सही परवरिश होना हर बच्चे का अधिकार है। लेकिन कई बार न चाहते हुए भी माता-पिता किसी न किसी वजह से बच्चों को लेकर अधिक एलर्ट बर्ताव करते हैं। इसका असर बच्चों पर नकारात्मक पड़ता है। इसलिए इन दिनों परवरिश करने की एक खास स्टाइल चर्चा में है। इसे पांडा पेरेंटिंग कहते हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
क्या है पांडा पेरेंटिंग?

आपके लिए यह समझना जरूरी है कि पेरेंटिंग का मतलब अने बच्चे को शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक और शैक्षिक विकास को बढ़ावा देना। पेरेंटिंग का साफ तौर पर यह भी मतलब है कि अपने बच्चों को सकारात्मक ऊर्जा के साथ भविष्य की तरफ आगे लेकर जाना।पेरेंटिंग के कई प्रकार है, लेकिन इन दिनों पांडापेरेंटिंग की चर्चा सबसे अधिक हो रही है। इस पेरेंटिंग के तरीके में माता-पिता अपने बच्चे को अनुशासन में रखने के साथ उन्हें आजादी भी देते हैं। इस तरीके में बच्चे अपने फैसले खुद से लेते हैं। इस तरीके में माता-पिता पालन-पोषण में बहुत स्नेह और समर्थन पर देते हैं। इसका नाम "पांडा" से लिया गया है क्योंकि पांडा जानवर अपने बच्चों के प्रति बहुत स्नेही होते हैं, लेकिन साथ ही वे बच्चों को स्वाभाविक रूप से उनकी स्वतंत्रता और विकास के लिए छोड़ देते हैं।
भावनाओं का महत्व

इस पेरेंटिंग स्टाइल में भावनाओं को अधिक महत्व दिया जाता है। साथ ही इसमें बच्चों को बहुत अधिक प्रोटेक्टिव नहीं रखा जाता है। खास तौर पर बच्चों को यह सिखाया जाता है कि उन्हें उनकी मुश्किल का सामना खुद ही करना है। ऐसा करने से बच्चे मुश्किल हालात में खुद को संभालना सीखते हैं। इससे यह होता है कि उनके अंदर चिड़चिड़ापन कम होता है और भावनात्मक तौर पर बच्चे मजबूत होते हैं।पांडा पेरेंटिंग में माता-पिता अपने बच्चों को बिना दबाव के प्यार और समर्थन देते हैं। बच्चों के निर्णयों और गतिविधियों में मदद करने के बजाय, वे बच्चों को अपने निर्णय लेने की स्वतंत्रता देते हैं।
रिश्ते में लचीलापन

इस पेरेंटिंग के तरीके में माता-पिता बच्चे को यह नहीं सिखाते हैं कि उन्हें कब और क्या करना है। इसमें माता-पिता बच्चों के फैसले को समझने की और उनका साथ देने की कोशिश करते हैं।यह पेरेंटिंग शैली बच्चों को उनके खुद के रास्ते पर चलने का अवसर देती है, जिससे बच्चों को अपनी गलतियों से सीखने का मौका मिलता है। साथ ही माता-पिता अपने बच्चों को उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए प्रेरित करते हैं, बजाय इसके कि वे हर कदम पर उनकी दिशा को नियंत्रित करें।
बच्चों पर कंट्रोल नहीं

इस पेरेंटिंग के तरीके में बच्चे पर कंट्रोल नहीं रखा जाता है। बच्चों को सोचने, बोलने और साथ ही अपने अनुसार जीने की आजादी होती है। उन पर खाने को लेकर घूमने को लेकर कंट्रोल नहीं रखा जाता। इस पेरेंटिंग के तरीके में माता-पिता बच्चों पर हक नहीं जताते हैं, बल्कि उनका सपोर्ट करते हैं। पांडा पेरेंटिंग में माता-पिता बच्चों के लिए मार्गदर्शन और समर्थन प्रदान करते हैं, लेकिन यह बहुत सख्त या नियंत्रक नहीं होती। यह लचीलापन बच्चों को उनके खुद के फैसले लेने की स्वतंत्रता देता है।
रिश्ते में मजबूती

जाहिर सी बात है कि जब बच्चों को आप आजादी के साथ जीने की सीख देते हैं और उनके साथ भी ठीक वैसा ही बर्ताव करती हैं, तो इससे माता-पिता के साथ रिश्ते में मजबूती आती है। क्योंकि इस पेरेंटिंग के तरीके में बच्चे को खुद के ऊपर किसी भी तरह का दबाव महसूस नहीं होता है। साथ ही बच्चे किसी भी समस्या को लेकर माता-पिता की सलाह को समझने और उस पर चलने के लिए तैयार रहे हैं। ध्यान दें कि किसी भी रिश्ते में मजबूती तब आती है,जहां पर एक दूसरे के साथ किसी भी हालात में साथ खड़े रहने और उसका सामना करने की हिम्मत आती है। पांडा पेरेंटिंग यह शब्द उन माता-पिता के बारे में भी कहा जा सकता है जो अपने बच्चों को बहुत ज्यादा सख्ती से नियंत्रित नहीं करते, बल्कि उन्हें स्वाभाविक रूप से विकसित होने का मौका देते हैं, जैसे पांडा अपनी संतान को ज्यादा दबाव में नहीं डालते।
रिश्ते में कम होता तनाव
पांडा पेरेंटिंग में रिश्ते में कम तनाव रहता है। इस पेरेंटिंग में बच्चों पर किसी भी बात को लेकर अत्यधिक उम्मीदें नहीं डाली जाती है। इससे परिवार के बीच किसी भी तरह का तनाव नहीं आता है और बच्चों को यह एहसास दिलाया जाता है, वह प्यार और देखभाल से घिरे हुए हैं। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। इस पद्धति में माता-पिता बच्चों से खुलकर बातचीत करते हैं, जिससे पारिवारिक रिश्तों में विश्वास और समझ बनी रहती है।