आम तौर पर जब बच्चा फेल हो जाता है, तो काफी घरों में माहौल इतना अशांतिपूर्ण और नकारात्मक हो जाता है, जिसका सीधा-सीधा असर बच्चे पर पड़ता है। हालांकि कोशिश यह होनी चाहिए कि चोट खाए उस बच्चे को सकारात्मकता का मरहम लगाया जाए। आइए जानते हैं ऐसी स्थिति में बच्चों से कैसे पेश आएं।
समझें बच्चे की फूल सी कोमल भावनाएं

बच्चे का फेल होना उसके पूरे भविष्य का अंत नहीं होता और न ही एक रिपोर्ट कार्ड उसका भविष्य होता है। दरअसल यह एक नया अवसर है, जिससे वह काफी कुछ सीखकर आगे बढ़ सकता है। यकीन मानिए आपके साथ अपने टीचर्स की सकारात्मकता और सही मार्गदर्शन से वो न सिर्फ अपनी असफलताओं से उबर सकता है, बल्कि एक नई एनर्जी के साथ सफलता की ओर बढ़ सकता है। बशर्ते जरूरी है कि आप उसकी मानसिक स्थिति को समझें। इसमें दो राय नहीं है कि बच्चे फूल से कोमल होते हैं और उनसे भी ज्यादा कोमल होती हैं, उनकी भावनाएं। अक्सर देखा गया है कि परीक्षा में फेल होने के बाद वे शर्मिंदगी, डर, निराशा और गिल्ट को खुद पर इस कदर हावी कर लेते हैं कि खुद को बेकार या असफल समझने लगते हैं। ऐसे में ये आपका कर्तव्य बनता है कि आप उसके साथ बैठें और उसे प्यार से समझाएं कि यह दुनिया का अंत नहीं है और न ही एक परीक्षा में फेल होने से वे जिंदगी में फेलियर हो जाते हैं।
उसकी परेशानियों को जानने की कोशिश करें
हर असफलता के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है। ऐसे में उसकी पढ़ाई के बारे में जानने की कोशिश करें। ये समझें कि क्या उसे कोई विषय कठिन लग रहा है? या उसकी पढ़ाई का तरीका गलत है? आखिर वो क्या चीज है, जो पढ़ाई के दौरान बार-बार उसका ध्यान भटका रही है? इसके अलावा ये भी परखें कि वो कितनी देर पढ़ता है? या फिर यह भी हो सकता है कि इन अंदरूनी परेशानियों के अलावा उसे कोई पर्सनल इश्यूज हों,जो उसकी पढ़ाई को प्रभावित कर रही हो। इन सब चीजों को जानने के बाद ही आप एक निर्णय पर पहुंच सकती हैं। इसके अलावा अपने बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ाते हुए कुछ बातें आपको अपनी तरफ से भी करनी होंगी। उदाहरण के तौर पर किसी और बच्चे से अपने बच्चे की तुलना। आम तौर पर हमारे समाज में निगेटिव मोटिवेशन को काफी हेल्दी माना जाता रहा है, लेकिन सच पूछिए तो बच्चों के मामले में ये बिल्कुल हेल्दी नहीं है। इसका असर न सिर्फ उनकी एनर्जी, बल्कि आत्मविश्वास पर भी पड़ता है।
बच्चों को प्रेरित करने के लिए नई नीतियां अपनाएं

हम सभी का जीवन, अनुभवों की ऐसी खान है, जहां कई सफलताएं और असफलताएं छुपी होती हैं और जिंदगी के कमजोर पलों में वे ही हमें हौंसला देती हैं। संभव हो तो उन हौंसलों से उन्हें भी प्रेरित करने का प्रयास करें। इसके अलावा आप उन्हें ऐसी हस्तियों के बारे में भी बता सकती हैं, जिन्होंने हारकर, जीतना सीखा और जब वे जीते तो इतिहास रच दिया। प्रेरक कहानियों और अनुभवों के अलावा स्वयं बच्चे की छोटी से छोटी उपलब्धियों को सराहें और उसे प्रोत्साहित करें। इसके साथ ही उसकी पढ़ाई में भी उसकी मदद करते हुए सिर्फ टोकने की बजाय उसके लिए एक बेहतर शेड्यूल बनाएं। उस शेड्यूल के अनुसार बच्चे के लिए मुश्किल चुनौतियों की बजाय छोटे-छोटे लक्ष्य रखें, जिससे पढ़ाई को लेकर यदि कोई डर हो तो वह खत्म हो जाए। इसके अलावा उन्हें पढ़ाने के लिए टेक्स्टबुक्स की बजाय, वीडियो, चार्ट और प्रैक्टिकल तरीके अपनाकर पढ़ने के लिए प्रेरित करें। यदि आप चाहें तो ट्यूटर या किसी टीचर की मदद भी ले सकती हैं।
बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य का रखें ध्यान

इस सिलसिले में साइकोलॉजिस्ट हिरल खिमानी कहती हैं, “यदि आपका बच्चा एक बार फेल हो गया है, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह हमेशा फेल होगा। उसे खुद को साबित करने का एक और मौका दें और इस बार उसे अच्छी तरह तैयार करें। हो सकता है कि पिछली बार उसने लापरवाही की हो, लेकिन अब उसे वही गलती दोहराने दें। दरअसल कई बार बच्चे पढ़ाई के प्रेशर में आकर मेंटल स्ट्रेस फील करने लगते हैं, जिसके एवज में वे उदास, चिड़चिड़े और अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में उसकी भावनाओं को समझें और यदि आपको लगे तो किसी काउंसलर या विशेषज्ञ से सलाह लें। ध्यान रखिए पढ़ाई के साथ मनोरंजन और खेल-कूद को भी शामिल करना आपके बच्चों के मेंटल हेल्थ के लिए बेहद जरूरी है।”