बचपने से किशोरावस्था में कदम रख रही हर बेटी के लिए ये उम्र काफी खास होती है, क्योंकि इस दौरान मानसिक रूप से ही नहीं, शारीरिक रूप से भी उनमें कई बदलाव आते हैं और पहला पड़ाव होता है पीरियड्स का। आइए जानते हैं ऐसे में किस तरह आप उनके स्वास्थ्य का बेहतर ख्याल रख सकती हैं।
सही मार्गदर्शन के साथ बेहतर स्वास्थ्य देखभाल
ग्लोबलाइजेशन के साथ एडवर्टाइजिंग के इस दौर में जब कोई बात किसी से ढंकी-छुपी नहीं है, फिर भी कुछ चीजें हैं, जो चाहकर भी जाहिर नहीं हो पाती। किशोरावस्था में शुरू हुए पीरियड्स को लेकर भले ही घर और स्कूलों में उन्हें कई बातें बताई जाती हों, लेकिन पीरियड्स के दौरान होनेवाली शारीरिक और मानसिक परेशानी से वे तब तक अंजान रहती हैं, जब तक कि उससे उनका सामना नहीं होता। गौरतलब है कि 9 वर्ष से 17 वर्ष की लड़कियों को बालिका माना जाता है, और इसी दौरान हार्मोनल बदलाव के कारण उन्हें हर माह पीरियड्स के दर्द से गुजरना पड़ता है। हालांकि यही वो उम्र होती है, जब उन्हें सही मार्गदर्शन के साथ बेहतर स्वास्थ्य देखभाल की जरूरत होती है। हालांकि शहरों में भले ही बेटियों को इसके बारे में बताया जाता हो, लेकिन ग्रामीण समाज में आज भी इस पर बात करने से वे कतराती हैं। उस पर पुरुषों के सामने बात करना तो भूल ही जाइए।
मेडिकेशन के साथ सही खान-पान भी
पीरियड्स के दौरान बेटियों के स्वास्थ्य के बारे में डॉक्टर सोनम विश्वकर्मा कहती हैं, “पीरियड्स के दौरान बेटियों को सही मार्गदर्शन के साथ मेडिकेशन और सही खान-पान की बेहद जरूरत होती है और इसकी जानकारी हर मां को होनी चाहिए। मैं समझती हूं बेटियां हमारा भविष्य है, ये बात सिर्फ कहने से नहीं, बल्कि उस पर अमल करने से सुरक्षित होगा। ऐसे में उनके खान-पान, दवाइयों और हाइजीन का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। हालांकि ये बात स्पेशियली हर मां को समझनी चाहिए कि बदलते दौर में हमारी जरूरतें चाहें जितनी बदल जाएं, लेकिन कुछ चीजें आप चाहकर भी नहीं बदल सकती और वो है पीरियड्स में होनेवाली परेशानियां। ये थी, हैं और रहेंगी, इसलिए कोशिश करें कि इस दौरान आप अपनी बेटियों पर थोड़ा अतिरिक्त ध्यान दें। खान-पान और हायजिन के साथ इस बात का भी ख्याल रखें कि इस दौरान वे ज्यादा टाइट कपड़ों की बजाय, ढ़ीले कपड़े पहनें और बाहर फास्ट फ़ूड की बजाय घर का बना खिचड़ी, दलिया और चावल-दाल जैसा हल्का भोजन लें। इसके अलावा जितना हो सके वे पानी पीती रहें और अपने शरीर को हाइड्रेटेड रखें।”
मांओं के साथ टीचर्स भी समझें अपनी जिम्मेदारी
पीरियड्स के दौरान अधिक से अधिक पानी पीने से न सिर्फ दर्द से छुटकारा मिलता है, बल्कि तनाव भी कम होता है। वैसे तनाव कम करने के लिए वे हल्का म्यूजिक भी सुन सकती हैं। इसके अलावा पीरियड्स के दौरान बेटियों के खान-पान के बारे में डाइटीशियन आंचल आर्या का कहना है, “पीरियड्स से जुड़ी परेशानियों से दूरी बनाने के लिए जरूरी है कि आप बचपन से ही उनके खान-पान और पोषण से जुड़ी जरूरतों का ख्याल रखें। इसके लिए आप उन्हें कैल्शियम के तौर पर भोजन में रागी, ज्वार, बाजरा और फ्रूट्स के साथ ड्रायफ्रूट्स दे सकती हैं। इसके अलावा आयरन के लिए आप अंकुरित चना, मूंग, गुड़, खजूर, अनार, बीटरूट, संतरा, मौसंबी और पपीता अपनी बिटिया के भोजन में जरूर शामिल करें। इससे आपको न सिर्फ पोषण मिलेगा, बल्कि वे पीरियड्स से जुड़ी समस्याओं से भी बच जाएंगी।” इसमें दो राय नहीं है कि पीरियड्स के दौरान बेटियों के स्वास्थ्य को लेकर घरों में बहुत कम जागरूकता रखी जाती है, ऐसे में जरूरी है कि प्राइमरी और सेकंडरी स्कूलों के साथ कॉलेजों में भी टीचर्स उन्हें बताएं कि पीरियड्स के दौरान अपना ख्याल कैसे रखा जाए।
मां के अलावा पिता भी समझें इसे अपनी जिम्मेदारी
टीचर्स के साथ-साथ पैरेंट्स भी अपनी बेटियों को इस बारे में उचित मार्गदर्शन करें कि पीरियड्स के दौरान खान-पान और पोषण के साथ हाइजीन भी बेहद जरूरी है। यदि वे सैनिटरी पैड की जगह कपड़ा इस्तेमाल कर रही हैं, तो कपड़ा कॉटन का होना चाहिए। साथ ही उसे धोने और सुखाने का भी खास ख्याल रखा जाना चाहिए। इसके अलावा सैनिटरी पैड इस्तेमाल करते वक्त जरूरी है कि एक सैनिटरी पैड का उपयोग वे 5 घंटों से अधिक न करें। हालांकि पीरियड्स को लेकर बेटियों में जागरूकता लाना सिर्फ मां की ही नहीं, पिता की भी जिम्मेदारी है। विशेष रूप से जिन घरों में मां या कोई महिला सदस्य नहीं है, वहां पुरुषों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। ध्यान रहे, सही गाइडेंस के अभाव में पहला पीरियड्स, पहले क्राइम की तरह लगता है। वे समझ ही नहीं पाती कि आखिर उनके साथ ये हो क्या रहा है। ऐसे में उन्हें ये बताना बेहद जरूरी है कि यह एक शारीरिक प्रक्रिया है, जिससे उन्हें हर माह बिना परेशान हुए गुजरना है।