’यदि शिद्दत से सपनों का पीछा किया जाए, वे जरूर पूरे होते हैं’। यह कहना है स्कीइंग के जरिए अंटार्कटिका साउथ पोल पहुंचनेवाली पहली भारतीय महिला रीना कौशल धर्मशक्तू का। आइए जानते हैं इनसे जुड़ी कुछ खास बातें।
पहाड़ों में जन्मीं रीना का पहला प्यार है पहाड़
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दार्जिलिंग की पहाड़ियों के बीच पली बढ़ी रीना कौशल धर्मशक्तू को बचपन से पहाड़ों से प्यार था, यही वजह है कि उन्होंने दार्जिलिंग में हिमालय पर्वतारोहण संस्थान से न सिर्फ पर्वतारोहण का कोर्स किया, बल्कि पूरे विश्व की अन्य 6 पर्वतारोही महिलाओं के साथ 38 दिन तक लगातार चलकर 900 किलोमीटर की यात्रा पूरी करते हुए 29 दिसंबर 2009 को इतिहास रच दिया। इसके लिए उन्हें वर्ष 2010 में तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। गौरतलब है कि रीना के पति लवराज सिंह भी उनकी तरह एक पर्वतारोही हैं, जो सात बार माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंच चुके हैं। रीना के अनुसार उनकी इस यात्रा में उनके पति का काफी योगदान रहा। उन्होंने रीना को न सिर्फ अंटार्कटिका जाने के लिए प्रोत्साहित किया, बल्कि वहां से लौटकर आने के बाद दिल्ली एयरपोर्ट पर उनका जबरदस्त स्वागत भी किया।
900 किलोमीटर की यात्रा चुनौती भरी थी
गौरतलब है कि अंटार्कटिका साउथ पोल मिशन के लिए 800 आवेदकों में से ब्रुनेई, साइप्रस, घाना, भारत, जमैका, सिंगापुर, न्यूजीलैंड और यूके से सिर्फ 8 महिलाओं को चुना गया था, जिनमें से भारत से रीना कौशल धर्मशक्तू थीं। हालांकि चुनी गई इन आठ महिलाओं में से लक्ष्य तक सिर्फ 7 पहुंची थीं। पहली बार अंटार्कटिका के साउथ पोल की यात्रा कर रही इन पर्वतारोही महिलाओं के साथ सफर में न कोई गाइड था और न कोई सामान उठानेवाला। 900 किलोमीटर की यात्रा उन्हें अकेले अपने दम पर करनी थी। रीना कौशल के अनुसार 10 से 35 डिग्री सेल्शियस के तापमान और तेज हवाओं के बीच शुरू में स्कीइंग करने में सभी को बहुत परेशानी होती थी, लेकिन थोड़े ही दिनों में मौसम के मिजाज के अनुसार ढलने के बाद ये यात्रा थोड़ी आसान हो गई थी। फिर भी हर रोज 15 से 30 किलोमीटर स्कीइंग करना चुनौती भरा था।
नो पेन-नो गेन
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अंटार्कटिका के साऊथ पोल पर पहुंचने के लिए 900 किलोमीटर की यात्रा करना जितना जोखिम भरा था, उससे कही अधिक थका देनेवाला था। डेढ़ घंटे की स्कीइंग के बाद पूरी टीम सिर्फ सात मिनट के लिए अपनी थकान मिटाने के लिए रुकती थी, क्योंकि उससे ज्यादा रुकने पर शरीर ठंड के कारण जमने लगता था। सिर्फ यही नहीं पीने के लिए पानी की व्यवस्था भी बर्फ को पिघलाकर की जाती थी। पूरे दिन के लिए एक-एक थर्मस पानी सबके पास होता था। रात को रुकने का कोई ठिकाना नहीं था। जहां शाम होती, वहीं टेंट लगाकर रात गुजारी जाती और अगली सुबह फिर चलने की तैयारी शुरू हो जाती। इतनी ठंड में हाथ-पांव अकड़ जाते थे, फिर भी अंटार्कटिका फतेह करने का जज्बा सबसे ऊपर था। ऐसे में किसी बाधा ने रीना या उनके साथियों का हौंसला पस्त नहीं किया।
खूबसूरती ऐसी, जो आंखों में न समाए
लगभग 38 दिनों तक 900 किलोमीटर की यात्रा करके अपनी मंजिल पर पहुंचनेवालीं रीना कौशल बताती हैं कि 38 दिनों तक स्कीइंग करते हुए अंटार्कटिका के उस हिस्से में पहुंचना, जहां अब तक कोई नहीं पहुंचा है, आसान नहीं था। लेकिन जैसे ही वे वहां पहुंची, उन्होंने एक दूसरे को रोते हुए गले लगा लिया था। वे सभी समझ चुकी थीं कि उन्होंने इतिहास रच दिया है। सभी ने दो दिन तक वहां ठहरकर उसकी खूबसूरती को आंखों में कैद किया। सभी के लिए जिंदगी के वे बेहतरीन दिन थे, दूर-दूर तक पसरी बर्फ की चादर और ऊपर कभी न खत्म होनेवाले आसमान को देखकर ऐसा लगता था, जैसे वे क्षितिज के उस पार पहुंच गई हैं। वहां से धरती, आसमान, चांद-तारे, हर चीज खूबसूरत नजर आ रही थी। उसके साथ वहां पसरी शांति मनमोहक थी। उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये भी धरती का एक हिस्सा है। हालांकि उनसे पहले भी कई लोगों ने वहां पहुंचने की कोशिश की थी, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए थे।
एडमंड हिलेरी और नोर्गे तेनजिंग हैं प्रेरणा
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बचपन से पहाड़ों की चोटियों में अपना भविष्य तलाशनेवाली रीना कौशल, सबसे पहले माउंट एवरेस्ट फतेह करनेवाले एडमंड हिलेरी और नोर्गे तेनजिंग को अपनी प्रेरणा मानती हैं। वे हमेशा से उनके जैसा बनना चाहती थी, यही वजह है कि उन्होंने हिमाचल, लद्दाख और उत्तराखंड में पर्वतारोहण की ट्रेनिंग ली और कैलाश के साथ गंगोत्री-1 और प्लूटेड पीक शिखरों पर चढ़कर लौटी। फिलहाल अंटार्कटिका के साउथ पोल पर स्कीइंग कर इतिहास रचनेवाली रीना कौशल, अब नॉर्थ पोल को छूना चाहती हैं। अपनी अंटार्कटिका यात्रा को रीना अपना हनीमून मानती हैं, जहां वह पति के बिना गई थीं। दरअसल शादी के तुरंत बाद जब रीना अपने पति के साथ हनीमून पर जाने की प्लानिंग कर रही थी, उसी दौरान उन्हें इस मिशन के बारे में पता चला और वे खुद को अप्लाई करने से रोक नहीं पायीं। 130 भारतीयों में से अपने सिलेक्ट होने को वह बाबाजी की मेहर मानती हैं।
कंफर्ट जोन से बाहर निकलना है जरूरी
रीना का मानना है कि चुनौतियों से लड़ने और अपने सपने पूरे करने के लिए सबसे जरूरी है अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलना। आसान रास्तों की बजाय मुश्किल रास्तों से गुजरकर ही कुछ नया किया जा सकता है। खुद को प्रकृति की बेटी कहनेवाली रीना कौशल, फिलहाल लोगों को पर्यावरण का महत्व बताने के साथ-साथ ग्रुप पर्वतारोहण करती हैं। वह खुश हैं कि अपने काम के साथ वह अपने सपनों को भी जी रही हैं।
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