मानवता का रिश्ता बनाने के लिए सबसे जरूरी है कि आपके दिल में दया का भाव होना और साथ ही दूसरे के लिए हमेशा मौजूद रहने की भावना भी। लेकिन आपके मन में यह भाव नहीं आना चाहिए कि मैंने उसकी मदद की और उसने मेरी कोई मदद की। इस तरह की भावना यह व्यक्त करती है कि आप किसी के प्रति मानवता का हाथ भी बढ़ा रहे हैं, तो यह सोच कर कि वो भी आपके लिए कभी काम आएगा। मानवता हमेशा से ही निस्वार्थ होने की भावना के साथ जन्म लेती है। आइए विस्तार से आपको बताते हैं कि कैसे आप मानवता से अपना रिश्ता मजबूत कर सकती हैं।
सकारात्मकता जरूरी
मानवता से रिश्ता बनाने के लिए सबसे जरूरी है सकारात्मक रहना। जी हां। अगर आप सकारात्मक नहीं रहेंगे, तो नकारात्मकता आपके मन के अंदर दीया जला लेगी। इसलिए खुद को सकारात्मक रखें। इससे आप मानसिक और शारीरिक तौर पर किसी भी परिस्थिति के बारे में भी सकारात्मक सोचेंगे। सकारात्मक रहना मानवता के रिश्ते का पहला कदम है। सकारात्मकता ही आपके मन में दया और दूसरे के प्रति सकारात्मक सोच रखने के भाव को पैदा रखती है। खुद को सकारात्मक रखने के लिए आप गॉसिप वाली जगहों से खुद को दूर रखें। आप किताब से दोस्ती कर सकती हैं। सकारात्मक वीडियो देख सकती हैं। साल में एक या दो बार किसी ऐसी जगह पर जा सकती हैं जहां पर आपको प्रकृति से मिलने का अवसर मिले।
नकारात्मक लोगों से दूरी
सकारात्मकता को अपनाने के लिए सबसे जरूरी काम है, नकारात्मक माहौल से दूरी। जी हां, नकारात्मकता को खुद के अंदर जन्म न देने के लिए आपको अपनी सोच को सीमित नहीं करना होगा। किसी में दोष निकालने से पहले खुद के तरफ मौजूद चार उंगलियों को जरूर देखें। सामने वाले पक्ष को सुनने की कोशिश करें। आपके पास वक्त होने पर संगीत या फिर अपने रुचि के विषय में खुद को शामिल करें। ऐसे लोगों के साथ न रहें, जिनका काम केवल चार लोगों की बुराई करना हो।
सामने वाले को समझने की कोशिश
मानवता के रिश्ते का एक अहम पहलू है समझदारी के साथ सामने वाले को समझने की कोशिश करना। अगर आप सामने वाले के भाव को समझ नहीं पायेंगे, तो आप उसकी सहायता नहीं कर सकते हैं। किसी की जरूरत के वक्त काम आना ही केवल मानवता नहीं होती है, बल्कि किसी को पलट कर जवाब नहीं देना भी कई बार मानवता के घेरे में आती है। अगर किसी करीबी से आपकी बहस हो जाए और आप भी उसे पलट कर जवाब देने लगें, तो इससे रिश्ते में से मानवता चली जाती है। चुप्पी मानवता का सबसे बड़ा हथियार है। इससे आप रिश्तों के बीच कड़वाहट को दूर कर उसमें मानवता का अमृत घोल सकती हैं।
मैं ही सही हूं वाली सोच
अगर आप इस सोच से जाल में हैं, तो आप मानवता के भाव से काफी दूर हैं। रिश्ते में यह समझने की कोशिश करें कि आपके लिए आप सही हैं और सामने वाले व्यक्ति के लिए वो खुद सही है। सिर्फ मैं ही सही वाली सोच, आपको जीवन में अकेला कर देती है। इस सोच के साथ आप अगर अपने परिवार या दोस्तों के बीच भी रहती हैं, तो लोग आपसे केवल ऊपरी रिश्ता निभाते हैं और दिल से दूरी आने लगती है। साथ ही आप अगर मानवता की सोच से किसी की सहायता भी करेंगे, तो उसकी गिनती दिखावटी पन में होती है।
बढ़ाएं मदद का हाथ
मदद की भावना हमेशा बनाए रखें। आप अगर अपनी जीवनशैली में मदद की भावना को जगाते हैं, तो यह आपका मानवता से रिश्ता मजबूत करती है। अगर आपको लगे कि किसी को आपकी जरूरत है, तो बिना किसी संकोच के उसकी सहायता जरूरी करें। मानवता न केवल दूसरों की नजर में आपको बड़े होने का दर्जा देती है, बल्कि आपको भी अंदरूनी तौर पर सुकून देती है। मानवता से रिश्ते जोड़कर आप खुद की जीवन को एक लक्ष्य देते हैं कि एक इंसान का दूसरे इंसान से प्रेम भाव बिना किसी रिश्ते बिना किसी बंधन के भी बंधे रहना चाहिए।