शाम के 5 बजे नहीं कि बस पूरा ध्यान इस बात पर कि बिटिया रानी अब बाहर न निकले, उसके फोन में किसके नंबर सेव हैं, वह किससे बातें कर रही हैं, किससे मिल रही है, किससे नहीं, उसके कितने पुरुष दोस्त हैं और ऐसी कई बातें और सवालों का पिटारा आप जरूर लेकर बैठ जाती हैं, जब आपकी बेटी बड़ी हो जाती है, जबकि आपके लिए इस बात को समझना जरूरी है कि बेटी की उम्र को हउआ न बनाएं, क्योंकि बेटियां बढ़ती उम्र के साथ अपनी जिंदगी में कई बदलाव लाने की कोशिश करेंगी, आपको उस बदलाव के साथ तैयार होने की जरूरत है। तो जाने लें, वे खास बातें, ताकि अपनी बेटी की जिंदगी को सामान्य बना सकें।
बात-बात पर क्रिटिकल होने से बचें
एक परेशानी, जो अमूमन माता-पिता के साथ होती है, खासतौर से तब, जब वे एक 14 साल या उससे ज्यादा उम्र की बेटी के पेरेंट्स बनते हैं, वे अपनी बेटियों की हर बात पर क्रिटिक हो जाते हैं, बेटी ने क्या पहना है, उस पर क्या अच्छा लग रहा है, नहीं लग रहा है, जैसी बातों को लेकर क्रिटिकल हो जाते हैं। वह कितनी देर फोन पर बातें कर रही है, किससे बात कर रही है, इन सब पर आप हमेशा नजर रखती हैं या फिर उनकी चीजों में कमी निकालने लगती हैं, तो जाहिर सी बात है कि यह बातें आपकी बेटी को सजा जैसी ही लगेगी, इसलिए जरूरी है कि इस बात का हउआ यानी बात का बतंगड़ या जरूरत से ज्यादा सख्ती न बरतें, आगे चल कर यह आपके लिए ही परेशानी बनेगी।
दीजिए थोड़ी प्राइवेसी भी
यह भी एक बड़ी परेशानी बड़ी होतीं बेटियों को झेलनी पड़ती है कि उन्हें उम्र के अनुसार अगर मोबाइल फोन मिल भी जाये, तो कौन क्या कर रहा है, वह किससे कितनी देर बात कर रही हैं, इन सब पर आप नजर रखना चाहती हैं, जबकि यह गलत है, एक सीमित तरीके से उन्हें समझाना अच्छा है, लेकिन हमेशा उन पर निगाहें रखना सही नहीं हैं।
शारीरिक बदलाव होंगे
जाहिर है कि किशोरावस्था में दाखिला लेते हुए शारीरिक बदलाव लड़कियों में होते ही हैं। यह एक स्वाभाविक बात है, तो इसे लेकर भी जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया देना या तनाव में रहना सही नहीं है। अगर आपको कुछ बदलाव को लेकर चीजें समझ नहीं आ रही हैं, तो किसी एक्सपर्ट से सलाह ले लें, वह अच्छा रहेगा, लेकिन दिन भर यह सोचना कि ऐसे बदलाव क्यों हो रहे हैं और उसकी वजह से अपनी बेटी के पहनावे पर भी पट्रोलिंग करना शुरू कर दें, यह भी सही नहीं है। शरीर है बदलाव होंगे, इस बात को लेकर खुद भी सहज रहें और बेटी को भी रखें।
पुरुष मित्र को लेकर सहजता
यह भी एक बड़ी दुविधा होती है, बचपन से तो आप लड़कों के साथ खेलने-कूदने की छूट अपनी बेटियों को देते हैं, लेकिन एक समय के बाद, आप ऐसा करना बंद कर देते हैं, क्योंकि आपको लगता है कि आजादी देने से बच्ची बिगड़ जायेगी, धीरे-धीरे पुरुष दोस्त से जुड़ना, मिलना-जुलना अपनी बेटी का कम करना सही नहीं है। किसी भी तरह से इनसेक्योर होने की बजाय कोशिश कीजिए खुल कर पुरुष मित्र से भी और बेटी से बातचीत या संवाद का रिश्ता बनाएं, इससे आपकी बेटी को भी हमेशा आजादी और आप उस पर विश्वास करते हैं, यह भावना उनमें आएगी।
बेटी के बर्ताव को समझें
बढ़ती उम्र, सोशल मीडिया और हर वक़्त बेस्ट दिखने और करने को लेकर भी आज कल लड़कियां काफी कुछ झेल रही हैं, ऐसे में कई बार नहीं चाहते हुए भी डिप्रेशन में चली जाती हैं और फिर आपको इसका पता भी नहीं चलता है, इसलिए जरूरी है कि आप उनके मूड स्विंग्स, चिड़चिड़ेपन और उनके स्वभाव को समझते हुए उनके साथ डील करें। उन्हें समझाएं कि सोशल मीडिया को भी दिल से न लें, उन्हें जिंदगी के सही मायने समझाएं, न कि खुद ही बॉडी शेमिंग करें।