बच्चों को अनुशासन के जरिए जिम्मेदारियों का एहसास कराना बेहद जरूरी है, लेकिन उससे पहले ये जानना जरूरी है कि उन्हें अनुशासन सिखाने का आपका तरीका कैसा है। आइए जानते हैं बच्चों में अनुशासन और जिम्मेदारियों की इस जुगलबंदी को आप कैसे हल कर सकती हैं।
सख्ती से नकारात्मकता का जहर न घोलें
गौरतलब है कि अनुशासन का अर्थ होता है बच्चों को अपनी भावनाएं और व्यवहार को प्रबंधित करना सिखाने के लिए प्रोत्साहित करना। स्पष्ट शब्दों में आप इसे आत्म-निगरानी भी कह सकती हैं, जिसकी अपेक्षा पैरेंट्स अपने बच्चों से करते हैं। हालांकि अक्सर देखा गया है कि बच्चों को समझाने या अनुशासन सिखाने के नाम पर उनसे सख्ती की जाती है, जिससे बच्चों में जिम्मेदारी की बजाय नकारात्मकता आ जाती है। इस सिलिसिले में चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट केतकी बनसोडे कहती हैं, “सख्ती करने या उन्हें दंडित करने से पैरेंट्स न सिर्फ अपने बच्चे के साथ अपने मधुर संबंधों पर फुल स्टॉप लगा देते हैं, बल्कि अपने बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को भी चोट पहुंचाते हैं। इससे होता यह है कि बच्चा हमेशा के लिए डर के साये में चला जाता है। कई बार इससे बचने के लिए बच्चे झूठ बोलना भी सीख जाते हैं, जो आगे चलकर पैरेंट्स के लिए काफी नुकसानदेह साबित होते हैं।”
बच्चों के तरीकों को न समझें बदतमीजी
इसमें दो राय नहीं कि किसी भी सिचुएशन को हैंडल करने के लिए बच्चे काफी छोटे होते हैं, ऐसे में उन्हें सिर्फ एक तरीका सुझता है, और वो होता है चींख-चिल्लाकर अपनी बात मनवाने का, जिसे अक्सर पेरेंट्स बच्चों की बदतमीजी समझ लेते हैं। फैमिली का टूटना हो, या नए भाई-बहन का आना हो, नई जगह जाना हो या नए स्कूल में नए बच्चों से मिलना हो, ये सारी परिस्थितियां कई बार बच्चों को निराश कर देती हैं, जिसे बच्चे ठीक से व्यक्त नहीं कर पाते। ऐसे में अनुशासन की छड़ी को अपने से दूर रखकर आपको यह समझना होगा कि आपके बच्चे की परेशानियां क्या हैं? क्या उसे आपका अनुशासन सिखाने का तरीका समझ में आ रहा है? क्या उसका मेंटल लेवल आपकी बातों को समझने में कामयाब है? याद रखिए जिस तरह हर बच्चा एक-दूसरे से अलग होता है, उसी तरह अनुशासन को समझने की क्षमता भी हर बच्चे में अलग-अलग होती है। इसके अलावा अनुशासन को समझने की उनकी एक उम्र भी होती है। उदाहरण के तौर पर तीन साल से छोटी उम्र के बच्चों से आप अनुशासन की उम्मीद नहीं कर सकतीं, बल्कि उनके साथ आपको धैर्य रखना होगा।
बच्चों को अपनी धमकी से रखें दूर
अक्सर यह भी देखा गया है कि बच्चे जो भी सीखते हैं, वो अपने से बड़ों से सीखते हैं। जब वे किसी के साथ कोई व्यवहार कर रहे होते हैं, तो उनमें आधे से ज्यादा उनके बड़ों की नकल शामिल होती है। ऐसे में जरूरी है कि बड़े, बच्चों के लिए आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करें, जिससे वे वही सीखें। बच्चों को मैनर्स सिखाते समय उन पर झुंझलाने या नाराज होने की बजाय उन्हें इसके परिणाम बताएं। यदि आपको बच्चे की कोई बात से आप खुश नहीं हैं, तो इसे गलती से भी चेहरे पर न लाएं, वरना बच्चों को लगेगा कि आपने उन्हें स्वीकार नहीं किया। इसके अलावा किसी बात पर गुस्से में डांटने फटकारने की बजाय प्यार से समझाएं। और हां, बच्चों की गलतियों पर या उन्हें अनुशासन सिखाने के नाम पर उन्हें धमकी कतई न दें। इससे बच्चे हठी हो सकते हैं। इस विषय में चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट केतकी बनसोडे कहती हैं, “बच्चों पर चिल्लाना या उन्हें धमकाना, उनके सामने आपकी हताशा ही दिखाता है और आपकी ये कमजोरी बच्चों में सकारात्मक परिवर्तन नहीं ला सकती।”
बच्चों को भी दें थोड़ा स्पेस
यदि आप चाहती हैं कि बच्चे अनुशासन के साथ जिम्मेदारियां लेना सीखें तो आपको उन्हें बच्चा समझने की बजाय घर का एक जिम्मेदार सदस्य समझना होगा। साथ ही परिवार के लिए नियम बनाते समय उनकी बातों को भी प्रमुखता देनी होगी। हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि आप उनकी हर छोटी-बड़ी बचकानी बातों को प्राथमिकता दें, लेकिन उनकी बातों को उनके धरातल पर उतरकर समझना होगा। अक्सर देखा गया है कि जब बच्चे आक्रामक हो जाते हैं, तो अकेले खेलते हैं, ऐसे में उनके अकेलेपन को कुछ समय के लिए स्पेस दें। ये थोड़ा सा वक्त उसे आत्म-विश्लेषण करना सिखाएगा। जहां तक संभव हो, अपने बच्चों को दूसरों के सामने डांटने-फटकारने की बजाय उसे समझने की कोशिश करें। आप चाहें कितनी भी व्यस्त हों, लेकिन उनके लिए समय निकालना आपकी प्रॉयोरिटी है, और ये बात आपको समझनी ही होगी। ऐसे में बच्चे हैं, तो बच्चों के साथ खेलें, वाले कॉन्सेप्ट को भूलकर कुछ देर के लिए आप भी उनके साथ बच्चा बन जाएं।