इसमें दो राय नहीं कि हमारी दादी-नानी का जीवन सादगी और समझदारी से भरपूर था। उनकी बचत करने की आदतें आज भी हमें बहुत कुछ सिखाती हैं। आइए जानते हैं उनके बचत के कुछ तरीके और उनसे मिली सीख के बारे में।
जिएं किफायत से भरपूर जिंदगी
हमारी दादी-नानी ने हमें सिखाया कि कम में भी खुश और संतुष्ट कैसे रहा जा सकता है। फिजूलखर्ची से दूर और सादगी से भरपूर उनके जीवन से जुड़ी ऐसी कई बातें हैं, जिनसे आप और हम बहुत कुछ सिख सकते हैं। हालांकि इन सबमें सबसे पहले बात आती है उनके किफायत से भरपूर जिंदगी की। जरूरत से ज्यादा खर्च न करना और फिजूलखर्ची से बचना, यह उन्हें बहुत अच्छी तरह आता था। यही वजह है कि हमारे बुजुर्ग कपड़े, बर्तन, फर्नीचर, आदि को जितना हो सके, लंबे समय तक इस्तेमाल करते थे। हालांकि उससे हमें ये सीखना चाहिए कि गैरजरूरी चीजों पर खर्च करने की बजाय हमें अपनी प्राथमिकताएं समझनी चाहिए, क्योंकि थोड़े में संतुष्ट रहना ही असली समृद्धि है।
जितनी चादर हो, उतने ही पैर फैलाएं
किफायती जिंदगी जीने के साथ-साथ वे हर छोटी-छोटी चीजों को संजोकर रखना बखूबी जानती थीं। उदाहरण के तौर पर कपड़ों के बचे टुकड़े से रुमाल बनाना हो या घर के पुराने सामान से नई चीजें बनाना हो। उनके हाथों से बनी रजाइयां और गद्दे तो आज भी कई घरों की शान है। हालांकि इससे हमें वे ये सिखाती हैं कि हर चीज उपयोगी है, बशर्ते उसे सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए। इसके अलावा चाहे कितनी भी विकट परिस्थिति हो, उन्होंने किसी से कर्ज लेकर अपनी जरूरतें पूरी नहीं की। ‘जितनी चादर हो, उतने ही पैर फैलाने चाहिए’ वाली उक्ति को चरितार्थ करते हुए उन्होंने सदैव कमाई के हिसाब से ही साधन जुटाएं।
स्वच्छता के साथ स्वास्थ्य का रखा ख्याल
अपने परिवार की जरूरतों का ख्याल रखते हुए घर पर सब्जियां उगाने के साथ अचार, पापड़, मुरब्बे, और बड़ियां बनाना न सिर्फ उनका प्रिय शौक था, बल्कि स्वस्थ और स्वच्छ भोजन की सुनिश्चितता के साथ पैसों की बचत का भी अच्छा तरीका था। इसके अलावा वे हमेशा स्थानीय और मौसमी चीजों का ही उपयोग करती थीं, जिनमें बाजार से सस्ते और आसानी से उपलब्ध फल, सब्जियां और अनाज शामिल होते थे। दरअसल मौसमी और स्थानीय चीजें सस्ती होने के साथ-साथ पोषण से भी भरपूर होते हैं। सच पूछिए तो खर्च कम करने का उनका यह शानदार तरीका था।
पर्यावरण के साथ पैसों की भी बचत
ढ़ेर सारे हुनर रखनेवाली हमारी दादी-नानी भले ही पैसे नहीं कमाती थीं, लेकिन पैसे बचाना बखूबी जानती थीं। वे घर खर्च के लिए मिले पैसों से थोड़े-थोड़े पैसे बचाकर जरूर रखती थीं, जो मुश्किल वक्त में परिवार के काम आते थे। इससे हम सबको ये बात सीखनी चाहिए कि जरूरतें चाहें कितनी भी बड़ी हों, उसकी तैयारी छोटी-छोटी चीजों से ही करनी चाहिए। इसके अलावा पुराने कपड़े, प्लास्टिक की बोतलें, जूते, और अन्य सामान, जिन्हें हम आम तौर पर बेकार कहकर फेंक देते हैं, उनका वे बेहद खुबसूरती से उपयोग करती थीं। इससे वे पर्यावरण के साथ पैसों की भी बचत करती थीं।
जानती थीं जरूरतों और इच्छाओं में अंतर
हमारी बुजुर्गों को घरेलू उपचार और साधारण जीवनशैली के साथ स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी बखूबी आता था। यही वजह है कि उन्हें डॉक्टर की जरूरत भी कम ही पड़ती थी। इसके अलावा सामूहिक भावना के साथ जरूरतमंदों की मदद करना और पड़ोसियों के साथ सामान साझा करते हुए उनके काम आना भी वे अच्छी तरह जानती थीं। इससे वे हमें ये सिखाती हैं कि जितना हम दूसरों को देंगे, उतना ही समाज में सहयोग और मदद की भावना बढ़ेगी। इसी के साथ आवश्यकताओं और इच्छाओं के बीच के अंतर को भी वे बखूबी जानती थीं। यही वजह है की वे अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखते हुए, अपनी जरूरतों पर ध्यान देते हुए वही चीजें खरीदती थीं, जिनकी उनके परिवार को जरूरत होती थी। हालांकि इससे हमें ये सीख मिलती है कि हमें अपने मन का गुलाम होने की बजाय अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाना आना चाहिए।
प्रकृति के सीमित संसाधनों का सम्मान
प्रकृति के सीमित संसाधनों का सही उपयोग करते हुए वे बिजली और पानी की बचत पर विशेष ध्यान देती थीं। दिन में सूर्य के प्रकाश का उपयोग करना, पानी को बेकार न बहाना और बिजली का कम से कम उपयोग करना उनकी आदतों में शामिल था। बचत के साथ वे पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी बखूबी निभाती थीं। इसके अलावा उनकी सबसे बड़ी खासियत थी उनका आत्मनिर्भर होना। अपने घर के कामों के लिए वे कभी मशीनों पर निर्भर नहीं रहीं, बल्कि घर के सारे कामों के साथ उनकी साफ-सफाई, सिलाई, बुनाई
ये सभी काम वे खुद करती थीं। विशेष रूप से पुराने कपड़ों को सिलकर या सुधारकर उन्हें नए जैसा बना देना उनकी खासियत थी।
संयम और धैर्य का दामन नहीं छोड़ा
स्वयं से पहले परिवार की जरूरतों को प्राथमिकता देते हुए वे संयम से काम लेती थीं और जल्दबाजी में कभी कोई निर्णय नहीं लेती थीं। उदाहरण के तौर पर अगर कोई महंगी चीज खरीदनी हो, तो वे उसके लिए पहले पैसे इकट्ठा करती थीं और सही वक्त का इंतजार करती थीं। उनसे हमें ये सीख मिलती है कि संयम और धैर्य से जीवन में कुछ भी हासिल किया जा सकता है। विशेष रूप से पैसों के मामलों में तो धैर्य से काम लिया जाना चाहिए, क्योंकि धैर्य से लिया गया फैसला हमेशा बेहतर और सटीक होता है। अपने अनुभवों से दूसरों की जिंदगी गुलजार करनेवाली हमारी दादी- नानी की एक खासियत यह भी रही है कि उन्होंने अपने बच्चों या छोटों से सिखने में भी कभी कमतरता नहीं दिखाई। आप चाहें तो इसका सबूत अपने आस-पास भी देख सकती हैं।