गर्भ संस्कार यानी कि मां के गर्भ में पल रहे बच्चों को दिया जाने वाला संस्कार होता है। गर्भावस्था में हर स्त्री की सबसे बड़ी चिंता होती है कि उसका बच्चा स्वस्थ और सुरक्षित रहे। सभी माता-पिता यहीं चाहते हैं कि उनका होने वाला बच्चा स्वस्थ भी रहे और गर्भ में ही उसका मानसिक विकास इस तरह हो कि वह अपने जन्म के बाद एक शांत और सभ्य जिंदगी की तरफ अपने छोटे-छोटे कदमों से आगे बढ़ता रहे। हमारे देश में यह माना जाता है कि बच्चे के संस्कार की शिक्षा उसके जन्म से पहले ही शुरू की जा सकती है। इस शिक्षण को गर्भ संस्कार की शिक्षा कहा जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं गर्भ संस्कार की प्राचीन प्रथा के बारे में योग एक्सपर्ट डॉ हंसा योगेंद्र से। डॉ हंसा 1918 में स्थापित प्राचीन संगठित योग केंद्र, द योग इंस्टीट्यूट की निदेशिका हैं। साथ ही वह इंडियन योग एसोसिएशन और इंटरनेशनल योग बोर्ड की अध्यक्ष भी हैं।
क्या होता है गर्भ संस्कार?
संस्कृत में जब हम “गर्भ” और “संस्कार” इन दोनों शब्दों को मिलाते हैं, तो इसका अर्थ निकलता है, जो कि सदाचार और अच्छे विचार का एक संगम है, जो एक बच्चे को मां के गर्भ में दिया जाता हैं। गर्भ संस्कार का भारतीय संस्कृति में गहरा महत्व भी है और मान्यता भी। भारतीय लोकचर के अनुसार गर्भ संस्कार मानव जीवन के लिए निर्धारित 16 संस्कारों में से एक है। ये संस्कार अजन्मे बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक विकास के लिए भी बहुत जरूरी हैं। यदि गर्भ संस्कार को आसान शब्दों में समझने का प्रयास किया जाए तो इसका अर्थ है वह संस्कार, जो एक प्रेग्नेंट स्त्री अपने अजन्मे बच्चे को गर्भावस्था या प्रेग्नेंसी में देती है। गर्भ संस्कार का सबसे बड़ा आधार होता है मां के मन की विचार, गर्भावस्था में स्त्री की मनोदशा और उनकी मन की भावनाएं। अगर मां का मन चिंता और व्याकुलता से भरा हो, तो बेशक यह उनके अजन्मे बच्चे के संस्कारों पर बहुत अधिक असर करेगा। हो सकता है बच्चे का स्वभाव ही उदासीपूर्ण और व्याकुलता भरा हो। वहीं अगर मां का मन संतोष और खुशी से भरा होगा तो बच्चे के संस्कारों में ऐसी सात्विक गुणों का प्रभाव ज्यादा होगा।
माहौल का पड़ता है बच्चे पर असर
अब बात साफ है कि मां की मनोस्थिति में घर के माहौल का असर तो पड़ेगा ही, तो अगर आपके घर में कोई स्त्री गर्भवती हों तो हमेशा ध्यान रखें के माहौल शांतिपूर्ण रहना चाहिए। गर्भवती महिला को किसी भी बात से दुख या तनाव नहीं होना चाहिए, क्योंकि इस बात का सीधा असर होनेवाले बच्चे के संस्कारों पर पड़ता है।
गर्भ संस्कार के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार
गर्भ संस्कार का आयुर्वेद के साथ-साथ भारत के अलग-अलग ग्रंथों में उल्लेख किया गया है। वेदों में भी गर्भ संस्कार का उल्लेख है। खासकर अथर्ववेद में जिसमें कई ऐसे श्लोक, मंत्र और क्रियाएं हैं, जो गर्भावस्था और डिलीवरी प्रक्रिया का वर्णन करते हैं। अथर्व वेद में कई ऐस गर्भ संस्कार के मूल्य बताए गए हैं, जिससे कि आपके आनेवाले बच्चे में सद्गुण, सदाचार, शांति, खुशी और एक जिज्ञासापूर्वक मन होता है।
आयुर्वेद में गर्भ संस्कार
आयुर्वेद में भी गर्भ संस्कार का विस्तार से विश्लेषण है। आयुर्वेद के अनुसार हमारे खाने-पीने और रहन-सहन के तरीके का सीधा असर हमारे आनेवाले बच्चे पर पड़ता है। इसलिए आयुर्वेद के अनुसार गर्भावस्था में मां को अपने खान-पान का खास ध्यान रखना चाहिए। जितना हो सके उतना सात्विक खाना ही खाएं। अपने बच्चे को अच्छा पोषण देने के लिए ताजा और घर का बना हुआ खाना खाएं और आगे गर्भावस्था में जैसा परंपरागत खाना आपके घरों में खाया जाता है, उन्हें वापस अपने आहार का हिस्सा बनाइए। ऐसा इसलिए, क्योंकि परंपरागत खाने में कई प्राकृतिक जड़ी-बूटियां और उपचार होते हैं, जो कि आपके बच्चे की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत बना सकता है। अगर आप इन परंपरागत खान-पान की शैलियों के बारे में ज्यादा नहीं जानती हैं, तो अपनी मां या नानी-दादी से बात कीजिए और उन प्रथाओं को अपने प्रेग्नेंसी सफर का हिस्सा बना दीजिए।
गर्भ संस्कार के पौराणिक उदाहरण
कहा जाता है कि अभिमन्यु को उनकी मां सुभद्रा के गर्भ में ही चक्रव्यूह का ज्ञान हो गया था। यह एक प्रकार का गर्भ संस्कार ही है। दूसरी ओर, भक्त प्रहलाद का जन्म तक्षश कुल में हुआ, लेकिन फिर भी वह विष्णुजी के भक्त थे। माना जाता है कि भक्त प्रहलाद की भक्ति भी उनी संस्कारों के कारण थी, जो उन्हें उनकी मां के गर्भ में मिली थी। इसी तरह रामायण में भी कहा जाता है कि महारानी कौशल्या ने अनेक रीति-रिवाज और अनुशासन का पालन किया था। इनसे उनके गर्भ में पल रहे शिशु में वीरता, सद्भावना, करुणा, विनम्रता जैसे सात्विक गुण उतर आए थे। पुरानी कहानियों में मिलने वाले इन उदाहरणों से हम इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि गर्भ संस्कार का बच्चे पर कैसा असर आ सकता है।
गर्भ संस्कार की कुछ अभ्यास
गर्भ संस्कार की शुरुआत कन्सेप्शन के पहले से ही की जा सकती है। आप अगर बच्चे की प्लानिंग कर रहे हैं, तो उसी दौरान घर में शांति का माहौल बनाए रखें। एक-दूसरे से हमेशा प्रेम और विनम्रता से बात कीजिए। ये संस्कार धीरे-धीरे आपके घर के मूलाधार बन जाएंगे और ऐसा शांतिपूर्ण वातावरण जिस घर का आधार हो वह घर में ही गर्भावस्था के लिए तैयार होता है। प्रेग्नेंसी के दौरान मेडिटेशन और डीप ब्रीदिंग प्रैक्टिस को अपने लाइफस्टाइल का हिस्सा बनाइए। अपने इष्ट-देव के मंत्रों को सुनिए। कहते हैं कि होनेवाले बच्चे को इससे खास फायदा होता है। आप टीवी या फोन पर जो देखती हैं या किताबों में जो पढ़ती हैं, उनके मूल-संस्कारों पर ध्यान दीजिए।