मुजफ्फरपुर, बिहार के आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में जन्मीं राजकुमारी देवी उर्फ किसान चाची ने अचार बेचने का सफर यूं तो साइकिल से शुरू किया था, लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनका यह सफर उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्मश्री तक ले जाएगा। आइए जानते हैं उनकी प्रेरणादायी गाथा।
खेती के लिए लोगों ने मारे ताने, उड़ाया मजाक

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पारिवारिक गरीबी के कारण भले ही राजकुमारी देवी का विवाह उनके घरवालों ने कम उम्र में कर दी हो, लेकिन एक सशक्त महिला के गुण उनमें कूट-कूटकर भरे थे। यही वजह है कि शादी के बाद उन्होंने न सिर्फ अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की, बल्कि ऑर्गैनिक फार्मिंग के जरिए अपने साथ कई और गरीब परिवारों को भी आर्थिक रूप से सशक्त किया। हालांकि 90 के दशक में अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए जब उन्होंने साइकिल चलाकर अचार बेचना शुरू किया, तो कुछ लोगों ने उन्हें ताने मारे, तो कुछ लोगों ने उनका मजाक उड़ाया. इन सबसे बेपरवाह राजकुमारी देवी अपने अटल इरादों के साथ आगे बढ़ती रहीं।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुकारा ‘किसान चाची’ को
गौरतलब है कि बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ऑर्गैनिक खेती के साथ उनके व्यापारिक दृष्टिकोण को देखते हुए जहां वर्ष 2006 में उन्हें किसान श्री से सम्मानित किया था, वहीं वर्ष 2019 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों पद्मश्री पुरस्कार भी मिला। गौरतलब है कि बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिले के सरैया ब्लॉक में स्थित आनंदपुर गांव की राजकुमारी देवी को वर्ष 2013 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘किसान चाची’ नाम से संबोधित किया था, जब वे उनसे मिलने गुजरात गई थीं। उस वक्त वे गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। 40 वर्ष की उम्र में साइकिल चलाना सीखकर पहले वे ‘साइकिल चाची’ और बाद में ‘किसान चाची’ कहलाईं। हालांकि उनकी पहचान एक सशक्त महिला की ही रही, जिन्होंने पहले खेती के फायदे को बिजनेस बनाया और बाद में फसलों की बर्बादी पर रोक लगाने के लिए उससे अन्य प्रोडक्ट्स बनाने पर विचार किया और अचार बनाना शुरू किया।
40 की उम्र में साइकिल चलाना सीखकर, गांव-गांव बेचा अचार

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हालांकि तब उन्हें यह नहीं पता था कि इसे बिजनेस का रूप कैसे दिया जाए। बिजनेस के गुर सिखने के लिए न सिर्फ उन्होंने 2002 में विज्ञान केंद्र से फ़ूड प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग ली, बल्कि साइकिल चलाना भी सीखा। इसी साइकिल की बदौलत उन्होंने गांव-गांव घूमकर अचार बेचने के साथ अन्य महिलाओं को रोजगार के गुर सिखलाए। कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित होनेवाले हर मेले में भाग लेनेवाली ‘किसान चाची’ कई महिला समूहों से भी जुड़ी रही हैं। सिर्फ यही नहीं पिछले 30 वर्षों से अपने अचार व्यवसाय में लगी ‘किसान चाची’ आज अपने अचार और मुरब्बों के लिए इस कदर मशहूर हो चुकी हैं कि उनके बनाए अचार विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुके हैं।
टीचर बनने का सपना देखनेवाली ने सिखाया आत्मनिर्भरता का सबक
बचपन में टीचर बनने का सपना देखनेवाली ‘किसान चाची’ ने भले ही स्कूली बच्चों को न पढ़ाया हो, लेकिन आस-पास की महिलाओं को जिंदगी का वो सबक पढ़ाया, जिसने उनकी आर्थिक रूप से अंधेरी जिंदगी में रौशनी कर दी। उनका हमेशा से मानना रहा है कि हर इंसान में कोई न कोई हुनर होता ही है, बस जरूरत है, उसे पहचानकर इस्तेमाल करने की। अपनी उम्र और थकान को कभी खुद पर हावी न होने देनेवाली किसान चाची अचार के साथ मशरूम उगाने और उससे प्रोडक्ट्स बनाने में भी महिलाओं को जागरूक करती रही हैं। उनका मानना रहा है कि महिलाओं को सिर्फ चावल उगाने की बजाय उससे पापड़ और चिवड़ा बनाना भी सीखना चाहिए। यह उन्हीं का असर है कि आज उनके गांव की हर महिला आत्मनिर्भर होने के प्रयास में लगी हुई है।
लोगों की सोच से सदैव आगे रही हैं ‘किसान चाची’

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गांव में पली-बढ़ी ‘किसान चाची’ अपनी सोच से न सिर्फ सदैव सकारात्मक रही हैं, बल्कि काफी आशावादी भी रही हैं। अचार बनाने के अलावा वे आज भी ऑर्गैनिक खेती करती हैं, जिसमें उनका बेटा अमरेंद्र उनका साथ देता है। बेटे अमरेंद्र के अलावा उनकी एक बेटी है सुप्रिया, जो शादीशुदा है। हाल में आई खबरों के अनुसार कल रात ही उन्हें सांस लेने में आ रही तकलीफ के चलते पटना के एम्स अस्पताल में आईसीयू में भर्ती किया गया है। फिलहाल उनका इलाज चल रहा है। हालांकि इससे पहले भी वे कई बार गंभीर रूप से बीमार पड़ चुकी हैं, लेकिन उस बीमारी को हराकर न सिर्फ वे लौटी, बल्कि अपने काम में दुगुनी शक्ति से लग गईं। इस बार भी ऐसी ही उम्मीद है, क्योंकि ‘किसान चाची’ एक महिला का नहीं, एक प्रेरणा का नाम है और प्रेरणा सदैव हमारे साथ होती है।
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