छोटी-छोटी बातों पर झुंझला जाना, गुस्से से आग बबूला हो जाना और कई बार अपनी बात मनवाने के लिए चिल्लाने लगना बच्चों के लिए आम बात हो गई है। ऐसे में कई बार पैरेंट्स समझ ही नहीं पाते कि आखिर वे करें तो करें क्या? आइए जानते हैं बच्चों के इस गुस्सैल बिहेवियर से कैसे डील करें।
बच्चों से पहले अपने गुस्से पर रखें काबू
बच्चों को समझना और उन्हें अपनी बात अच्छी तरह समझाना एक आदर्श पेरेंटिंग की पहचान है, लेकिन कई बार बच्चों का अजीब बिहेवियर पैरेंट्स चाहकर भी समझ नहीं पाते। हालांकि कई बार बच्चों का बिहेवियर उनके पैरेंट्स से इस कदर प्रभावित होता है कि उन्हें लगता है उनके पैरेंट्स जो करते हैं, वही सही है। ऐसे में अच्छी आदतों के साथ उनकी बुरी आदतें भी वो कब अडॉप्ट कर लेते हैं, पता ही नहीं चलता। इन आदतों में सबसे भयानक और खतरनाक होता है ‘गुस्सा’। ऐसा नहीं है कि आप बच्चों की इस आदत को बदल नहीं सकतीं। अच्छी पैरेंटिंग और थोड़े से प्रयास से सब कुछ संभव है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है बच्चों में आ रहे इस गुस्से की वजह जानना। बच्चों की समस्याओं को समझकर न सिर्फ आप उनसे बेहतर तरिके से डील कर सकती हैं, बल्कि उन्हें इस परिस्थिती से बाहर भी निकाल सकती हैं।
मोबाइल के एक्शन गेम्स और सोशल प्रेशर
दरअसल आज के समय में जिस तरह बच्चों पर पढ़ाई का दबाव बढ़ता जा रहा है, इससे बच्चे इमोशनली ड्रेन हो जाते हैं। ऐसे में उनके लिए स्कूल और पढ़ाई के साथ सोशल प्रेशर और फैमिली सिचुएशन से डील करना स्ट्रेसफुल हो जाता है और न चाहते हुए भी बच्चों में गुस्सा बढ़ जाता है। इसके अलावा फोन, सोशल मीडिया और मोबाइल गेम्स भी काफी जिम्मेदार हैं। इन सबके बीच रहते हुए बच्चे अपने आस-पास के लोगों से सोशियल नहीं हो पाते और वे छोटी-छोटी बातों में झुंझला जाते हैं। इसी के साथ उनके गुस्से को हवा देने में आजकल मोबाइल में खेले जा रहे एक्शन गेम्स का भी बहुत बड़ा हाथ है। अगर यह कहें तो गलत नहीं होगा कि यह गेम्स बच्चों की मेंटालिटी को प्रभावित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
सुख-सुविधाओं के साथ अपना समय भी दें
पैरेंट्स, बच्चों की हर ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए दिन-रात काम में लगे रहते हैं, लेकिन होता यह है कि बच्चों के लिए सुख-सुविधाएं जुटाने में वे बच्चों को अपना समय नहीं दे पाते, जिनकी उन्हें वाकई जरूरत है। ऐसे में बच्चों के साथ रहने, उन्हें समझने और उनकी समस्याओं को सुलझाने का कीमती पल पैरेंटस खो देते हैं, लेकिन इसका परिणाम भी बच्चों को ही भुगतना पड़ता है। अपनी व्यस्तताओं में उलझे पैरेंट्स यह जान ही नहीं पाते कि कब बच्चों ने उनसे दूर होकर अकेलेपन को गले लगा लिया है। मासूम उम्र का यह अकेलापन बच्चों को इस कदर अकेला कर देता है कि वे एग्रेशन और गुस्से के साथ डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में अंदर ही अंदर टूट रहे बच्चे चिल्लाकर या गुस्सा दिखाकर शांत होने की कोशिश करते हैं, लेकिन अफसोस इसके लिए भी उन्हें ही ‘बद्तमीज’ का टैग दे दिया जाता है।
बच्चों के साथ धैर्य से काम लें
ऐसा नहीं है कि बच्चों के इस बिहेवियर को कंट्रोल नहीं किया जा सकता। थोड़ी सी सूझ-बूझ, समझदारी, पेशेंस, कूल माइंड और ढ़ेर सारे प्यार के साथ आप अपने बच्चों का अकेलापन, उनका गुस्सा, उनकी चिढ़ को दूर कर सकती हैं। इस तरह आप न सिर्फ आराम से उनकी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन निकाल लेंगी, बल्कि भावनात्मक रूप से आहत हुए बिना बच्चे भी आपकी बात आसानी से समझ जाएंगे। सबसे पहले तो आपको ये समझना होगा कि बच्चों का गुस्सा उनकी भावनाओं का नतीजा होता है, ऐसे में उनकी भावनाओं को समझते हुए उनके साथ दोस्त जैसा व्यवहार करें। आपका यह रवैया उनके अंदर एक आशा का संचार करेगा। उनकी भावनाओं और विचारों को मूल्य दिए जाने से उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। फिर आप देखेंगी कि धीरे-धीरे न सिर्फ आपके बच्चों का स्वभाव सौम्य होने लगा है, बल्कि उन्होंने खुद ही अपने गुस्से पर काबू रखना भी शुरू कर दिया है।
कठोर अनुशासन की बजाय बातचीत से समझाएं
अक्सर देखा गया है कि पैरेंट्स बाहर का गुस्सा घर आकर बच्चों पर निकालते हैं और कहीं बच्चे किसी बात को लेकर अड़ जाएं, तो वे अपना आपा भी खो देते हैं, जो बिल्कुल सही नहीं है। पैरेंट्स का कठोर अनुशासन या उनका कठोर व्यवहार कई बार बच्चों के गुस्सैल स्वभाव को बढ़ाने में ईंधन का काम करता है। ऐसे में बच्चों की भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उनके स्वभाव में नरमी लाने से पहले जरूरी है, खुद के बिहेवियर का आकलन करते हुए उस पर काम करें। जैसा कि हमने ऊपर बताया बच्चे जैसा देखते हैं, वैसा ही व्यवहार करते हैं। सो जरूरी है कि बच्चों के गुस्सैल स्वभाव और चिड़चिड़ेपन पर लगाम लगाने से पहले, स्वयं के स्वभाव को बदलें। इसके अलावा एक बात का आपको खास ध्यान रखना है और वो है कम्युनिकेशन। जैसा कि आपने सुना भी होगा कि रिश्तों की पहली शर्त है बातचीत। आप भी अपने बच्चों के साथ नजदीकियां बढ़ाकर उनसे बात करते हुए, उन्हें हल्के-फुल्के अंदाज में लाइफ लेसन की कुछ बारीकियां सीखा सकती हैं। इससे वे न सिर्फ आपके करीब बने रहेंगे, बल्कि बाहर अपनी बात कहने के लिए सहारा तलाशने की बजाय आपसे अपनी हर बात शेयर करेंगे।
जरूरत पड़ने पर बच्चों के साथ बन जाएं बच्चा
ये बात शत-प्रतिशत सही है कि बच्चों को उनकी गलतियां बताई जाएं, लेकिन कैसे? इसका सीधा जवाब है उनकी परिस्थितियों को समझकर ही उनसे उनके अंदाज में बात करें। देखिए सबसे पहले तो आपको ये बात समझनी होगी कि आप भी कभी बच्चे थे और जब आपसे गलती हो जाया करती थी, तो आप अपने साथ किस तरह का व्यवहार किया जाना पसंद करती थीं। क्या आपको यह बात अच्छी लगती थी कि आपकी गलती पर सबके सामने आपको शर्मिंदा किया जाए? या आपको प्यार से आपकी गलती का एहसास कराते हुए दुबारा ऐसी गलती न करने का वादा लिया जाए? बस यही आपको अपने बच्चों के साथ भी करना है। इसके अलावा आपके बच्चों पर उस गलती का क्या असर हुआ है? यह बात जानना भी आपका दायित्व है। यदि वे स्कूल या घर की किसी समस्या से परेशान हैं, तो कोशिश कीजिए कि आप उनसे बात करके उन्हें ये बताएं कि जिस समस्या से वे जूंझ रहे हैं, वो इतनी भी बड़ी नहीं है। हो सके तो अपने बचपन के कुछ दिलचस्प किस्से आप उनके साथ शेयर करें। इससे आपको उनके और करीब आने का मौका मिलेगा।
आदरपूर्ण व्यवहार के साथ सकारात्मक रखें घर का माहौल
घर का सकारात्मक माहौल और घर के लोगों का एक-दूसरे के प्रति आदरपूर्ण व्यवहार बच्चों के मन-मस्तिष्क पर बहुत असर डालता है। तो इस बात का खास ख्याल रखें कि आपके घर का माहौल सकारात्मक होने के साथ बच्चों के प्रति सबका व्यवहार आदरपूर्ण हो, जिससे उन्हें लगे कि उनकी भावनाओं का भी सम्मान किया जा रहा है। इसके अलावा एक बात जो अक्सर घरों में देखी जाती हैं, वो हैं बच्चों की बातों को बचकानी समझ नजरअंदाज किया जाना। आप ऐसी गलती न करें और परिवार के हर सदस्यों से भी ऐसा न करने को कहें। बच्चों के विचार भले ही आपको बचकाने लग रहे हों, लेकिन उनका अनादर न करें। इसके अलावा कोशिश करें कि परिवार के प्रत्येक सदस्य से उनकी बातचीत होती रहे। यकीन मानिए बच्चों के स्वभाव को मर्यादित रखने और उनके मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में सोशल कम्युनिकेशन बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।