से सर्वाइव करने के मामले में भी महिलाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। साथ ही मृत्यु दर में भी लगातार गिरावट आ रही है। यह जान लें कि ब्रेस्ट कैंसर किसी भी उम्र की महिलाओं को हो सकता है। महिलाएं अपनी खुद की जांच करके ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित होने या फिर न होने का पता लगा सकती हैं। महिलाओं को यह ध्यान देना होगा कि कहीं उनके ब्रेस्ट या फिर निप्पल के रंग में कोई बदलाव हो रहा है या नहीं, जैसे निप्पल से पस निकलना, ब्रेस्ट में कहीं पर भी दर्द होना भी ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। अगर आपको अपनी ब्रेस्ट के साइज में भी कोई अंतर दिख रहा है, तो आपको इसके लिए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। ब्रेस्ट में आपको कहीं पर भी कठोर-सा लंप्स भी दिख रहा है, तो इसे भी आप ब्रेस्ट कैंसर में जोड़ सकती हैं, हालांकि महिलाएं खुद के प्रति सावधानी बरत कर ब्रेस्ट कैंसर से बचाव कर सकती हैं।
प्री मेनोपॉज
प्री मेनोपॉज के प्रभाव से कई सारी महिलाएं अनजान है। यहां तक कि कई सारी ऐसी महिलाएं हैं, जिन्हें यह भी पता नहीं होता है कि प्री मेनोपॉज का असर महिलाओं के कैसे प्रभावित करता है। मेनोपॉज का समय से पहले आना प्री मेनोपॉज कहलाता है। जानकारों का मानना है कि अगर किसी महिला को 40 से पहले मेनोपॉज होता है, तो वह प्री मेनोपॉज कहलाता है। इसका सीधा असर महिलाओं की सेहत पर पड़ता है और कई तरह की सेहत से जुड़ी हुई दिक्कतों का सामना महिलाओं को करना पड़ता है। साफ शब्दों में कहें, तो महिला की ओवरी में जब अंडे खत्म हो जाते हैं, तो पीरियड बंद हो जाता है। इसी स्थिति को मेनोपाॅज कहते हैं। मेनोपॉज आने की उम्र 40 से बाद की मानी जाती थी, लेकिन जब पीरियड का आना 35 या फिर 38 साल की उम्र में बंद हो जाए, तो उसे प्री मेनोपॉज कहते हैं। यह भी माना जाता है कि प्री मेनोपॉज के लक्षण महिलाओं में पीरियड बंद होने के 3 से 4 साल पहले ही देखने को मिलते हैं। महिलाओं में चिड़चिड़ापन, मूड स्विंग, अनियमित माहवारी (पीरियड) और वैजाइनल ड्राइनेस जैसे लक्षण प्री मेनोपॉज में दिखाई देते हैं। प्री मेनोपॉज का सामना कर रहीं महिलाओं में सबसे अधिक दिक्कत हड्डियों को लेकर होती है। इसके साथ हाई बीपी और हार्ट संबंधी समस्याओं का भी खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा और भी सेहत से जुड़ी समस्या उत्पन्न हो जाती है। प्री मेनोपॉज का शिकार होने पर सबसे पहले महिलाओं को घबराना नहीं है, बल्कि डॉक्टर से तुरंत संपर्क करते हुए खुद की देखभाल करनी चाहिए। यह भी जरूरी है कि महिलाएं अपनी डायट में विटामिन और कैल्शियम की भरपूर मात्रा लें। योग और व्यायाम भी आपको स्वस्थ रखने में सहायक होता है।
मेनोपॉज
मेनोपॉज के अंतर्गत आने के बाद महिलाएं अक्सर अपनी देखभाल सही तरीके से नहीं करती हैं। मेनोपॉज का साफ और सीधा मतलब यही होता है कि महिलाओं में मासिक धर्म यानी कि पीरियड का बंद हो जाना। यह दो शब्दों के अर्थ से बना है ‘मेनो’ यानी कि महीना और ‘पॉज’ मतलब बंद होना। देखा गया है कि 45 साल के बाद महिलाएं मेनोपॉज की प्रक्रिया से गुजरती हैं। कई हालात में यह भी पाया गया है कि मेनोपॉज होने की उम्र कम या फिर ज्यादा भी हो सकती है। जानकारों का कहना है कि मेनोपॉज के लक्षण समझना और अपनी सेहत का ध्यान रखना हर महिला की जरूरत है, क्योंकि इस प्रक्रिया से हर एक महिला को एक उम्र के दौरान गुजरना ही है। मेनोपॉज में सबसे आम लक्षण जो दिखाई देते हैं, वो खास तौर पर अनियमित मासिक चक्र यानी कि पीरियड का अनियमित होना, सोने में दिक्कत होना और रात को अधिक पसीना आना हो सकता है। आपकी त्वचा पर भी इसका असर दिखाई देता है, जब आपकी त्वचा बहुत अधिक सूखी दिखाई देती है, बालों का अधिक झड़ना और नाजुक नाखुन भी मेनोपॉज के लक्षण में शामिल हैं। इसके साथ आपको अपनी नियमित जांच भी करानी चाहिए, ताकि आप मेनोपॉज से पहले खुद की सेहत के लिए चिकित्सक की सलाह ले सकें। इससे आपको काफी राहत मिलेगी और शरीर को मेनोपॉज के कारण अधिक नुकसान भी नहीं पहुंच पाएगा।
महिलाओं में हड्डियों से जुड़ी बीमारी
बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं में कई तरह की बीमारियां देखने को मिलती हैं। खासकर 45 की उम्र के बाद महिलाओं में हड्डियों से जुड़ी तकलीफ बढ़ कर सामने आती है। महिलाओं को उठने-बैठने के साथ खड़े रहने और चलने में कई पैर, कमर और जोड़ों में दर्द का सामना करना पड़ता है। सबसे अधिक महिलाएं ऑस्टियोपोरोसिस का सामना करना पड़ता है। इस बीमारी में महिलाओं की हड्डियां कमजोर और भुरभुरी हो जाती हैं। इस वजह से कमर, और जोड़ों में भी फ्रैक्चर होने की आशंका बढ़ जाती है। खासतौर पर देखा गया है कि मेनोपाॅज के बाद महिलाओं को इस बीमारी का शिकार होना पड़ता है। महिलाओं को मेनोपॉज के बाद अपने खान-पान में किसी भी तरह की कोई लापरवाही नहीं करनी चाहिए। महिलाओं को खासतौर पर नमक, चीनी का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही किसी भी तरह का कैफीन यानी कि चाय-कॉफी या फिर चॉकलेट का भी सेवन अधिक नहीं करना चाहिए। शराब और नशे से जुड़ी किसी भी चीज से दूरी रखनी चाहिए। साथ ही किसी भी तरह का सोडा या फिर कोल्ड ड्रिंक का सेवन भी महिलाओं को हड्डियों से जुड़ी बीमारी के खतरे को बढ़ा देता है।
महिलाओं के लिए सेहतमंद आहार जरूरी
एक उम्र के बाद हड्डियों से जुड़ी हुई बीमारी से बचाव करने के लिए महिलाओं को अपने खान-पान में पौष्टिक आहार को शामिल करना चाहिए। योग और व्यायाम पर भी सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए। हरी सब्जियां, दही, छाछ और सलाद के साथ अंडा, पनीर जैसे प्रोटीन युक्त पदार्थों को अपनी डायट में शामिल करें। बीन्स, स्प्राउट्स, टोफू, सोया मिल्क और मखाने को भी अपने जीवनशैली का हिस्सा बनाएं। सुबह धूप में चलना या फिर बैठना भी महिलाओं की हड्डियों की सेहत के लिए जरूरी माना गया है। नियमित तौर पर एक्सरसाइज और साथ ही लगातार चिकित्सा के मार्गदर्शन से अपनी जीवनशैली को आगे बढ़ाना आपको हड्डियों के रोगों के दर्द से बचाता है।
कुल मिलाकर देखा जाए, तो महिलाओं को अपनी सेहत का ध्यान ठीक उसी तरह देना चाहिए, जिस तरह मां अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है। सेहत को लेकर की गई छोटी-सी लापरवाही आपके लिए बड़ा संकट लेकर आ सकती है। महिलाओं को अपने जीवन शैली में योग, व्यायाम, पौष्टिक आहार को शामिल करते हुए मानसिक तनाव से दूरी रखनी चाहिए। तनाव आपकी सेहत पर किसी भी बीमारी से अधिक बुरा प्रभाव डालती है।