बिहार के मुजफ्फरपुर रेड लाइट एरिया चतुर्भुज स्थान की सेक्स वर्कर्स लड़कियों और उनके बच्चों के लिए 'वैकल्पिक शिक्षा' उपलब्ध कराने के साथ-साथ, उनके हक और उनके अधिकारों को पूरा करने के एक बड़े बदलाव करने की मुहिम में सक्रिय हैं मानव अधिकार कार्यकर्ता नसीमा खातून, आइए जानें बिहार दिवस में प्रेरणा से भरपूर नसीमा खातून के बारे में विस्तार से।
जलाई अलख
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक इलाका है, चतुर्भुज। भारत के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया के रूप में जाना जाने वाला। किसी दौर में इसे केवल बदनाम गलियों की उपाधि मिली। वहां रहने वाली हर लड़की को सेक्स वर्कर ही समझा गया। लोगों के जेहन में यह बात घर कर गई थी कि यहां की हर लड़की, फिर चाहे वह बच्ची ही क्यों न,‘धंधेवाली’ ही होगी, लेकिन इन्हीं लड़कियों में से एक लड़कीने ठान लिया कि वह अपने इलाके की महिलाओं के अस्तित्व को सिर्फ इस उपाधि से धूमिल नहीं करेगी। और वह लड़की आवाज बनी उन तमाम महिलाओं की, जो वर्षों से गुमनामी की दुनिया में जी रही थीं। मिसाल बनीं उसशख्सियत का नाम है नसीमा खातून। नसीमा खातून, एक जानी-मानी मानव अधिकार कार्यकर्ता हैं, जो रेड लाइट एरिया की महिलाओं के लिए कई कदम उठा रही हैं।
परवरिश आसान नहीं थी
नसीमा खातून की परवरिश रेड लाइट में ही हुई। नसीमा ने तय किया कि वह अपने क्षेत्र की महिलाओं के विकास के लिए सिर्फ किताबी शिक्षा को माध्यम नहीं बनाएंगी, बल्कि वैकल्पिक समाधान ढूंढ कर लाएंगी, जिससे कुछहद तक ही सही, लेकिन रेड लाइट एरिया की महिलाएं मानसिक रूप के साथ-साथ आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बन पाएं और इसी क्रम में उन्होंने ‘परचम’ की शुरुआत की, जहां सेक्स वर्कर और उनके परिवार दोनों के पुनर्वास केलिए समर्पित मंच मिला। साथ ही उन्होंने श्रमिकों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने के लिए नुक्कड़ नाटकों का आयोजन किया, और धीरे-धीरे उनकी शिक्षा पर महत्व दिया। इसके बाद, बैंकों से लोन लेकर, अपनेइलाके में बिंदी, मोमबत्तियां, अगरबत्ती और माचिस बनाने के छोटे उद्योग शुरू करने में मदद की। नसीमा के इन प्रयासों से यौनकर्मियों के रूप में शामिल होने वाली युवा लड़कियों की संख्या में काफी कमी आई है। साथ ही‘जुगनू’ मैग्जीन के माध्यम से यौनकर्मियों के बच्चों को कुछ हुनर दिखाने का मौका दे रही है। यह मैग्जीन पूरी तरह से हस्तलिखित, संपादित और छायांकित है। जुगनू अब 32 पन्नों की मासिक पत्रिका है जो बिहार राज्य मेंयौनकर्मियों के साथ बलात्कार और साक्षात्कार जैसी कहानियों को कवर करती है और लगभग एक हजार प्रतियां बेचती हैं।
फैंटेंसी नहीं रहा जीवन
नसीमा के पिता एक चाय स्टॉल चलाते थे और नसीमा को एक सेक्स वर्कर द्वारा गोद लिया गया था। नसीमा ने उन्हें दादी का दर्जा दिया और उन्होंने उनका पालन-पोषण किया। नसीमा की बचपन की कहानी में कोई फैंटेसी नहीं है। हां, लेकिन उनकी आंखों के सामने वे सारे दृश्य घटे हैं, जिन्हें जानने के बाद, आप ऐसा महसूस कर सकते हैं कि यह कोई थ्रिलर फिल्म है, लेकिन माफ कीजियेगा, यह दृश्य काल्पनिक नहीं बल्कि सच्चे हैं। हर दिन पुलिसका छापा मारा जाना, हमेशा छुप कर, डर कर रहना, स्कूल में अपना असली नाम या पहचान छुपा कर रहना, अपने इलाके पर हो रहे अत्याचार को देखना, लोगों की छींटाकशी सहना, फब्तियां सहना और अपने सामने अपनी हीबस्ती को जलते देखना, यहसब नसीमा के बचपन की दर्दनाक यादें हैं। लेकिन नसीमा ने भी तय किया कि वह ऐसी जिंदगी को न तो अपने लिए और न ही उस क्षेत्र की बाकी लड़कियों के लिए जिंदगी भर की नियति नहीं बननेदेंगी। ऐसे में नसीमा ने सबसे पहले खुद को सशक्त बनाया।वर्ष 1995 में उन्हें आईएएस अधिकारी राजबाला वर्मा का साथ मिला, जिन्होंने यौनकर्मियों और उनके परिवारों के लिए वैकल्पिक कार्यक्रम लाने का फैसला किया।नसीमा ने ऐसे ही एक कार्यक्रम, "बेहतर जीवन विकल्प" में दाखिला लिया, और फिर वहां से ट्रेनिंग लेकर वह अपने लोगों के बीच आयीं और फिर वहां के हालात सुधारने में जुट गयीं और आज भी सक्रिय हैं।
जज्बे को सलाम
यह उनकी हिम्मत और जज्बे का ही परिणाम है कि अब इस क्षेत्र से लड़कियां और बच्चे बाहर जाकर पढ़ाई कर रहे हैं और अपनी जिंदगी को बेहतर बना रहे हैं। नसीमा को उनके नेक काम के लिए सचिन तेंदुलकर और नीताअंबानी जैसी बड़ी शख्सियत ने सम्मानित किया है। नसीमा अपने क्षेत्र की लड़कियों को सिर्फ पापड़ बनाने या ब्यूटी पार्लर चलाने तक सीमित नहीं रखना चाहती हैं, बल्कि बदलाव लाना चाहती हैं, जानने के लिए देखें पूरा वीडियो।