ऐसा आपकी जिंदगी में कई बार हो सकता है कि आप जिनके साथ लंबे समय से जुड़े रहते हैं, एक रिश्ते में होते हैं, अचानक से जब बात जिंदगी भर साथ निभाने की आती है, तो आप कई बार सोचने लगते हैं कि क्या यह हमारे लिए सही होगा या नहीं, ऐसी स्थिति में कई बार आपके हाथों में कुछ नहीं होता है और आप इमोशनल होकर निर्णय ले लेते हैं, जो कि आपको नहीं करना चाहिए, क्यों? तो आइए जानें विस्तार से।
साल कितने गुजरे से अधिक, कैसे गुजरे
इस बात को जेहन में रखना एक कपल, जो इस स्थिति से गुजर रहे हों कि आपके सामने वो रिश्ता है, जिनके साथ आपने काफी समय गुजारा है और इस बात को जेहन में मान लिया है कि आप आगे हमसफर भी उनके साथ ही बनना है, लेकिन कई बार आप अपने रिश्ते को लेकर कन्फ्यूज होती हैं, लेकिन इस बात को महसूस नहीं कर पाती हैं, आपके दिमाग में भी यह फीलिंग आती है कि इतने सालों के बाद उससे अलग होना, उसके साथ गलत होगा। तो, ऐसी स्थिति में सबसे पहले अपने मन से पूछें कि आपने जिसको अपना समय दिया, उन्हें कितने साल दिए, उस पर गौर किये बगैर इस बात को देखें कि वो समय गुजरा कैसा। अगर उस रिश्ते में हर वक्त तनाव या लड़ाई का माहौल रहा है और यह सोचने की स्थिति आये कि आप खुश नहीं हैं, तो खुद को फौरन उस रिश्ते से अलग करें, यह तकलीफदेह स्थिति होगी, लेकिन आपको इसके बारे में सोचना ही होगा।
किसी तरह की आत्म-ग्लानि से बचें
यह बात दिमाग से सबसे पहले आती ही आती है कि हम किस तरह से इतना समय गुजार लेने के बाद उनको कहें कि अब हम आगे नहीं बढ़ सकते। इस सोच को सबसे पहले दूर हटाइए, क्योंकि जिस रिश्ते की नींव ही इस बात पर होगी कि प्यार नहीं है, तो शादी के बाद आप खुश तो नहीं रह पाएंगी, तब के अफसोस से अच्छा है, अभी न कहा जाए और आगे बढ़ने की कोशिश की जाए, समय लगेगा, लेकिन निश्चिततौर पर आगे जाकर आप अपने निर्णय पर पछताएंगी नहीं। इसलिए आत्म-ग्लानि के मोड से बाहर आएं।
जज करने और जज होने से बचें
यह ऐसा समय होता है, जब आपको लोग जज करने लगते हैं या फिर आप लोगों को जज करने लगते हैं और ऐसे में आप अपने बाकी सारे रिश्ते खराब कर बैठते हैं और आपको इसके बारे में पता नहीं चलता है, फिर आप धीरे-धीरे लोगों से नजरें बचाना शुरू कर देते हैं, लोगों से मिलना कम कर देते हैं कि लोग आपको जज करेंगे और फिर इस वजह से तनाव में रह कर कई बार आप डिप्रेशन का शिकार होते हैं, तो खुद को इस परिस्थिति में लाने से पहले कई बार सोचें। लोगों की बातों की परवाह किये बगैर, खुद के दिमाग पर सेल्फ कंट्रोल की आपको सबसे ज्यादा जरूरत है।
जल्दबाजी में मेडिकेशन या किसी काउंसलर की दखल नहीं
आप इस परिस्थिति में जब कुछ भी समझ पाने में असफल होते हैं, तो आप कई बार मेडिकेशन या किसी काउंसलर से मिलने की बात करने लगते हैं, आपको लगता है कि इससे आपको आराम मिलेगा और फिर आप बेफिजूल की काउंसलिंग और कई बार दवाइयों का सहारा लेते हैं, जबकि बेहतर यह होगा कि इस समय मेडिटेशन करें और अधिक सोचने से बचें। खुद पर सेल्फ कंट्रोल करने के लिए खुद को और भी कामों में शामिल करें, क्योंकि यही जिंदगी का अंत नहीं है।
विश्वास और प्यार नहीं, तो रिश्ते का मतलब नहीं
कई बार जब यह द्वन्द वाली स्थिति होती है, कन्फ्यूजन होता है, दिमाग में यही बात आती है कि हमें अपने रिश्ते को बचाने के लिए एफर्ट्स यानी मेहनत करनी होगी, लेकिन सच्चाई तो यह है कि जिस रिश्ते को वर्कआउट करवाने की कोशिश की जाए, वह वर्क नहीं करेगा, यह समझना ही होगा। इसके लिए खुद को जबरन किसी रिश्ते से बांधना, खुद से बेईमानी होगी, इसलिए जरूरी है कि खुद को इन चीजों से बचाएं।