कामकाजी पेरेंट्स और न्युक्लियर फैमिली होने के कारण आजकल बच्चों को डे-केयर में रखने का चलन काफी बढ़ गया है। ऐसे में आइए जानते हैं बच्चों को डे-केयर में डालने से पहले किन बातों का ख्याल रखा जाना चाहिए।
बच्चों की देखभाल के लिए कितने बेहतर हैं डे-केयर?
इसमें दो राय नहीं कि आजकल की न्युक्लियर फैमिली में जब दोनों पैरेंट्स ऑफिस में होते हैं, तो बच्चों का ख्याल कौन रखे यह सवाल खड़ा हो जाता है? फिलहाल शहरी संस्कृति में इस सवाल का जवाब बनकर उभरा है डे-केयर सेंटर, जहां बच्चों का सुबह से शाम तक ख्याल रखा जाता है। हालांकि बच्चों के उचित देखभाल के साथ इसकी सबसे बड़ी वजह है डे-केयर का खर्च, जो आया की बजाय सस्ता और सुलभ होता है। कुछ पैरेंट्स इसलिए भी अपने बच्चों को डे-केयर में डालना बेहतर ऑप्शन समझते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है अकेले रहने की बजाय उनके बच्चे दूसरे बच्चों में घुलना-मिलना सीखेंगे। कुछ प्रीस्कूलर के लिए डे-केयर पर निर्भर होते हैं। हालांकि कुछ डे-केयर में बहुत छोटे बच्चों को रखा जाता है, जहां उनके खान-पान, नींद और दूसरी गतिविधियों पर खास ख्याल रखा जाता है, जिससे मैटरनिटी लीव के तुरंत बाद ऑफिस ज्वाइन करनेवाली मांओं को इस बात की तसल्ली रहे कि उनका बच्चा सही हाथों में हैं। हालांकि अगर आप भी अपने बच्चे के लिए एक बेहतर डे-केयर की तलाश में हैं, तो आपको अपने बच्चों को किसी भी हाथों में सौंपने से पहले इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
मैटरनिटी लीव के तुरंत बाद डे-केयर का चुनाव
मैटरनिटी बिल के अनुसार अधिकतर ऑफिसेस में महिलाओं को छः महीने की मैटरनिटी लीव मिलती है। हालांकि बच्चे के साथ रहते हुए मांएं उनके खान-पान के साथ उनके सोने-जागने और रोने या दूसरी एक्टिविटीज के बारे में अच्छी तरह जान लेती हैं। ऐसे में अगर आपको मैटरनिटी लीव के तुरंत बाद अपने बच्चे को डे-केयर में छोड़ना है, तो इस बात का खास ख्याल रखें कि जिस डे-केयर में आप अपने बच्चे को रखने की सोच रही हैं, क्या वो उसके लिए सही होगा? उदाहरण के तौर पर दूध पीने के बाद बच्चा सोता है या नहीं या उसे नींद कब और कितनी आती है? उसकी नींद पूरी होती है या नहीं? ऐसे कई सवाल हैं जिनका ख्याल रखा जाना जरूरी है। अगर बच्चे बड़े हैं तो उन्हें किस तरह का भोजन दिया जा रहा है? आम तौर पर बड़े बच्चों के लिए पैरेंट्स घर का खाना ही देते हैं, लेकिन इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिए कि उन्हें सही समय पर खाना खिलाया जाए, उनकी खान-पान की आदतों पर खास ख्याल रखा जाए और इस बात का सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाए कि बच्चे घर से आए टिफिन का सारा भोजन करें। गौरतलब है कि बहुत छोटे बच्चों के लिए बने डे-केयर में हर बच्चे के लिए एक व्यक्तिगत दाई मां होती हैं, जो उनकी आवश्यकताओं को पूरा करते हुए उनका खास ख्याल रखती हैं।
बच्चों के फिजिकल और मेंटल फिटनेस में सहायक
वैसे डे-केयर में बच्चों के लिए किसी तरह का कोई खास शेड्यूल नहीं होता। उनका उद्देश्य बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ इंगेज रखना होता है, जिससे उनका समय बीत जाए और वो रोएं भी नहीं। हालांकि इसका एक लाभ यह भी है कि बच्चे स्मार्ट फोन या तकनीकी वस्तुओं से दूर रहते हैं और लोगों से घुलते-मिलते हुए जल्दी बोलना सीखते हैं। हालांकि कुछ डे-केयर सेंटर्स ऐसे भी होते हैं, जो सिर्फ 5 या 6 साल के बच्चों को ही रखते हैं। ऐसे में अगर आप भी अपने बच्चे के लिए ऐसे किसी डे-केयर की तलाश में हैं, तो यह देखें कि स्कूली एक्टिविटीज के साथ वह उनके फिजिकल और मेंटल फिटनेस पर कितना ध्यान देते हैं? बच्चों के साथ उनकी बॉन्डिंग कैसी हैं? हालांकि कुछ डे-केयर बच्चों से इतने घनिष्ट संबंध बना लेते हैं कि अगर आप उन्हें छोड़ना चाहें तब भी आपके बच्चे उन्हें नहीं छोड़ पाते। बतौर पैरेंट्स आपके लिए यह जुड़ाव बेहद जरूरी है, क्योंकि इस तरह वे लगाव समझते हैं।
सुरक्षा भी है महत्वपूर्ण
हालांकि संबंध, प्रेम, सहानुभूति, भावनाओं और स्कूली एक्टिविटीज के अलावा जो सबसे जरूरी चीज है, वो है सुरक्षा। दिन के महत्वपूर्ण 9 घंटे अपने पैरेंट्स से दूर रहनेवाले बच्चे किस माहौल और किन लोगों के साथ हैं, इसका ख्याल रखा जाना बेहद जरूरी है। उदाहरण के तौर पर अगर आपके बच्चों को खुली जगह की बजाय छोटी सी बंद जगह में ढ़ेर सारे बच्चों के साथ रखा जा रहा है, तो हो सकता है आपके बच्चे को किसी तरह का कोई इंफेक्शन या स्वास्थ्य समस्याएं हो जाए। यह भी हो सकता है वो चिड़चिड़ा हो जाए और उसे हर जगह घुटन होने लगे। कई बार स्वास्थ्य समस्याओं के अलावा बच्चों के साथ दुर्व्यवहार भी किए जाते हैं, जिनके वीडियोज आए दिन आप देखती होंगी। ऐसे में अपने बच्चे के लिए सर्वोत्तम डे-केयर का चुनाव करते समय न सिर्फ सावधानी बरतें, बल्कि उसके आस-पास के वातावरण पर भी नजर रखें। विशेष रूप से ये भी देखें कि जहां आपका बच्चा रहेगा, वहां उसे नेच्युरल धूप के साथ ताजी हवा और खूबसूरत नेचर का साथ मिले। इसके अलावा यदि वे डे-केयर सेंटरों के राष्ट्रीय मानकों और कानूनों का पालन करते हैं तो यह सबसे अच्छी बात है।
पैरेंट्स के लिए मानसिक तैयारी है जरूरी
पहले बच्चे के साथ मां बनने का पहला एहसास बेहद खास होता है। ऐसे में उसे अपने से दूर रखना काफी पैरेंट्स के लिए मुश्किल हो जाता है। अगर आपको अपने बच्चे के लिए एक बेहतर डे-केयर मिल गया है, लेकिन आपको उसे वहां छोड़ने में परेशानी हो रही है, तो एक बार अपने आपसे पूछें कि क्या आप सचमुच अपने बच्चे से दूर रहने को तैयार हैं या वक्त के साथ आपको इसकी आदत पड़ जाएगी? अगर बच्चे को डे-केयर में डालने के बावजूद आप अपने काम पर फोकस नहीं कर पा रही हैं, तो आपको एक बार एक्सपर्ट्स की राय लेनी चाहिए। हालांकि कई डे-केयर इसके लिए वर्कशॉप भी ऑर्गनाइज करते हैं, जिससे बच्चों के साथ उनके पैरेंट्स के लिए भी यह आसान हो। सच पूछिए तो अपने बच्चे से दूरी के बारे में सोचकर ही हर पैरेंट्स की जान सूखने लगती है, लेकिन अपने ऑफिस वर्क के कारण उन्हें ये कठिन निर्णय लेने ही पड़ते हैं।
डे-केयर के फायदे और नुकसान
डे-केयर के कई फायदे हैं, जिनमें आर्थिक ही नहीं सामाजिक फायदे भी जुड़े हैं। जैसा कि अभी हमने बताया घर पर बच्चे के लिए आया रखने के मुकाबले डे-केयर काफी सस्ता होता है। इसके अलावा बच्चे जहां अन्य बच्चों के साथ घुलते-मिलते हैं, वहीं उनके पैरेंट्स को भी आपस में मिलने का मौका मिलता है। दूसरे पैरेंट्स से बातचीत के जरिए उन्हें बच्चों की उन आदतों के बारे में जानने का मौका मिलता है, जिससे वे अब तक अनजान थे। इसके अलावा दूसरे बच्चों के साथ रहकर आपके बच्चे में शेयरिंग और केयरिंग की भावनाओं के साथ क्रिएटिविटी भी आती है। इसमें दो राय नहीं कि डे-केयर सेंटर्स के कई फायदे हैं, लेकिन जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह डे-केयर के फायदों के साथ, उसके कुछ नुकसान भी हैं। उदाहरण के तौर पर कई डे-केयर सेंटर में आपके बच्चे की आदतों को प्रभावित किया जाता है, जो कई पैरेंट्स को उचित नहीं लगता। जैसे बच्चों को कब दूध पीना है, कब छोड़ना है, कब सोना है और कब जागना है। यह कुछ आदतें हैं, जिन्हें वे प्रभावित करते हैं और उसका खामियाजा पैरेंट्स को भुगतना पड़ता है। इसके अलावा कई बार ऐसा भी होता है कि लंबे समय तक पैरेंट्स से दूर रहने के कारण बच्चों का लगाव उनसे कम हो जाता है। कई बार तो बच्चों का व्यवहार पैरेंट्स के लिए इतना रूखा हो जाता है कि वे चाहकर भी अपने बच्चे से अपनत्व नहीं बना पाते। ऐसे में अगर आप भी अपने बच्चे के लिए एक बेहतर डे-केयर की तलाश कर रही हैं, तो सिलेक्शन से पहले इन बातों पर विचार करना मत भूलिए।