पिछले कई सालों ने मुझे मुंबई महानगर का दीवाना बना दिया है, इसकी कई वजहें हैं, जो यहां तीन महीने तक मूसलाधार बारिश में बुरी स्थिति होने के बावजूद मेरे जेहन में कभी इस शहर से सेपरेशन या अलगाव होने का ख्याल नहीं आया। लेकिन दिल से अब भी मैं स्मॉल टाउन गर्ल ही हूं और वो भी प्राउड करने वाली, हालांकि महानगर में मिली मेरी प्रिय दोस्त, जो कि मेरे शहर की गिनती एक गांव में ही करती है, वह जब मेरी लिखी ये बातें पढ़ेगी, तो टोके बिना रह नहीं पायेगी। सो, बहरहाल उसके टोकने और हमारी तू-तू मैं से पहले मैं बता दूं कि यहां जो मैंने अपनी बात कहने की भूमिका बांधी है, उसका सीधा कनेक्शन इस बात से है कि मुंबई महानगर आने से पहले भी मैंने अपने राज्य में ही रहते हुए पलायन की मार झेली है, जब मुझे अपने शहर को छोड़ कर दूसरे शहर अपनी उच्च शिक्षा हासिल करने जाना पड़ा था, क्योंकि 12वीं की पढ़ाई के बाद, वहां विकल्प मौजूद नहीं थे और शुक्र है कि मुझे महानगर आने से पहले जीवन के उन सभी पड़ावों का सामना करने का मौका मिला, ताकि मेरे लिए अकेले आकर इस शहर में रहना और अपनी पैठ जमाना, कठिन था, लेकिन नामुमकिन कभी नहीं लगा। चूंकि मैंने अपनी जिंदगी के वे साल हॉस्टल में गुजारे, जिन सालों का आपकी आने वाली जिंदगी पर गहरा असर होता है। इन शहरों ने मुझे आत्मनिर्भर बनाने में सबसे अधिक भूमिका निभायी।
और आज मैं पूरी शिद्दत से इस बात पर विश्वास करती हूं कि आप भले ही बार-बार अन्य और विभिन्न शहरों में पलायन करते रहें, लेकिन कुछ बातें हैं, जो आपको उस शहर से मिलती है और कभी पीछे नहीं छूटती। ठीक उसी तरह जैसे मायके जाने पर हर बार बेटी को 'खोइचा' मां देती है कि इसी उम्मीद से कि बेटी फिर लौटेगी। हर शहर को भी आपसे यही उम्मीद हो जाती है।
बड़े शहरों में बेखौफ होना
छोटे शहरों में अपने दम, अपने निर्णय और सोच के साथ रहने की आजादी आपको बड़े शहरों के मनगंढ़त खौफ से बचा देती है, एक तरह से छोटे शहरों में किसी हॉस्टल में रहना, हर लड़की के लिए टेस्ट मैच है, जिसमें धीरे-धीरे खेल कर, वह किसी बड़े शहर में किसी वन डे में पारी खेलने के लिए परिपक्व होती हैं। जैसे-जैसे आप बड़े शहरों में अपनी धाक जमाने लगते हो, आपको लगता है कि आप अपने पुराने शहर को पीछा छोड़ आये हैं, लेकिन सच यह है कि आपका रिश्ता उस पुराने शहर से और गहराता जाता है।
शिकवा नहीं किसी से
मैं तो इस एहसास से हर बार, कई बार गुजरती हूं और हर बार अपने शहर को शुक्रिया कहती हूं। मुझे अपने पुराने शहर को शुक्रिया कहने की चाहत इसलिए होती है कि कभी घर में छोटी होने के कारण पैम्पर होने वाली लड़की ने सर्वाइवल के गुर सीखे, तो हॉस्टल में रहते हुए सीखे। पापा की डांट खाने के बावजूद लौकी, परवल और ऐसी तमाम सब्जियां खाने से इंकार करने वाली लड़की ने न चाहते हुए भी मेस में ये सारी सब्जियां बिना नखरे के खाना शुरू किया और शायद यही वजह है कि आज जब टमाटर की कीमत ने आसमान छू रखा है, बिना टमाटर के भी मेरे धैर्य का जायका बिगड़ा नहीं है और समस्या की जगह मुझे समाधान और विकल्प नजर आते हैं।
परिस्थितियों से निबटना
मुझे सोने के लिए कभी भी लोकप्रिय शो शक्तिमान के विलेन किलविश की तरह पूरे कमरे में अंधेरा कायम करने की जरूरत नहीं पड़ती है, मैं सीढ़ियों पर, ट्रेन या बस की असहज शीटों पर भी आराम से घंटों नींद ले सकती हूं, क्योंकि मुझे ये गुर मेरी हॉस्टल की रूम मेट्स, जो कई कॉम्पटीशन की तैयारियां किया करती थीं और वो भी रात में घंटों जाग कर, तब हॉस्टल की बत्तियां जली रहती थी, रातभर, शुरुआती दिनों में गुस्सा भी आता था, लेकिन बाद में मैंने इस पर काबू पाना सीखा और शुक्र है सीखा, क्योंकि इसके बाद मुझे ये बातें परेशान नहीं करती, क्योंकि अब मैंने परिस्थिति पर काबू पाना सीख लिया है।
अनजाने चेहरों पर भी भरोसा
हॉस्टल में रहने के दौरान, जब आप पर हर काम करने की जिम्मेदारी आती है, तो आपका दायरा भी बढ़ता है और आप नए लोगों से मिलते जाते हैं, ऐसे में धीरे-धीरे आपके नए रिश्ते बनते हैं, मैंने ये हुनर भी अपने पुराने शहर से सीखा और मुंबई आने के बाद, मैंने महसूस किया कि अनजाने लोगों को पहले शक की निगाह से नहीं देखा जाए, उन पर भरोसा करके देखने की कला मैंने सीखी। रात के एक बजे भी एक अनजान ऑटो वाले के सहारे घर वापस लौटते हुए डर की भावना न महसूस होना से लेकर रोजाना ऑटो राइड में एक दूसरे की कहानियों से सीखने की नींव छोटे शहर ने दी, जिसने वहां के किराने वाले भईया से लेकर गैस, मेस, आयरन करने वाले भईया तक से मानवता और अपनेपन का रिश्ता बनाना सिखाया।
सेलिब्रेशन में यकीन
नि : संदेह मुंबई उन शहरों में से एक है, जहां हर पर्व यहां तक कि छोटे पर्व और त्योहारों को धूमधाम से मनाया जाता है। अपने होम टाउन में रहते हुए इस बात का एहसास कम ही होता था, चूंकि परिवार में जो त्यौहार हैं, वे ही प्राथमिकता से मनाये जाते थे। लेकिन हॉस्टल में हर धर्म, हर प्रान्त की लड़कियों से मिलना हुआ और हर त्यौहार हमने साथ में मिल कर मनाये और महसूस किया, जीवन में हंसना-सेलिब्रेट करना कितना जरूरी है और यह कितना आनंदपूर्ण होता है, इसलिए जब मुम्बई आयी और हर दूसरे दिन लोगों को किसी ने किसी त्यौहार पर झूमते देखा, तो यह अटपटा सा नहीं लगा, लगा जैसे यह मेरा ही हिस्सा है, जिसने बस अपनी जगह बदल ली है, ठीक मेरी तरह जो कभी अपने होमटाउन को छोड़, एक दूसरे छोटे शहर का रुख करते हुए महानगर आ पहुंचती है, पलायन का सिलसिला जारी रहता है, लेकिन पीछे छूटे शहर के अनुभव हर नए शहर के अनुभव में काम आते हैं और और पुराना शहर हर बार नया सा लगने लगता है।