केरल में हाल में राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, जिसमें उन्होंने बच्चों के पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण बात जोड़ी है, जिसमें दर्शाने की कोशिश की गई है कि बच्चों के बीच लैंगिक समानता यानी जेंडर इक्वलिटी को समझना क्यों महत्वपूर्ण है। आइए विस्तार से जानते हैं बच्चों को कैसे बचपन से इससे अवगत कराएं।
सार्थक कदम उठाने की कोशिश
दरअसल, केरल में राज्य सरकार ने लैंगिक समानता का संदेश देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है और पाठ्यपुस्तकें पेश की हैं। दरअसल, इसमें कुछ तस्वीरों द्वारा संदेश देने की कोशिश की गई है। उन्होंने तस्वीर के माध्यम से दर्शाया है कि पितृसत्तात्मक समाज में एक पिता यानी पुरुष नारियल घिस रहे हैं और अपनी बेटी के लिए नाश्ता बनाने की कोशिश कर रहे और घर के पुरुष महिलाओं का घर के कामों में पूरी तरह से हाथ बटा रहे हैं। अधिकारियों का मानना है कि इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों के मन में लैंगिक तटस्थता का भाव जगाना है। उनका मानना है कि अब राज्य में स्कूल दो महीने की गर्मी की छुट्टियों के बाद खुल चुके हैं और खाना पकाने और रसोई के अन्य कामों में घर के पुरुष भी शामिल हो जाएं, इसके लिए लैंगिक विभेद से परे परिवार के सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने वाली पाठ्यपुस्तकें लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रही है। इसलिए यह एक महत्वपूर्ण कदम है और आने वाले समय में पूरे भारत में कोशिश करनी चाहिए कि बच्चों को कम उम्र से ही लैंगिक समानता का पाठ पढ़ाया जा सके।
बेटे हैं तो क्या सिखाएं आत्मनिर्भर बनना
दरअसल, यह बेहद जरूरी है कि घर में इस सोच को पूरी तरह से बचपन से ही बदल दिया जाए कि बेटे हैं, तो उन्हें घर के काम सीखने या करने की जरूरत नहीं है। उन्हें जबकि उसी तरह से आत्म-निर्भर बनाना होगा, जैसे लड़कियों को कम उम्र से ही समझाने में हम लग जाते हैं कि घर के कई सारे काम आपको करने होंगे। अगर आपके बेटे बचपन से नहीं सीखते हैं, तो आगे चल कर उनकी परेशानी बढ़ेगी ही और फिर वह कभी भी जब आत्म-निर्भर बन कर अकेले रहेंगे, तो उन्हें सिर्फ जीवन में दिक्कतें ही आएंगी और दुनिया के किसी भी किताब में ऐसा नहीं लिखा है कि लड़के को काम नहीं करना चाहिए और सिर्फ लड़कियों की ही काम करने की जिम्मेदारी है।
बिस्तर बनाने दें
कई बार हम बच्चों को इस तरह लाड़ और प्यार करने लग जाते हैं कि हम उन्हें ऐसी महत्वपूर्ण बातें नहीं बताते कि जब भी वह सुबह अपने बेड या बिस्तर से उठें तो उन्हें सबसे पहले जरूरी है कि अपना बेड बनाने को कहें, मतलब उठने के बाद, बिस्तर पर बिछे चादर की गंदगी को हटाएं और फिर चादर को अच्छे से बिछाएं, अपनी ओढ़ने वाली चादर को अच्छे से मोड़ें, तकियों को व्यवस्थित करें और अगर आपकी चादरें या पिलो कवर गंदी हो गई है, तो उन्हें धोने के लिए लॉन्ड्री बैग्स में डालें। आपको अपने बच्चों को कभी इस भरोसे पर नहीं छोड़ना चाहिए कि कोई बात नहीं, हम कर देते हैं, तुम रहने दो, शुरू से अगर वे यह सबकुछ करेंगे, तो भविष्य में भी उन्हें अपनी बीवी से यह उम्मीद नहीं होगी कि बीवी ही उनके उठने के बाद बिस्तर ठीक करें या व्यवस्थित करें, आपको खुद ऐसा करना होगा। इसलिए सुबह से ही इस अच्छे काम की शुरुआत बच्चों को सिखाएं, धीरे-धीरे इसका असर यही होगा कि वे इसे अपनी आदत में शामिल करें और भविष्य में कभी भी किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे और अपने काम को खुद से करना पसंद करेंगे।
सफाई करने की कला
कई बार आपने देखा होगा कि अगर घर में आपके बच्चे बेटियां या बेटे दोनों हैं, तो खेल लेने के बाद, हम बेटियों से कहने लगते हैं कि सामान या खिलौने उठा कर रख दो, बेटे को कभी नहीं कहते हैं, जबकि होना यह चाहिए कि बेटे और बेटियों दोनों को यह बात समझाई जाए कि खेलने के बाद जो भी गंदगी फैली है, उसे दोनों साफ करें और फिर दोनों अपने-अपने सामान को जगह पर रखें और साफ-सफाई करना दोनों की ही जिम्मेदारी हैं, जिन्हें उन दोनों को ही करना आना ही चाहिए। अगर घर की फर्श गंदी है, तो सफाई करने के लिए सिर्फ बेटी को नहीं बेटे को कहें। एक उम्र के बाद उन्हें झाड़ू लगाना, गंदगी साफ करना और बर्तन धोने की सारी जिम्मेदारी उन्हें सिखाएं, ताकि वे काम सीखें और अपनी जिम्मेदारी को समझें। एक समय के बाद उन्हें कपड़े धोना भी सिखाएं।
चीजों की बर्बादी करने से रोकें
कई बार आपने देखा होगा कि आपके बेटे को अगर बहुत अधिक लाड़ कर लिया है आपने, तो फिर वे आपकी कोई बात नहीं सुनते और उनमें चीजों को बर्बाद करने की भी एक प्रवृति आ जाती है और एक समय के बाद यह उनकी आदत में शुमार होता है और भविष्य में वे सिर्फ गलतियां और बर्बादी करने लग जाते हैं, इसलिए जरूरी है कि उन्हें चीजों की बर्बादी करने से रोकें और सिर्फ उनके सामने सिर्फ लड़कियों या बेटियों को यह न जताएं कि बेटे को इन सारी गलत आदतों को करने देना सही है, लेकिन लड़कियों को यह सब कुछ करते रहना जरूरी है, इसलिए जरूरी है कि आप चीजों को बर्बादी को रोकें और बेटे को इन सारी बातों को समझाना जरूरी है, तभी वह यह बात समझेंगे कि उन्हें भी आगे चल कर लड़के या लड़की में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करना है।
बेटे की गलती पर भी बेटियों को डांटना हरगिज नहीं
इस बात का खास ध्यान रखें कि कई बार हम बेटों की गलती की डांट भी बेटियों को लगा देते हैं और फिर बेटों को लगता है कि वे कुछ भी करेंगे और डांट उन्हें नहीं पड़ेगी, इससे वह जिद्दी और बेटियों को परेशान भी करने लग जाते हैं, जबकि इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अगर गलती हुई तो उन्हें ही डांटें, ऊपर-नीचे या अलग वाला भाव या किसी को ज्यादा तवज्जो, किसी को कम इसका भाव कभी भी नहीं आने दें, नहीं तो ताउम्र वे बाकी लोगों के साथ भी ठीक वैसे ही बर्ताव करते रहेंगे।
घर के बुजुर्गों की है अहम जिम्मेदारी
एक बात सच है कि हो सकता है कि आपके घर के बुजुर्ग अभी भी रूढ़िवादी सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं या जी रहे हैं और वे घर में पोते या नाती यानी लड़के को अधिक भाव देंगी, तवज्जो देंगी और हर चीज में वे फर्क करेंगी, ऐसा करने से भी बच्चे के दिमाग पर गलत असर हो सकता है, तो घर के बुजुर्गों की भी अहम जिम्मेदारी है कि घर के बुजुर्गों को आप समझाएं और इस भेदभाव को करने से रोकें, ताकि उनमें समझ बढ़े और बच्चों में कभी गलत विचार घर न करें।