दादी-नानी के साथ बिताया हुआ बचपन घने पेड़ की छाव जैसा रहता है। जहां पर बर्फ का गोला खाने के लिए दादी-नानी से मिली हुई चवन्नी की कीमत हमारे जीवन में सोने के सिक्के की समान थी। घर से विदाई के वक्त आंखों में आंसू लिए दादी-नानी अपनी साड़ी के पल्लू से बंधे हुए सिक्कों को निकालकर हमारे हाथ में थमाती और माथा चूमती, तो ऐसा प्रतीत होता है कि ममता का अपार सागर धरती पर उमड़ा हुआ लगता था। बड़े होने के बाद जब बचपन की याद आती है, तो नानी-दादी के बाहों के झूले के साथ कई ऐसी चीजें हैं, जो हमें आज भी दादी-नानी के अपार प्रेम का अहसास दिलाती है। आइए जानते हैं विस्तार से।
जादुई बक्सा
जी हां, जादुई बक्सा। नानी और दादी के कमरे में कई सारे कपड़ों और रजाई से ढका हुआ एक बक्सा हुआ करता था। छुट्टी पर गांव आने पर इस नहाने के बाद सबसे पहले दादी और नानी के कमरे में जाकर उस बक्से के पास बैठ जाया करते थे और सोचते थे कि शायद इस बक्से को खोलता हुआ देखें और इसमें से कोई मन मोहक चीज बाहर आए। एक दिन तपती हुई दोपहर में हाथ पंखा हिलाते हुए दादी या फिर नानी जब अपना बक्सा खोलती, तो इसमें से खिलौने वाली गुड़िया, मिठाई या फिर नया कपड़ा निकलता। दादी और नानी का यह जादुई बक्सा ममता के भंडार से भरा हुआ रहता।
खुशियों की अलमारी
दादी और नानी की अलमारी पर हमारी नजर तब जाती, जब दादी और नानी के कमर में बंधी हुई कई सारी चाबियों में खनखनती हुई चाबी चेहरे पर खुशियां लेकर आती थीं। ठंड के मौसम में दादी या फिर नानी जब भी अलमारी के पास जाती, तो ठंड से कांपते हुए शरीर पर उनके हाथों की बनी हुई रजाई या फिर स्वेटर से राहत मिलती। इतना ही नहीं, उनकी इसी अलमारी से गांव की दुकान पर लमनचूस और नमकीन खाने के लिए पैसे भी मिलते थे। दादी और नानी की इस अलमारी में खुशियों का खजाना छिपा होता।
झुमका और कंगन
झुमका और कंगन को जब भी अपने मां के हाथों में देखती हूं, तो मां के हाथों में दादी और नानी के हाथ का स्पर्श महसूस होता है। मां अपने दिनों को याद कर बताती हैं कि दादी ने शादी के बाद उन्हें शगून के तौर पर मुंह दिखाई में झुमका दिया था और नानी ने मां की विदाई के समय कंगन के साथ अपनी यादों को बांध कर मां के हाथों में पहनाया था। मां ने झुमका और कंगन को इन दिनों अपनी अलमारी के छोटे से डिब्बे में बंद रखा है और मुझे कहा है कि झुमका और कंगन मेरी अमानत हैं। मेरे लिए दादी और नानी का आशीर्वाद है।
हाथों का स्वाद
जब भी घर के खाने की याद आती है, तो मां के हाथों का बना हुआ सादा दाल-चावल भी स्वाद से भरा होता है। मां बताती हैं कि नानी ने उन्हें खाना बनाना सिखाया है और दादी ने उन्हें मसालों की परख करना सिखाया है। यानी ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मां के हाथों के स्वाद में दादी और नानी के हाथ के स्वाद भी बिखेरा हुआ है।
रसोई घर के बर्तन और सिल बट्टे
ननिहाल जाती हूं, तो रसोई घर में नानी के होने की मौजूदगी पुराने बर्तनों पर लिखे हुए उनके नाम और तारीख पर दिखाई देती है। सिल बट्टे पर भी नानी के हाथों की छाप सी महसूस होती है। दादी के घर का भी यही हाल मालूम होता है। दादी के चमकते हुए बर्तनों में भी उनके नाम की चमक खनखनती है, मिक्चर के बगल में रखा हुआ दादी का सिल बिट्टा चटनी और मसालों का स्वाद भी बढ़ा देता है।