सोशल मीडिया के पूरे अनुभव का उद्देश्य लोगों को एक दूसरे से जोड़ना है, लेकिन जब आपके अपने बच्चों की ऑनलाइन एक्टिविटी की बात आती है, तो आप इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा पाएंगी कि सोशल मीडिया किस तरह आपके बच्चों को प्रभावित कर रहा है। डॉ प्रीति सचदेवा चाइल्ड सायकोलॉजिस्ट हैं, उन्होंने दिल्ली और मुंबई के विभिन्न संस्थानों में सायकोलॉजिस् टीचर के रूप में 15 से अधिक वर्षों तक काम किया है। प्रीति बताती हैं कि सोशल मीडिया पर अपने बच्चों की सुरक्षा करना अक्सर एक साधारण बातचीत से शुरू होता है लेकिन दिखावे की उस दुनिया से अंजान आपके बच्चे इससे कितने आकर्षित हैं, ये आपको उनके नजरिए से देखकर ही समझ आएगा।
खुद भी जानें सोशल मीडिया के बारे में सबकुछ
जितना अधिक आप अपने बच्चों के सोशल मीडिया के इस्तेमाल के बारे में जानेंगे, आप उतने ही बेहतर तरीके से जोखिमों को पहचान पाएंगे और उन्हें वहां सुरक्षित कैसे रखा जा सकता है, इसका ख्याल रख पाएंगे। प्रीति ने उदाहरण देते हुए बताया, “आपको इस बारे में बहुत कुछ पता होना चाहिए कि आपके बच्चे हर दिन सोशल मीडिया पर क्या देखते हैं। एक बार जब आप उनकी ऑनलाइन दुनिया के बारे में समझ जाएं, तो आप अपने बच्चों की सोशल मीडिया पर सुरक्षा कर सकते हैं, जैसे आप ऑफलाइन करते हैं।”
करें अपने बच्चों से खुलकर बात
डॉ प्रीति कहती हैं कि अपने बच्चों के साथ खुलकर बात करें। युवा लोगों के सामाजिक जीवन का एक बड़ा हिस्सा अब ऑनलाइन हो गया है। इसे आप मानें या ना मानें, यह एक बड़ा फैक्ट है। अपने बच्चों के साथ उनके सोशल मीडिया के उपयोग के बारे में बात करें और उनके ऑनलाइन व्यवहार के लिए अपनी अपेक्षाओं और सीमाओं पर खुलकर चर्चा करें। ये चर्चाएं आपके लिए उनसे सीखने और महत्वपूर्ण पेरेंटिंग करने का एक खास अवसर हैं। आप उन्हें सुरक्षित पासवर्ड का उपयोग करने और व्यक्तिगत जानकारी पोस्ट न करने के बारे में सीखा सकते हैं।
सोशल मीडिया के जोखिमों पर बच्चों को शिक्षित करें
बेसिक नियमों के अलावा अपने बच्चों के साथ इंटरनेट से होने वाले जोखिमों के बारे में चर्चा करना भी महत्वपूर्ण है। इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलेगी कि आपके तय किये गए नियम क्यों महत्वपूर्ण हैं और उनके लिए चेतावनी और संकेतों को पहचानना आसान हो सकता है। डॉ प्रीति आगे कहती हैं, ”ऑनलाइन ट्रेंड्स और मीम्स के बारे में बेशक वो आपसे ज्यादा जानते होंगे लेकिन बच्चे हमेशा उन खतरों से अवगत नहीं होते हैं जो उन्हें दिखाई नहीं दे रहे। अज्ञात लिंक पर क्लिक न करना, कुछ भी डाउनलोड न करना, उन्हें फिशिंग स्कैम, वायरस या धोखेबाजी से बचा सकता है। उन्हें याद दिलाएं कि हर कोई वह नहीं है जैसे वो ऑनलाइन दिखते हैं। उन्हें धोखाधड़ी और पहचान के बारे में बताएं। किसी भी ऐसे अजनबी से बातें करने से पहले सोचने की सलाह दें। उन्हें बताएं कि आप उनके लिए एक अच्छे दोस्त हैं और उन्हें गाइड कर सकते हैं, वो कभी भी आपसे कुछ भी शेयर कर सकते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव
डॉ प्रीति ने बताया कि सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने से मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। कभी-कभी बात यह नहीं होती कि बच्चे सोशल मीडिया पर कितना समय बिताते हैं, लेकिन वो सोशल मीडिया का उपयोग कैसे कर रहे हैं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। डॉ प्रीति ने उदाहरण देते हुए कहा, “दूसरों के कितने दोस्त हैं और उनकी मस्ती करते हुए तस्वीरें देखकर बच्चों को अपने बारे में बुरा लग सकता है या ऐसा महसूस हो सकता है कि वे अपने साथियों के साथ उनके बराबर नहीं हैं। इसके अलावा जो बच्चे सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव होते हैं, उनसे भी बच्चों के बीच जलन या इनसिक्योरिटी पैदा हो सकती है। आपको अपने बच्चों के मेन्टल हेल्थ पर भी पूरा ध्यान देना होगा। उन्हें ये समझाना होगा की सोशल मीडिया की दुनिया असली दुनिया नहीं है। इसलिए उन्हें इसे सीरियस नहीं लेना है।
लागू करें कुछ खास नियम
डॉ प्रीति ने कहा, “आपके बच्चे उस पीढ़ी का हिस्सा हैं जो नहीं जानते कि इंटरनेट से पहले का जीवन कैसा था। चूंकि वे आपकी तुलना में बहुत कम उम्र से ऑनलाइन दुनिया के यूजर हैं, इसलिए उन्हें धोखाधड़ी, घोटालों और साइबर धमकी सहित कम उम्र के जोखिमों के बारे में सिखाना महत्वपूर्ण है। आप सोशल मीडिया के उपयोग पर सीमा लगाकर बच्चों को वास्तविक दुनिया से जोड़े रखने में मदद कर सकते हैं। घर में सार्वजनिक क्षेत्रों में कंप्यूटर रखें, बेडरूम में लैपटॉप और स्मार्टफोन से बचें और कई जगहों पर कुछ नियम निर्धारित करें, जैसे कि खाने की मेज पर कोई मोबाइल या लैपटॉप नहीं होगा। रात को सोने से पहले सबका फोन या लैपटॉप एक जगह होगा, न कि सबके सिरहाने। इस तरह आप अपने बच्चों को सोशल मीडिया की झूठी दुनिया से दूर भी रख पाएंगे और उन्हें किसी भी तरह की परेशानियों से बचा पाएंगे।”