सोशल मीडिया के दौर में कहानियां सुनने की मशीन भी अब वही हो गई हैं और घर की दादी-नानी के पास बच्चे अब नहीं बैठते हैं, जबकि यह बेहद जरूरी है कि दादी-नानी द्वारा बच्चों को कहानी सुनाने की जो परम्परा रही है, वह बरकरार रहे। तो आइए जानें इसके बारे में विस्तार से।
जड़ों से जुड़े रहना है जरूरी
यह बेहद जरूरी है कि हमेशा बच्चों को उनकी जड़ों से जोड़ा जा सके। बच्चों को हमेशा ही जड़ों से जोड़ कर रखने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि यह किसी बच्चे की सबसे महत्वपूर्ण जरूरतों में से एक है। इसकी खास वजह यह है कि बच्चों को यह महसूस करना चाहिए कि वे जीवन से, एक परिवार से, एक कहानी से और एक जगह से जुड़े हैं। एक खास बात यह भी होती है कि हमारे जो भी बुजुर्ग लोग होते हैं, जैसे दादा-दादी, नाना-नानी, यही आमतौर पर मुख्य कहानीकार होते हैं। और इनके पास एक विरासत होती है, जिनके बारे में बच्चों को जानकारी होनी ही चाहिए।
बच्चें जानें पात्र
दरअसल, यह जानना भी बच्चों के लिए जरूरी होता है कि इन कहानियों की आवश्यकता क्यों है, साथ ही यह जानना भी जरूरी होता है कि वे कौन हैं, कहां से हैं। बच्चे खुद उन कहानियों के पात्र होते हैं और इसलिए उन्हें यह सब जानना आवश्यक है। उन्हें इस बात से अवगत होने की आवश्यकता है कि वे एक जीवन आंदोलन का हिस्सा हैं, जो उनके पहले शुरू हुआ था और उनके बाद भी जारी रहेगा। ऐसी कहानियां सुनने से बच्चों का दायरा विस्तृत होता है, वे दुनिया को अलग दृष्टिकोण से देख पाते हैं।
किस्से और कहानियों का खजाना
किस्से और कहानियां हमेशा हमारे मनोरंजन का एक हिस्सा होती हैं। ऐसे में बच्चे जब किस्से कहानियां सुनते हैं, तो निजी जिंदगी में भी वे खुद को कुछ वैसा ही महसूस करते हैं। इससे भी उनमें खुद विकास होता है, वो फिर दुनिया को एक्स्प्लोर करने के बारे में सोचते हैं। इसलिए स्टोरीटेलिंग बच्चों के लिए बेहद जरूरी है, बचपन से ही आगे बढ़ने की उनमें ललक होती है। वे आगे और अच्छे वक्ता बनने की कोशिश करते हैं। इसलिए किस्से और कहानियों को बच्चों को दादी-नानी के द्वारा सुनाने की कोशिश करनी ही चाहिए।
बुजुर्गों को होती है अधिक समझ
दादा-दादी को इसलिए भी बच्चों के साथ अधिक बातें या कहानियां सुनानी चाहिए कि कई बार उनके माता-पिता वे बातें नहीं कर पाते हैं, जो वे बच्चों को समझाना चाहते हैं। वे बच्चों से सारी बातें सीधे तौर पर नहीं कह पाते हैं, तो ऐसे में घर के बुजुर्ग कहानियों के माध्यम से आसान तरीके से बच्चों को कुछ समझाने की कोशिश कर सकते हैं। वे कहानियों के माध्यम से कठिन बातों को हल्के या आसान तरीके से बच्चे के दिमाग में डाल सकते हैं, जिससे कि बच्चे और उनके पेरेंट्स के बीच में एक कम्यूनिकेशन का माध्यम बना रहा, एक पुल की तरह भी कई बार दरअसल, दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां कर जाती हैं। इसलिए भी बच्चों को अधिक समय अपने घर के बुजुर्गों के साथ बिताने देना चाहिए।
बुजुर्ग नहीं करते हैं जज
एक और खास बात जो बुजुर्गों के साथ होती है कि उन्होंने जीवन में बहुत कुछ देख लिया होता है, फिर उन्हें अपने को न तो किसी के सामने प्रूव करना है या साबित करना है या फिर किसी भी काम में उन्हें दर्शाना है कि हम परफेक्ट हैं, साथ ही उन्हें किसी को भी जज करने की जरूरत नहीं होती है, खासतौर से बच्चों के मामले में भी वे ऐसे ही होते हैं कि बच्चों को जज नहीं करते हैं, इसलिए वे बच्चों के साथ एक दोस्ताना व्यवहार बना पाते हैं और फिर बच्चे भी उनके साथ एक कम्फर्ट महसूस करते हैं और मुमकिन है कि कहानियां सुनते हुए शायद वे कुछ ऐसी बातें अपने घर के बुजुर्गों को बता दें, जिन्हें बताने में वे अपने पेरेंट्स से झिझकते हों, क्योंकि उनके पेरेंट्स के पास समय भी नहीं होता है और न ही बच्चे खुल कर अपनी बात रख पाते हैं, तब ये कहानियां भी एक माध्यम बन सकती हैं कि बच्चे अपने मन की बात को खुल कर कह दें और बच्चे भी खुद को खुला और फ्री महसूस करें, उन्हें भी लगे कि हम किसी से आसानी से अपनी शेयर कर सकते हैं।
रोमांच का हिस्सा
हर दादा-दादी और नाना-नानी के पास उनके जीवन भर की कहानियां होती हैं। वे सभी बातें, जो साझा करने लायक होती हैं, उन्हें बच्चे को जरूर सुनाना चाहिए कि जब कभी आगे चल कर उस परिस्थिति में वे खुद रहेंगे तो किस तरह बर्ताव करेंगे। उन कहानियों में जाहिर-सी बात है कि ऐसी कई घटनाएं होंगी, जिन्हें सुन कर वे रोमाचंक महसूस करेंगे और फिर उनसे एक जुड़ाव भी महसूस करेंगे। जब उन्हें पता चलेगा कि उनके दादा-दादी और नाना-नानी की क्या उपलब्धियां रही हैं, तो वे भी शायद वैसा ही बनने की कोशिश करेंगे। उन्हें ऐसा महसूस होगा कि शायद वे किसी और ही दुनिया में झांक रहे होंगे। तो वे भी दिल से उसका हिस्सा बनेंगे और खुश होंगे।
पारंपरिक धरोहर का हिस्सा
दादा-दादी की कहानियां भी पोते-पोतियों को उनकी विरासत और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ने का एक तरीका है। इसलिए भी बेहद जरूरी है कि दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां पारंपरिक धरोहर का हिस्सा बनें और बच्चे भी इस बात से अवगत हो जाएं। तो सांस्कृतिक धरोहर का विकास हो, इसलिए भी बच्चों को कहानियां सुनानी चाहिए। साथ ही बच्चे नैतिक मूल्यों के बारे में भी अपनी समझ को विकसित कर पाते हैं, चूंकि जब कहानियां सुनते हुए पात्र में वे खुद को देखते हैं और देखते हैं कि क्यों झूठ बोलना, चोरी करना, बड़ों का अपमान करना या ऐसी कोई भी बात करना गलत होता है, तब वे भी अच्छी आदतें और अच्छे नैतिक मूल्यों से वाकिफ होने की कोशिश करते हैं। इसलिए भी यह जरूरी है।
कहानियां लम्बे समय तक जेहन में रहती हैं
बच्चों का जो दिमाग होता है, वह दिमाग में चित्रण करने में अच्छा होता है, ऐसे में जब वे कहानियां सुनते हैं, तो इससे उनकी चीजों को लेकर चित्रण के रूप में सोचने की प्रवृति बढ़ती है और उनकी दिमागी कसरत के लिए यह एक अच्छा तरीका है। इसलिए भी कहानियां उनके विकास के लिए एक अच्छा माध्यम हैं। बिस्तर पर जाते समय, खाना खाते समय या बरसात की दोपहर में ऊबते समय, ये हसीन कहानियां हमेशा मदद के लिए आती हैं। चाहे कहानियों में राजा और रानी, परी और बौने या काल्पनिक या वास्तविक जानवर शामिल हों, जब बच्चे उन्हें सुनते हैं, तो उनकी कल्पना इससे और निखरती जाती है और उनके सामने प्रस्तुत छवियों के माध्यम से वे अपने आस-पास की दुनिया में घूमना सीख लेते हैं, कहानियों के माध्यम से आप बच्चों को उन जगहों की भी सैर करा सकती हैं, जहां शायद आप उन्हें कभी लेकर नहीं गई होंगी और फिर उनके ग्रैंड पेरेंट्स जिस ड्रैमेटिक अंदाज में उन्हें यह सब बताते हैं, जाहिर है कि उनके लिए यह सबकुछ रोमांच और रहस्य से भरपूर हो जाता है, जिसे बच्चे काफी एन्जॉय करते हैं।
व्यावहारिक ज्ञान
अधिकांश औपचारिक शिक्षा थ्योरी यानी कि सिद्धांत की तरफ अधिक ध्यान देती है। लेकिन जब कहानियां होती हैं, तो कहानियां उन्हें प्रैक्टिकल जिंदगी यानी कि व्यावहारिक ज्ञान से भी रूबरू कराते हैं, इसलिए जरूरी है कि इन बातों का ध्यान रखा जाए और कहानियों का हिस्सा बच्चों को ज्यादा से ज्यादा बनाया जाए।