पैरेंट्स बनने का अनुभव बेहद खास होता है। ऐसे में सारे रिश्तेदार और परिचित बच्चे से जुड़ी छोटी-छोटी सलाह देने लगते हैं, लेकिन कई बार यह सलाह तब बोझिल हो जाते हैं, जब वे आपकी परवरिश पर प्रश्नचिन्ह लगाने लगते हैं। आइए जानते हैं ऐसे में क्या करें और क्या न करें।
सलाह और दखलंदाजी में फर्क समझें
बच्चों की परवरिश कैसे की जाए इसकी सलाह आम तौर पर घर-परिवार वाले देते ही रहते हैं। कभी दादा-दादी, तो कभी नाना-नानी, कभी मौसा-मौसी, तो कभी चाचा-चाची। इसमें दो राय नहीं कि वे हमारे और बच्चे की भलाई के लिए ही कहते हैं, लेकिन बात हद से आगे तब बढ़ जाती है, जब उनकी सलाह, दखलंदाजी में बदल जाती है। हालांकि हमारे देश में संयुक्त परिवार की परंपरा रही है और बच्चों को जन्म से ही सारे रिश्ते विरासत में मिल जाते रहे हैं, लेकिन एकल परिवार में जहां छोटा परिवार होता है, वहीं रिश्तेदारों से बच्चों की मुलाकातें कभी-कभार ही हो पाती है। अब ऐसे में कभी-कभार मिलनेवाले रिश्तेदार, बच्चे से मिलते ही आपकी परवरिश पर सवाल उठा दें, तो आपका चिढ़ना बनता है। और हो भी क्यों न ऑफिस के साथ घर-परिवार और बच्चे की पूरी जिम्मेदारी निभाने के बावजूद जब कोई आपकी परवरिश पर सवाल उठाता है, तो उन्हें समझाना भी जरूरी है। लेकिन कैसे?
करीबी रिश्तेदारों को थोड़ा छूट दें
नजदीकी रिश्ते में कई बार हम चाहकर भी अपनी बात रख नहीं पाते। अगर आपके साथ भी यही समस्या है, तो सबसे पहले आपको ये बात समझनी होगी कि आपको अपने बच्चे की परवरिश कैसे करनी है, ये पूरी तरह से आपके हस्बैंड और आपका व्यक्तिगत मामला होना चाहिए। विशेष रूप से घर पर तो यही नियम लागू होता है। हां, अगर कुछ दिनों के लिए आउटिंग के तौर पर आप अपने रिश्तेदारों के साथ कहीं घूमने जा रही हों, तो वहां आपको थोड़ा धीरज से काम लेना होगा, जिससे आपके रिश्ते न बिगड़ें। विशेष रूप से अगर आपके बच्चे अपने दादा-दादी या नाना-नानी के साथ हैं, तो उन्हें थोड़ी छूट दी जा सकती है, क्योंकि ये वो लोग हैं, जिन्होंने आपकी और आपके हस्बैंड की परवरिश की है। हालांकि इसका ये मतलब भी नहीं कि इससे उन्हें आपकी परवरिश पर सवाल उठाने का अधिकार मिल जाता है, लेकिन यहां आपको न चाहते हुए भी थोड़ा धैर्य से काम लेना ही होगा।
रिश्तेदारों से पहले बच्चों से बात करें
कई बार रिश्तेदारों से बात करना फिजूल होता है, क्योंकि उनमें से कई ऐसे हो सकते हैं जो तिल का ताड़ बना लें। अब ऐसे में उनसे कुछ कहकर अपने रिश्तों में जहर घोलने की बजाय आप अपने बच्चों से भी बात कर सकती हैं। आम तौर पर बड़ों से ज्यादा बच्चे, रिश्तेदारों की बातों से आहत हो जाते हैं और फिर उनसे कटने लगते हैं और इसका ठीकरा फूटता है आपके सिर। इसके लिए अपने बच्चों को पहले ही अपने रिश्तेदारों की कुछ आदतें बता दें, जिससे बच्चों को भी एक अंदाजा मिल जाए। हालांकि अपने बच्चों के सामने, अपने रिश्तेदारों की आदतों के बारे में बात करते समय आपको काफी सावधानी बरतनी होगी। कहीं ऐसा न हो बच्चे उन्हें समझने की बजाय जज करने लगें। ऐसे में आप अपने बच्चों को प्यार से समझाते हुए बता सकती हैं कि उनके कहने का इंटेंशन गलत नहीं है, बस उनका और आपका दौर थोड़ा अलग है। कभी जो सलाह उन्हें, उनके बड़ों ने दी थी, वही सलाह आज वे आपको दे रहे हैं, तो इसे अन्यथा न लें।
दखलंदाजी को दबाव में न बदलें
इमोशंस और वैल्यूज हम सभी के पास होते हैं, लेकिन अक्सर थोड़ी सी बात बिगड़ते ही हम इस कदर आपे से बाहर हो जाते हैं कि अपने वैल्यूज के साथ उनके प्रति अपने प्रेम को भी भूल जाते हैं। ऐसे में अपनी मर्यादा को समझते हुए, प्यार से न सिर्फ अपने बच्चों को मर्यादा में रहना सिखाएं, बल्कि अपने रिश्तेदारों को भी कम शब्दों में इस बात से परिचित करवा दें। हालांकि सभी के प्यार करने और केयर करने का तरीका अलग-अलग होता है, ऐसे में उनकी भावनाओं को समझते हुए, बच्चों को भी समझाएं क्योंकि सलाह देना उनका काम है और सम्मान करना आपका। हालांकि अपने टेंपर को थोड़ा सा काबू में रखते हुए आपको ये बात ध्यान में रखनी होगी कि रिश्तेदारों द्वारा दिए जानेवाले सलाह का मतलब ये नहीं कि उसे आप अपने बच्चे पर लागू ही करें। हां अगर यह सलाह आपको दखलंदाजी या दबाव लग रही हो, तो आपको इस विषय में एक बार उन रिश्तेदारों से भी बात करनी चाहिए, जिनकी तरफ से ये आया हो। यदि ये सिर्फ सलाह है तो इसे आप खुले दिल और दिमाग से लेते हुए, इस पर विचार करने के लिए उन्हें आशांवित भी कर सकती हैं।
बच्चों के लिए बड़ों से मर्यादित व्यवहार करें
आम तौर पर आपका बिहेवियर, आपके बच्चों के लिए एक सबक जैसा होता है, इसलिए आपको कोशिश करनी चाहिए कि उनके सामने अपने बड़ों या दूसरों से मर्यादित व्यवहार करें। यदि आज आप उनकी बातों को सुनकर उन्हें सम्मानित शब्दों में जवाब देंगी, तो कल यही बच्चे आपके साथ उसी तरह पेश आएंगे। ऐसे में अपने बड़ों की बातें सम्मान सहित ध्यान से सुनें। अब आपको उसे अपने बच्चों पर अप्लाय करना है या नहीं, ये पूरी तरह आपके ऊपर निर्भर करता है। हां, एक चीज जो सबसे ज्यादा जरूरी है और वो है बड़ों के अलावा अपने बच्चों के साथ आपका संबंध। यकीन मानिए यदि आपके बच्चे पूरी तरह आपका सम्मान करते हुए, आपकी बात मानते हैं तो दूसरे चाहकर भी आपकी परवरिश पर कोई सवाल खड़ा नहीं कर पाएंगे और न ही किसी तरह की दखलंदाजी करेंगे। इसके अलावा अगर आप अपने बच्चों से ज्यादा जुड़ी रहेंगी, तो उन पर आपका प्रभाव भी सबसे ज्यादा होगा। तो इस बात के लिए निश्चिंत रहें कि कौन क्या बोल रहा है और क्या कर रहा है।
संयमित भाषा में जवाब दें
जब भी आपको लगे कि आपके रिश्तेदार आपकी परवरिश पर सवाल उठा रहे हैं, तो उन्हें संयमित भाषा में जवाब दें। संभव हो तो आपने बच्चों के लिए जो नियम बनाए हैं, उनका उल्लेख भी कर सकती हैं, लेकिन इस बात की अपेक्षा न करें कि वे आपका पॉइंट समझें ही। हो सकता है वे आपके नियमों पर भी सवाल उठाएं, लेकिन ऐसे में भी आपको शांति बनाए रखते हुए संयमित भाषा में उन्हें अपनी बात कहनी होगी। इसके अलावा आपको यह बात भी समझनी होगी कि हो सकता है वे आपके या आपके बच्चे की भलाई के लिए कोई बात कह रहे हों, ये भी हो सकता है कि सही बात को कहने का उनका तरीका गलत हो। बात चाहे जो भी हो आपको यह बात याद रखनी होगी कि पारिवारिक व्यवस्थाओं को सम्मान, संयमित और मधुरता के साथ व्यक्त करना बेहद जरूरी है। ये बात तब भी जरूरी है जब आपको उनकी सलाह अनचाही लगे या सलाह देनेवाला व्यक्ति बिल्कुल पसंद न हो।
ईगो को न दें संबंधों में स्थान
इस बात से तो आप भी सहमत होंगी कि जब संबंधों में ईगो घुल जाता है, तो अच्छी-भली चीजें भी बुरी हो जाती हैं। ठीक उसी तरह कई बार बच्चों के बिहेवियर को देखकर कोई अच्छी सलाह भी देता है, तो हम उसे अपने ईगो पर लेकर दरकिनार कर देते हैं। कोशिश कीजिए कि आप ऐसा कुछ न करें। यदि आपको लगता है कि उनकी बताई बातें या सलाह आपके बच्चे के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं, तो बिना झिझके उसे अपना लें, बजाय इसके कि उनकी बातों को अपने ईगो पर लेकर आप ये सोचने लगे कि इन्होने मेरी परवरिश पर सवाल कैसे उठा दिया? लोगों की अच्छी और बुरी मंशा के बीच फर्क समझकर उसे अपनाना सीखें।