दिवाली की रौशनी से जगमगाता आपका घर कितना सुंदर लगता होगा। कंदील से रौशनी छन कर पूरी खिड़की को रौशन करती होगी। जानते हैं, एक ऐसी जगह भी है, जहां इन कंदीलों ने आदिवासी महिलाओं की जिंदगी में रौशनी लाई है। बांस से बनी हुई चीजों की वजह से आज उनकी जिंदगी के साथ-साथ पूरे गांव की आर्थिक स्थिति में बदलाव आ गया। मिलिए, मुंबई से कुछ दूरी पर स्थित पालघर से 30 से 35 किलोमीटर दूर बसे इलाके में विक्रम गढ़ तालुका के गांव टेटवाली की महिलाओं से। ये महिलाएं अपने हाथों से बांस की चटाई, खिलौने, घर का सामान, रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल में आने वाली चीजें और इको-फ्रेंडली दिवाली बनाने के लिए बांस के तरह-तरह के रंग-बिरंगे कंदील बना रही हैं।
Her Circle की टीम जब यहां पहुंची, तो यहां की महिलाएं कंदील पर फूड कलर( खाने वाले रंग) का इस्तेमाल करते हुए रंग भर रही थीं। इन रंगे हुए कंदील को धूप में सुखाने की तैयारियां चल रही थीं। तो हमने इन बड़े ही प्यार से बनाए गए छोटे-छोटे घर में हमने बड़ी सोच रखने वाली महिलाओं से बातचीत की। जयश्री महाकाल, जो एक सिंगल मां हैं, उनके लिए बांस के कंदील बनाना उनकी जिंदगी का एक बड़ा मोड़ था। भावना भास्कर भुरकुड के लिए यह एक आत्मनिर्भर बनने का एहसास था। उन्होंने कहा, ‘पहले मुझे जब भी कुछ चाहिए होता था, तो पति के पास जाकर उनसे पैसे मांगने पड़ते थे। अब क्योंकि मैं खुद सक्षम हो गई हूं, तो छोटी-छोटी बच्चियों के लिए बिंदी, वगैरह कितना कुछ है न? मैं अब पति से पैसे नहीं मांगती। खुद कमाती हूं और खुद सामान खरीदती हूं।” वहीं, नमिता रामदेव भुरकुड का कहना है कि वो अब खुद तो सक्षम है ही, लेकिन अब दूसरे गांवों में जाकर अपनी जैसी अन्य महिलाओं को कंदील बनाने की ट्रेनिंग देकर उन्हें भी सक्षम बनाने का प्रयत्न करती हैं।
टेटवाली गांव को गोद लेने वाले, यानि इस गांव सहित अन्य 5 गांवों का जिम्मा लेने वाले गौरव श्रीवास्तव ने हमें बताया कि यहां की महिलाएं दीपावली आने तक इको-फ्रेंडली कंदील बनाने के कार्य में लगी रहेंगी, ताकि इस साल बाजारों में रौनक भारतीय सामानों की हो, न कि चीनी सामानों की। उन्होंने आगे कहा, ‘महिलाओं के जरिए बनाए गए इन कंदीलों को अच्छा रिस्पॉस मिल रहा है। देश ही नही बल्कि विदेशों में भी इसकी मांग है। विदेशों में बांस के सामान की बड़ी मांग है और दिवाली के अलावा भी ये महिलाएं बांस की चीजों का निर्माण करती हैं। हमारी कोशिश केवल इतनी है कि इस साल दिवाली पर लोग देश में बने हुए आकाश कंदील खरीदें, ताकि आत्मनिर्भर भारत के तहत हमारी महिलाएं जो इस कार्य में लगी हैं उनके घर की दिवाली भी अच्छी हो पाए।’
तो आइए देखिए इस वीडियो में, किस तरह देश विदेश में रौशन हो रही हैं इनकी दुनिया और कैसे इन आदिवासी महिलाओं का कंदील व्यापार शानदार आकार ले चुका है, देखिए इस वीडियो में रौशन होती इनकी जिंदगी की पूरी कहानी।