बचपन के अध्याय में नहीं जुड़ी ‘पढ़ाई’
आरती नाईक बताती हैं कि मैं स्लम में पली-बढ़ी हूं, जहां बीएमसी स्कूल को छोड़कर लड़कियों की शिक्षा के लिए कोई स्कोप नहीं था, उसमें भी वहां 80 बच्चों के लिए एक टीचर होते हैं। ऐसे में विशेष रूप से मैथ्स और इंग्लिश समझने में काफी परेशानियां आती थीं। फिर वह आगे कहती हैं कि 10वीं में प्राइवेट कोचिंग के लिए पैसे न होने के कारण मैं 10वीं में ड्रॉप आउट हो गई और चॉल की कुछ महिलाओं की तरह नेकलेस और फ्रेंडशिप बैंड बनाने लगीं। वह आगे कहती हैं कि एक नेकलेस बनाने के मुझे 9 रुपये मिलते थे। इस तरह चार साल तक मैंने नेकलेस बनाने का काम किया। इस दौरान मैंने अपना सेविंग अकाउंट भी शुरू कर दिया था, तो नेकलेस बनाने के जो पैसे मिलते थे, वो पैसे मैं उसमें जमा कर देती थी। चार साल बाद उन पैसों से मैंने अपनी पढ़ाई फिर शुरू की, क्योंकि मैं दोबारा ड्रॉप आउट नहीं होना चाहती थीं।
खुद बदला जिंदगी का ‘अध्याय’
आरती नाईक कहती हैं कि पहली बार कॉलेज की वजह से जब मैंने अपने चॉल से बाहर कदम निकाले, तब मुझे लगा कि ड्रॉप आउट होकर घर बैठना और घर का काम सीखकर शादी करना हमारी जिंदगी का मकसद नहीं है। हमें पढ़ाई के बाद, करियर बनाकर फिर शादी के बारे में सोचना चाहिए। अपने इस ख्याल को जब मैंने अपनी सहेलियों से साझा की, जो मेरी तरह ड्रॉप आउट होकर घर पर बैठी थी, तो उन्होंने मुझे कहा कि कितना भी पढ़ो, लेकिन शादी तो करनी ही है। तो हम क्यों पढ़ाई करें? इससे बेहतर है कि हम अभी से क्यों न घर का काम करें। उनकी बात सुनकर मैं समझ गई कि इनको समझाकर कुछ फायदा नहीं, लेकिन मुझे इन लड़कियों के लिए कुछ न कुछ जरूर करना है।
छोटी बच्चियों के जीवन सुधारने का लिया फैसला
आरती बताती हैं कि बचपन से लेकर बड़ी होने तक जो बातें मुझे किसी ने नहीं सिखाई, वो मैं अपने चॉल की छोटी बच्चियों को सिखाऊंगी। जब मैंने सखी की शुरुआत की तो मैंने देखा सातवीं की लड़की को भी एबीसी पढ़ना नहीं आता था। मैंने तभी सोच लिया कि सखी के जरिए मैं बच्चों को क्वालिटी एज्युकेशन दूंगी, जिससे बच्चे स्कूल में कॉन्फिडेंटली जाएं और ड्रॉप आउट होकर घर पर न बैठें। अपनी इस सोच के साथ 2008 में मैंने 5 बच्चियों के साथ अपने घर से सखी की शुरुआत की। एक साल बाद मैंने उन 5 बच्चियों को लेकर एक रोड शो किया, जिसमें निडर होकर उन्होंने अपनी बात रखी। उनके कॉन्फिडेंस को देखकर और बच्चे सखी से जुड़ने लगे और हमारा परिवार बड़ा हो गया।
‘सखी’ को नहीं मिला था सपोर्ट शुरुआत में
आठ साल तक ‘सखी’ को कहीं से कोई सपोर्ट नहीं मिला था। मैं खुद नहीं जानती थी कि मैं लोगों से कैसे अप्रोच करूं, क्योंकि मैंने कोई मास्टर ऑफ सोशियल वर्क नहीं किया था। मैं टीचर बनना चाहती थी, लेकिन बिना स्कूल गए ही मैं टीचर बन चुकी थी। वह कहती हैं कि बच्चों के लिए बेसिक चीजें और स्टेशनरी के लिए भी मेरे पास पैसे नहीं होते थे। ऐसे में मैंने एक कंपनी में टेलीफोन ऑपरेटर का काम करना शुरू किया। वहां से जो पैसे मिलते थे, उसे मैं सखी में लगाती थी। बच्चों को पढ़ाने के लिए मेरे पास जगह नहीं था और न मैं कोई घर भाड़े पर ले सकती थी। उन्हें मैं अपने छोटे से घर या बाहर बिठाकर पढ़ाती थी। हालांकि 8 साल तक यूं ही चलता रहा लेकिन फिर मेरी मेहनत रंग लाई और मुझे रिलायंस का सपोर्ट मिला। रिलायंस का नाम जुड़ते ही सभी मुझे सामने से एप्रोच करने लगे।
हार नहीं मानी
आरती कहती हैं कि मैंने कभी हार नहीं मानी क्योंकि मैं जानती थी मैं जिस पैशन से आगे बढ़ रही हूं, वो जरूर रंग लाएगी। आज 17 सालों में सखी के परिवार में 4000 लड़कियां और उनका परिवार शामिल हैं। मुझे ख़ुशी है कि मैंने जिन बच्चियों को पढ़ाया, आज वह अपने दम पर अपना करियर बना रही हैं। इनमें से एक नासिक में मैकेनिकल इंजीनियर है। एक ने अभी हाल ही में अपना मास-मीडिया कोर्स कम्प्लीट किया है। एक ने अभी ग्रेज्युएशन कम्प्लीट किया है और वो डेंटिस्ट क्लिनिक में जॉब कर रही है। इस तरह की कई लड़कियां हैं, जो कुछ न कुछ करके अपनी पढ़ाई पूरी करने की कोशिश में लगी है। यह सखी का बहुत बड़ा प्रभाव है कि इन 17 सालों में कोई भी लड़की स्कूल ड्रॉप आउट होकर घर पर नहीं बैठी।
सिर्फ पढ़ाई नहीं, एक्स्ट्रा करिक्यूलर भी
आरती कहती हैं कि ‘सखी’ के जरिए लड़कियों को सिर्फ पढ़ाया नहीं जाता, बल्कि उन्हें लाइफ स्किल ट्रेनिंग और स्किल डेवेलपमेंट भी सिखाया जाता है। एक्स्ट्रा एक्टिविटीज के साथ आउटडोर विजिट होता है। आउटडोर विजिट के द्वारा हम अपनी चॉल की लड़कियों को जेडब्ल्यू मैरियट होटल, फिल्मसिटी, होटल ताज इन जगहों पर लेकर जाते हैं और सब कुछ दिखाते हैं। हमारी चॉल की लड़कियों ने होटल ताज में जाकर राष्ट्रीय गान भी परफॉर्म किया है। इसके अलावा, ब्रिटिश काउंसिल का इंग्लिश कोर्स कम्प्लीट किया है।
लड़कियों की मां भी आगे बढ़ीं
आरती कहती हैं कि जब मम्मियों ने देखा कि उनके बच्चे कॉन्फिडेंटली इंग्लिश में बात कर रही हैं तो उन्हें लगा कि उन्हें भी पढ़ना चाहिए।उनमें से जब कई मेरे पास आई तो मैंने सोचा कि वाकई इन औरतों को भी शिक्षा की बहुत जरूरत है क्योंकि इन्हें अपने घर के अलावा कुछ नहीं पता।तो बच्चों की तरह हमने औरतों को पढ़ाने के साथ आउटडोर विजिट शुरू किया। स्किल डेवेलपमेंट के जरिए हम उनकी स्टिचिंग, पेंटिंग और कुकिंग की प्रतिभा को पहचानकर उनके लिए भी कुछ करने की कोशिश करते हैं। हमें खुशी है कि महिलाओं की तरक्की में अब उनके हस्बैंड भी योगदान कर रहे हैं। इंफैक्ट कितने आदमी मुझसे आकर कहते भी हैं कि आप लड़कियों और औरतों के लिए इतना कुछ कर रही हैं तो हम पुरुषों के लिए क्यों नहीं? हमने आपका क्या बिगाड़ा है?
चैलेंज
आरती कहती हैं कि फाइनैंस चैलेंज के बारे में कहूं तो कम्युनिटी चैलेंज के साथ कई चैलेंजेस लाइफ में आए, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी। कई बार यहां लोगों को इस बात से भी चिढ़ होती है कि एक औरत इतना काम कैसे कर रही है? उसकी वजह से यहां काफी लोगों ने झगड़ा-फसाद भी किया है, लेकिन मैं कभी डरी नहीं। मैं खुश हूं कि ‘सखी’ के साथ हम बच्चियों की पढ़ाई के अलावा उनके न्यूट्रिशन और सैनिटेशन का ख्याल रखते हुए उन्हें राशन किट और सैनिटरी पैड दे रहे हैं। मेरे लिए अभाव मायने नहीं रखते। मैं इतना जानती हूं कि ‘सखी’ न कभी रुकी है, न रुकेगी। ‘सखी’ लगातार बड़ी होती जा रही है और उसी के साथ आरती भी।
क्रेडिट
सीईओ एवं एडिटर इन चीफ : तान्या चैतन्या
सीनियर फीचर्स एडिटर : अनुप्रिया वर्मा
कॉन्टेंट क्रियेटर : रजनी गुप्ता
वीडियो एडिटर : समीर मोरे
वीडियोग्राफर : हरीश अय्यर, यश बेदी