पद्मभूषण डॉ वी शांता को कैंसर सर्वाइवर के लिए मदर टेरेसा मानी जाती थीं, क्योंकि उनकी पूरी जिंदगी कैंसर से लोगों को मुक्ति दिलाने में रही। आइए इनके बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।
कौन थीं डॉ वी शांता
पद्मभूषण डॉ वी शांता का पूरा नाम विश्वनाथन शांता रहा। उनका पूरा जीवन कैंसर के मरीजों की सेवा में और उनके लिए उपचार की तलाश में ही गुजरा। यह उनकी खूबी रही कि उन्होंने कभी भी अपने काम पर गुमान नहीं किया। डॉ विश्वनाथन शांता ऑन्कोलॉजी के क्षेत्र में हमेशा आगे रहीं और उन्होंने 6 दशकों से भी अधिक समय कैंसर पीड़ित लोगों की देखभाल में ही गुजार दिया और अपना जीवन उन्हें समर्पित किया। वह देश में कैंसर उपचार उपलब्ध कराने में अपने उत्कृष्ट और महत्वपूर्ण प्रयासों के लिए जानी जाती हैं। वह महिला भारत संघ (डब्ल्यूआईए) चेन्नई द्वारा स्थापित कैंसर संस्थान की अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष थीं, जिसे डब्ल्यूएचओ द्वारा देश में शीर्ष रैंकिंग कैंसर केंद्र के रूप में दर्जा दिया गया है। उनकी उपलब्धि को भुलाया नहीं जा सकता है।
बचपन
डॉ वी शांता के जन्म की बात की जाए, तो उनका जन्म 11 मार्च 1927 को मायलापुर, चेन्नई में भारत के एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता विश्वनाथन और बालापार्वती थे। उनके अपने दादा सर सीवी रमन और उनके चाचा डॉ सुब्रमण्यम चन्द्रशेखर थे। शांता बचपन से ही अपने दादाजी से प्रभावित रहीं। वह उनके मुख्य प्रेरणा स्रोत थे। वह हमेशा से जीवन में दूसरों के लिए कुछ करना चाहती थीं। उन्होंने नेशनल गर्ल्स हाई स्कूल में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और उसके बाद से ही उन्होंने चिकित्सा के पेशे में आने का दृढ़ संकल्प किया। उन्होंने वर्ष 1943 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की।
आगे की पढ़ाई
उस दौर में जब लड़कियों को बहुत अधिक स्कूल नहीं भेजा जाता था। शांता एक बौद्धिक परिवार से थीं और उन्हें पढ़ने के लिए विशेष रूप से भेजा जाता था। शांता ने इसलिए शुरू से ही अपने करियर के बारे में ठान लिया था कि वह कुछ अलग बनेंगी। ऐसे में उनकी जब मुलाकात लेडी डफरिन और डॉ मुथुलक्ष्मी रेड्डी से हुई और इन्होंने उनके जीवन को काफी प्रभावित किया और इनकी वजह से ही चिकित्सा के क्षेत्र में उन्होंने अपना करियर बनाने का निर्णय लिया। गौरतलब है कि उन्होंने 1949 में एमबीबीएस के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1952 में और 1955 में प्रसूति एवं स्त्री रोग में उन्होंने एमडी किया। बाद में उन्हें टोरंटो में ऑन्कोलॉजी और यूके में बोन मैरो ट्रांसप्लांट में खुद का प्रशिक्षण किया।
उद्देश्य
डॉ शांता का पसंदीदा मंत्र था "कैंसर के निदान से नहीं, बल्कि इसकी देरी से डरें।" वह 1960 के दशक की शुरुआत से ही इस संदेश को प्रचारित करने के लिए प्रतिबद्ध थीं कि शुरुआती कैंसर का इलाज संभव है। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि कैंसर का इलाज अधिक सुलभ और किफायती होना चाहिए, उन्होंने इस बात पर फोकस किया, उनकी कैंसर मरीजों के लिए किये गए कई कामों और कोशिशों के कारण उनकी गिनती हमेशा मिसालों में की जाएगी।
lead photo credit : adyar cancer institute