बच्चों के जन्म के बाद से ही आजकल उनके माता-पिता उनके हाथों में मोबाइल फोन पकड़ा देते हैं, उनके ह्यूमन इंट्रेक्शंस बिल्कुल खत्म हो चुके हैं और ऐसे में उनके लिए रिश्ते सोशल मीडिया पर ही टिक गए हैं। नतीजन, अब उनके जेहन में यह बातें आ गई हैं कि रिश्ते-नाते बस पल दो की ही बातें होती हैं, ऐसा न हो, इसलिए जरूरी है कि जीवन में बच्चों को ऐसी चीजें बताएं, जो उनकी जिंदगी में ताउम्र बरकरार रहे, क्योंकि कुछ चीजें सस्टेनेबल होनी जरूरी है, तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।
मिट्टी के खिलौने
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मिट्टी के खिलौने और बचपन का साथ सस्टेनेबल रिश्ते का सबसे पुराना नाता सालों से बनाता चला आ रहा है। इन दिनों कई तरह के खिलौनोॆ ने बच्चों के खेल-कूद में जगह बना ली है और मिट्टी के खिलौने अब केवल घर में सजावट का हिस्सा बन गए हैं। ग्रामीण इलाकों अभी-भी बच्चों के बचपन की शुरुआत मिट्टी में खेलने से होती है। घर में मां-दादी या फिर नानी मिट्टी से गुड़िया, बर्तन या फिर घर बनाकर बच्चों का जुड़ाव मिट्टी के जरिए प्रकृति से और करीब करातीं थीं। शहरों में मिट्टी से खेलने का खूबसूरत नजारा केवल समुद्र के किनारे दिखाई देता है, जहां पर बच्चे और बड़े रेत से घर या फिर किले बनाते हुए दिखते हैं। आप पायेंगे कि घर की सजावट खासतौर पर गार्डन एरिया की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए मिट्टी के बर्तन और सजावट के सामान आकर्षित दिखाई पड़ते हैं। इसलिए जरूरी है कि प्रकृति के सस्टेनेबल उपहार को यानी कि मिट्टी को न केवल अपने घर में सजावट के तौर पर शामिल करें, बल्कि अपने बच्चो के जीवन से भी जोड़े। एक और आसान काम भी आप कर सकती हैं कि बच्चों को प्लास्टिक के बर्तन देने की जगह मिट्टी के गुल्लक रखने के लिए भी प्रेरित कर सकती हैं ।
साड़ी के झूले
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गांव हमेशा से इस बात का उदाहरण रहा है कि कैसे जीवन में सस्टेनेबल चीजों को शामिल करना है, जो कि न केवल प्रकृति से जुड़ने का सीधा रास्ता दिखाती है, बल्कि हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखने का संदेश भी देती है। इसी फेहरिस्त में शामिल है झूले, जो कि अक्सर गांव और शहर के मेलों में दिखाई देती है। बचपन के बस्ते में झूले की कीमत सबसे अनमोल होती है, जहां पर मां बच्चे को सुलाने के लिए अपनी साड़ी को घर के दरवाजे के दो सिरे पर बांध देती है, तो वहीं आम और नीम के पेड़ के नीचे भी कपड़े के झूले बचपन को किसी दूसरी दुनिया की सैर पर लेकर जाते हैं।
खत या डायरी लिखना
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खत लिखने का पहला पड़ाव बचपन से होकर गुजरता है, जहां पर अपने हर दिन के कार्य को लिखने की आदत स्कूल के डायरी से शुरू होती है। अफसोस कि यह सिलसिला केवल स्कूल तक बरकरार रहता है। बचपन की खत लिखने की याद तब और ज्यादा ताजा हो जाती थी, जब एक शहर से दूसरे शहर मां और पिता खत से संवाद करते थे, तब मां यह भी पूछती थी कि क्या तुम्हें पापा से कुछ बोलना है और हम पापा के लिए लंबे सामान की लिस्ट भेज देते थे। वहीं अब खत का सिलसिला धीरे-धीरे खत्म होता दिख रहा है। खासतौर पर डायरी लिखने की जगह अब व्हाट्सअप ने जगह ले ली है, जबकि डायरी से पक्की सहेली बचपन में कोई दूसरा नहीं होती थी, जहां हम अपने मन की हर बात को डायरी में नोट कर लेते थे। बचपन के लिखने के इस सस्टेनेबल तरीके को हमें आज भी अपनाना चाहिए, ताकि हम खुद से और जुड़ सकें। खुद को संभाल सकें और खुद को सुन सकें।
चौक-पट्टी और पेसिंल
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बचपन के बस्ते के सबसे पहली याद सस्टेनेबल को लेकर जो आती है, वो है चौक और पट्टी ( स्लेट)। बचपन का पहला शब्द मां होता है, तो पहला अक्षर लिखने का माध्यम चॉक और पाटी बनता है। इसके साथ ही पहली कक्षा में जाने के साथ पेंसिल पकड़ने की कला हमें किताबों की तरफ और अधिक आकर्षित करती है। चौक और पेसिंल बचपन की सबसे शुरुआती और सबसे जरूरी सस्टेनेबल चीज है, जिसे हम वक्त के साथ भूल चुके हैं।
बालों का फीता
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बचपन के बस्ते की सबसे कीमती याद मिट्टी के खिलौने, झूले की ठंडक, डायरी और खत लिखने की आदत, चौक-पट्टी और पेसिंल से बचपन को जीने की सहूलियत के बाद बचपन के उलझनों को सस्टेनेबल फीते में बांधने की कला को भी जोड़ना जरूरी है। स्कूल जाते समय या फिर किसी रिश्तेदार के घर में जाने के वक्त मां जिस तरह बाल में दो चोटी करके फीते बांधती थीं, वो हमारी सारी उलझनों को मां के प्यार के साथ फीते में कैद कर देती थी। क्यों न फिर से एक बार अपने चोटी में सस्टेनेबल फीते की इसी खूबी को बांधा जाये !