दो सालों में बच्चों की जिंदगी में कई सारे बदलाव आये हैं, उनके लिए स्कूल की जिंदगी पूरी तरह से बदल चुकी है. लगातार ऑनलाइन क्लासेज हुए हैं और इससे बच्चों का, किसी से मिलना-जुलना भी नहीं हो पाया है. ऐसे में लेकिन अब जबकि एक बार फिर से बच्चे स्कूल जाने लगे हैं, पेरेंट्स को चाहिए कि वह थोड़ा बच्चों की मानसिकता के साथ-साथ, बाकी बातों का भी ख्याल रखें, क्योंकि काफी कुछ बदल चुका है. ऐसे में मास्क लगाने से लेकर, जो भी जरूरी चीजों का ध्यान रखना है, उस पर खास तौर से ख्याल करना जरूरी है. तो आइये जानें क्या हैं वे पांच बातें
घर में सीखी अच्छी आदतों को स्कूल में दोहराना है
बच्चे एक साल से घर के सुरक्षित माहौल में थे, लेकिन अब स्कूल भेजने का मतलब, उन्हें दूसरे बच्चों और टीचर्स और स्कूल के स्टाफ के संपर्क में लाना है. जिस वजह से बच्चों को कोरोना के संक्रमण से बचाए रखने की पेरेंट्स की परेशानी बढ़ गयी है.नवी मुम्बई के खारघर की रहने वाली पुष्पा के बच्चे रायन्स इंटरनेशनल में नौवीं और चौथी क्लास में पढ़ते हैं. उनके बड़े बेटे ने स्कूल जाना शुरू कर दिया है. पुष्पा कहती हैं
‘’लगभग डेढ़ साल से बच्चे ऑनलाइन क्लास कर रहे हैं, अब उन्हें स्कूल भेजने में डर लगता है. स्कूल वाले सोशल डिस्टेंसिंग के तहत बच्चों को बिठा रहे हैं लेकिन बच्चे दोस्ती में घुल मिल जाते हैं . टीचर्स पूरे समय उनपर नज़र नहीं रख सकती है, इसलिए मैंने अपने बेटे को समझाया है कि वह हमेशा एक डिस्टेंस में रहकर ही दोस्तों से बात करें. मास्क को हमेशा पहने रखना है. टिफिन शेयरिंग से बचना है. सिर्फ अपने घर से ले गया खाना खाना है और पानी पीना है. स्कूल से घर आने पर शॉवर लेना है. अपने कपड़ों को धोने के लिए रखना है. नहाने से पहले घर के किसी भी सामान या किसी भी सदस्यों से दूरी रखनी है. जैसे मम्मी और पापा बाहर से आने के बाद करते हैं. साफ-सफाई को लेकर भी मैंने उसे काफी कुछ समझाया है. अच्छी बात ये है कि हमने पूरे साल कोरोना से जुड़ी सारी सावधानियां बरती हैं, और बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं, तो कोरोना के लिए घर में सीखी गयी अच्छी आदतों को वे स्कूल में भी आसानी से दोहरा सकेंगे’’ .
बच्चों की मनोदशा पर सजग होना है ज़रूरी
बीते कई महीनों से घर के माहौल में पेरेंट्स की देख रेख में बच्चे क्लास कर रहे थे लेकिन अब ये नहीं होगा. ऐसे में बच्चों में चिड़चिड़ापन, इमोशनली वीकनेस की शिकायत आम हो सकती है.
मनोचिकित्सक विभा पाटिल बताती है
‘’ बच्चों को बार-बार ये बताकर पैनिक ना करें कि उन्हें स्कूल में कैसे खुद को सेफ रखना है ,बल्कि बच्चे से उसकी फीलिंग्स के बारे में बात करें. उसको स्कूल जाने को लेकर कैसा लग रहा है? कौन सी बात परेशान कर रही, कौन सी बात खुशी दे रही है. बच्चे को पॉजिटिव बातें बताए. उसे बताएं कि वो वहां गेम्स खेलेंगे. पुराने दोस्तों से मिलेंगे. उसके न्यू फ्रेंड्स भी बनेंगे. उसके लिए उसके पसंदीदा मास्क को खरीदें. नए पानी के बोतल और टिफिन दिलाएं . मार्केट में कार्टून्स के पैक में हैंड सैनेटाइजर मौजूद हैं. उन्हें उसे दें ताकि वह खुद ब खुद हाथ सैनेटाइज करने के लिए मोटिवेट हो. आपकी पॉजिटिव बातों के बावजूद, इस दौरान अगर बच्चा आपसे कहता है कि वह आपको बहुत मिस करेगा, आपके बिना नहीं रह पाएगा तो आप इमोशनल ना हो, बल्कि उसे प्यार से मुस्कुराते हुए कहें कि मैं भी आपको बहुत मिस करूंगी, लेकिन मुझे गर्व है कि आप कल से स्कूल जाएंगे और अपना ख्याल भी रखेंगे. बच्चे को मोटिवेट करें, लेकिन उसकी मनो: दशा को लेकर अलर्ट रहे. बच्चों का पूरा रूटीन बदलने वाला है ऐसे में स्कूल लाइफ से बच्चों को सहज होने में एक हफ्ते से एक महीने का भी वक़्त लग सकता है . इसके बावजूद अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे के बिहेवियर में स्कूल जाने के बाद से बहुत बदलाव आ रहा है तो एक बार उसकी काउंसलिंग करवाना सबसे सही रहेगा”.
स्कूलों की भी बढ़ेगी जिम्मेदारी
स्कूल शुरू होने के बाद पैरेंट्स ही नहीं, टीचर्स के सामने भी आ चुकी हैं .
कामोठे के कार्मेल स्कूल की टीचर रिया फर्नान्डो बताती हैं
‘’ऐसे बच्चे जिन्हें पहले से ही हेल्थ से जुड़ी दिक्कतें हैं, जैसे अधिक मोटापा,एलर्जी,अस्थमा,इम्युनिटी संबंधी कोई बीमारी तो बिना डॉक्टर की सलाह लिए पेरेंट्स उन्हें स्कूल ना भेजें. इसके अलावा खांसी और बुखार होने पर भी बच्चों को स्कूल ना भेजेने की जिम्मेदारी पेरेंट्स की होगी. पेरेंट्स को यह भी बच्चों को समझाना होगा कि अगर स्कूल में उनकी तबीयत ठीक नहीं लगती तो खुद टीचर को जाकर बताएं, क्योंकि एक टीचर के लिए यह संभव नहीं है कि वह सभी बच्चों की निगरानी रख पाए’’.
रिया आगे कहती हैं ‘’ इस बात का विशेष फोकस स्कूल मैनेजमेंट को रखना होगा कि बच्चे अपने दोस्तों के साथ फिजिकली तौर पर घुले मिले नहीं. प्रेयर्स, लंच टाइम आदि के लिए एक जगह पर बच्चों की ज्यादा भीड़ नहीं हो. क्लास एक से पांच तक के बच्चों की निगरानी के लिए अतिरिक्त स्टाफ अच्छा विकल्प होगा. बच्चों को शारीरिक ही नहीं, मानसिक तौर पर भी तैयार करने की जिम्मेदारी स्कूलों की होने वाली हैं, बच्चों का रूटीन अब स्कूल में काफी अलग तरह से होने वाला है. स्कूल में एंट्री के साथ उनकी बॉडी का तामपान नापा जाएगा.वे एक बेंच पर अकेले ही बैठेंगे. ऑनलाइन क्लासेज में उन्हें लिखने की ज़रूरत कम पड़ती थी, लेकिन अब उन्हें फिर से लिख कर सबकुछ नोट करना पड़ेगा. मोबाइल और टेबलेट से निकालकर उन्हें किताबों और कॉपियों से जोड़ना होगा, तो इन सबके लिए बच्चों को सहज बनाना आसान नहीं होगा, जिसमें समय जाएगा’’.
बनाएं हेल्दी रूटीन
कोरोना महामारी ने हम सभी को खानपान में बदलाव की ज़रूरत को समझाया. हम सभी ने अपनी डाइट में प्रोटीन और विटामिन की मात्रा को बढ़ा दी क्योंकि इम्युनिटी को बढ़ाना था. खान-पान की इस हेल्थी रूटीन को बच्चों के स्कूल जाने की भी टिफिन में बरकरार रखना है. सब्जियां, फ्रूट्स और ग्रेन्स इसमें शामिल रहे.उन्हें खुश करने लिए या स्कूल जाने की रिश्वत के तौर पर मैदा,जंक फूड या रेडीमेड फूड्स ना दें, क्योंकि अभी बच्चे की इम्युनिटी स्ट्रांग रहना सबसे ज़रूरी है, क्योंकि बच्चे अभी दूसरे बच्चों, टीचर्स और स्कूल के स्टाफ के संपर्क में आएंगे. सोशल डिस्टेंसिंग के साथ साथ इम्म्युनिटी का स्ट्रांग होना भी ज़रूरी है. हेल्थी खाने के अलावा बच्चों के बोतल में हो सके, तो हल्का गुनगुना पानी दें. गौरतलब है कि खानपान ही नहीं बल्कि बच्चे के पूरे दिन का एक रूटीन तय कर दें.स्कूल शुरू होने के बाद बच्चे के पास ज़्यादा समय नहीं रह पाएगा ऐसे में वह अच्छे नींद लें .थोड़ा बहुत एक्सरसाइज करें टीवी देखें, खेलने का एक समय हो इसको भी रूटीन में जोड़ लें.
स्कूल और पेरेंट्स मिल कर बनाएं एक कमिटी
स्कूल शुरू होने के बाद बच्चों की सुरक्षा के लिए पेरेंट्स ही नहीं, बल्कि स्कूल मैनेजमेंट भी जिम्मेदार रहेगा. ऐसे में दोनों को मिलकर एक कमिटी का निर्माण करना चाहिए, जो यह देखरेख कर सकें कि स्कूल साफ सफाई को सही तरीके से मेंटेन कर रहा है या नहीं. बच्चे की ज़रूरत की हर चीज़ उसके पेरेंट्स ने उसके बैग्स में रखी है या नहीं, ताकि उसे किसी से स्कूल में मांगना ना पड़े .बच्चे जिस गाड़ी या वैन में स्कूल ले जाया जा रहा है . वहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है या नहीं. स्कूल में फर्स्ट एड मेडिकल और आईशोलेशन की ज़रूरी सुविधा हो . इस कमिटी द्वारा एक आपातकालीन नंबर भी उपलब्ध कराया जाए अगर किसी बच्चे की तबीयत खराब होती है, तो उसे तुरंत मदद मिल सकें.