बचपन में हम सभी सपने देखते हैं, लेकिन बहुत कम होते हैं, जो उन सपनों को पूरा कर पाते हैं। भारत की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर सुरेखा यादव ने न सिर्फ सपने देखें, बल्कि उन्हें मुकम्मल भी किया। आइए जानते हैं उनसे जुड़ीं कुछ खास बातें।
मैथ्स टीचर बनना चाहती थीं सुरेखा यादव
2 सितंबर 1965 को महाराष्ट्र के सातारा में रामचंद्र भोसले और सोनाबाई के घर जन्मीं सुरेखा यादव, अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं और पढ़ने में काफी होशियार थीं। सेंट पॉल कॉनवेंट स्कूल, सातारा से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बिजनेस ट्रेनिंग ली और फिर सातारा में ही एक सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। गौरतलब है कि टीचर बनने का अपना सपना पूरा करने के लिए वे मैथ्स से बीएससी करके बीएड करना चाहती थीं, लेकिन उनके भाग्य में कुछ और ही लिखा था। डिप्लोमा करने के बाद 1986 में वे कल्याण ट्रेनिंग स्कूल में रेलवे ट्रेनर के रूप में मात्र 6 महीने के लिए सेंट्रल रेलवे से जुड़ी थी, लेकिन संयोग कुछ ऐसा बना कि इंडियन रेलवे में नौकरी के साथ उनका मैथ्स टीचर बनने का सपना धरा का धरा ही रह गया।
महज 23 साल में रचा इतिहास
वर्ष 1986 में भारतीय रेलवे से जुड़ने के महज दो साल बाद वर्ष 1988 में वह भारत की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बन गई थीं, लेकिन 8 मार्च 2011 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन डेक्क्न क्वीन एक्सप्रेस ट्रेन को पुणे से सीएसटी, मुंबई तक लाकर, भारत के साथ पूरे एशिया की भी पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बनकर उन्होंने इतिहास रच दिया था। उसके बाद अपनी उपलब्धियों में उन्होंने एक पन्ना और जोड़ा, जब वर्ष 2023 में वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन शुरू हुई। सोलापुर से सीएसटी तक 455 किलोमीटर की दूरी तय कर वे इस सेमी-हाई-स्पीड ट्रेन को चलानेवाली पहली महिला भी बन गयीं। गौरतलब है कि इन उपलब्धियों के अलावा वर्ष 2000 में जब तत्कालीन रेलवे मिनिस्टर ममता बैनर्जी ने पहली बार महिला यात्रियों को ध्यान में रखते हुए चार महानगरीय शहरों में लेडीज स्पेशल ट्रेन की शुरुआत की थी, तब उनके चालक दल की कमिटी में बतौर सदस्या सुरेखा यादव भी थीं।
दूसरी महिलाओं का बढ़ाया हौसला
वर्ष 1986 में भारतीय रेलवे से जुड़नेवाली सुरेखा यादव बतौर ड्राइवर काफी वर्षों तक भारतीय रेलवे में एक मात्र अकेली महिला थीं। लेकिन फिर उन्हें देखकर दूसरी महिलाएं भी प्रेरित हुईं और वर्ष 2011 में उपनगरीय ट्रेनों और मालगाड़ियों का संचालन करने के लिए 50 महिला लोकोमोटिव ड्राइवरों की भर्ती हुई। अन्य महिलाओं को इस क्षेत्र में लाने के लिए न सिर्फ उन्हें सराहा गया, बल्कि कई महिला संगठनों ने उनका सत्कार भी किया। फिलहाल उनके काम को लेकर कई नेशनल और इंटरनेशनल टेलीविजन चैनलों पर सुरेखा यादव के इंटरव्यूज भी आ चुके हैं। सिर्फ यही नहीं टेलीविजन धारावाहिक ‘हम किसी से कम नहीं’ में अपने वास्तविक स्वरूप अर्थात एक ट्रेन ड्राइवर के रूप में आकर भी उन्होंने दर्शकों को प्रेरित किया है।
पति और बच्चों की सुपर वूमन
महाराष्ट्र सरकार में पुलिस निरीक्षक के तौर पर तैनात शंकर यादव से सुरेखा यादव का विवाह वर्ष 1990 में हुआ था। अपने काम में बेहद व्यस्त रहने के बावजूद उनके पति ने हमेशा उनका साथ दिया। इस विवाह से सुरेखा यादव को दो बेटे हैं, अजिंक्य और अजितेश। मुंबई यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग कर चुके अपने दोनों बेटों की सुपर मॉम सुरेखा यादव ने अपनी पर्सनल लाइफ के साथ प्रोफेशनल लाइफ में भी एक बहुत अच्छा संतुलन बिठा रखा है। फिलहाल आज वे जिस जगह हैं, उसके लिए उनकी लगन, मेहनत और मजबूत इच्छा शक्ति की जितनी तारीफ की जाए काम है।
पुरस्कारों के साथ जीता दिल
भारत की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर सुरेखा यादव ने अपने काम के लिए कई पुरस्कार भी जीते हैं। उनके पुरस्कारों की लिस्ट में वर्ष 1998 में मिला जिजाऊ पुरस्कार, वर्ष 2001 में मिला महिला प्राप्ति पुरस्कार और राष्ट्रीय महिला आयोग पुरस्कार के साथ केंद्रीय रेलवे की तरफ से मिला महिला प्राप्तकर्ता पुरस्कार, वर्ष 2013 में आरडब्लूसीसी की तरफ से मिला सर्वश्रेष्ठ महिला वर्ष पुरस्कार और भारतीय रेलवे में पहली महिला लोकोपायलट के लिए मिला जीएम पुरस्कार उल्लेखनीय है। गौरतलब है कि इन पुरस्कारों के अलावा भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ रेडियो पर प्रसारित होनेवाले अपने कार्यक्रम मन की बात में सुरेखा यादव और उनकी उपलब्धियों का जिक्र कर पूरे देश को प्रेरणा का संदेश दिया था, बल्कि अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्हें न्योता देकर पूरे भारतीय रेलवे का मान भी बढ़ाया था।