दिवाली का माहौल नई खुशियों के आगमन के साथ बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व भी माना जाता है। जहां पर दीये की रोशनी से न सिर्फ संसार रोशन होता है, बल्कि लोग पुराने गिले-शिकवे को भी मिटा कर जीवन में आगे बढ़ते हैं। इसकी शुरुआत दिवाली की साफ-सफाई से होती है। पूरे घर की सफाई के साथ भावनाएं भी घर की दहलीज पर ठहरती हुई दिखाई देती हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि दिवाली की साफ-सफाई के साथ किस तरह भावनाओं का सैलाब भी मन के अंदर प्रवाहित होने लगती है। आइए विस्तार से जानते हैं दिवाली की साफ-सफाई और उससे जुड़ी भावनाओं के बारे में।
पुराने बर्तनों के साथ बीता साल
दिवाली की साफ-सफाई में सबसे पहले बारी रसोई घर से होती है। जहां पर पुराने बर्तनों को एक तरफ निकाल कर रखा जाता है। इन बर्तनों को लेकर खास तरह की प्लानिंग की जाती है। इन पुराने बर्तनों को देकर दुकान से नए बर्तन लेने की योजना, लेकिन इन पुराने बर्तनों को रसोई घर में इकट्ठा करते वक्त नजर उस तारीख पर जाती है, जब ये सारे बर्तन भी बाजार से नए बर्तन बनकर पिछले साल आए थे। तारीख को देख याद आता है कि कैसे पिछले साल इसी बर्तन में पड़ोस में रहने वाली दादी को पकवान बनाकर दिए थे। दिवाली में उनके अकेलेपन में हमारे घर की यही पकवान की थाली उनके घर रिश्तों की मिठास घोल आयी थी। पुराने बर्तनों में गिलास का कांच का सेट भी शामिल है, जो कि दो साल पहले दिवाली पर खास तौर पर मेहमानों के लिए लाया गया था। चम्मच और प्लेट की जोड़ी घर में होने वाली दिवाली पार्टी की याद को ताजा कर जाती है।
टूटी हुई कुर्सी की दास्तान
बर्तनों के बाद घर की उन टुटी हुई कुर्सियों को भी बाहर किया जा रहा है, जिस पर बैठकर बारिश में कई रातें चाय की प्याली सी सजी थी, जिस पर मां के हाथ के खाने की थाली सजी थी। साथ ही मां और पापा मिलकर हर दिवाली इसी कुर्सी के सहारे बैठकर दिवाली का बजट बनाए करते थे और पुरानी और टूटी हुई होने पर इस दिवाली इन खास यादों को अलविदा कहना भी मुश्किल-सा लगता है।
पुराने परदे और भावनाओं का संसार
दिवाली की साफ-सफाई में पुराने पर्दों को साफ करने के साथ उन्हें भी अलविदा करने का मन जरूर बनाया जाता है। इन पर्दों के साथ तो जुड़ाव परिवार के किसी खास सदस्य के होने जैसा लगता है। पर्दों के बीच से आते-जाते हुए हमने कई बार सुख और दुख का झोंका महसूस किया है। कभी अपने अकेलेपन में इन्हीं पर्दों को अपने चेहरे पर उड़ते हुए सुकून का अहसास होते हुए देखा है। कई त्योहारों के साथ इन पर्दों के बीच ही रहकर परिवार के रिश्तों को और मजबूत होते देखा है।
डिब्बों में बंद किचन की यादें
दिवाली की सफाई का एक और अहम हिस्सा है किचन में मौजूद पुराने मसालों के डिब्बे को हटाकर नए डिब्बे लेकर आना, लेकिन इस बीच पुराने डिब्बों पर लिपटे हुए हल्दी और लाल मिर्च के दाग के साथ उनमें मौजूद मसालों की सुगंध घर की रसोई के कई किस्से को महका जाती है। मां के रोटी बनाने से लेकर पिताजी के रविवार वाले दिन की स्पेशल डिश को बनाना सबसे खास है, वहीं परीक्षा की रात चाय और कॉफी के डिब्बों के साथ को नहीं भुलाया जा सकता है।
रंग लगाने के साथ बढ़ेगा रिश्ता
दिवाली पर साफ-सफाई के साथ नए रंग को लगाने की भी परंपरा है। इसका असली आनंद तब आता है, जब भाई और बहन के साथ मिलकर घर की रंगाई होती है। घर का पूरा सामान घर के बाहर पड़ा होता है और किसी एक को उसकी निगरानी के लिए बैठा दिया था। घर की दीवारों पर रंग लगाने से पहले उस पर अपने हाथ से अलग-अलग के चित्रकारी करने की मस्ती बचपन की यादें ताजा कर देती है। देखा जाए तो, दिवाली की साफ-सफाई सही मायने में रिश्तों को समझने का और उनसे फिर से मुलाकात करने का मौका देती है।