किसी के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करना कोई आम बात नहीं है। लेकिन क्या आप जानते हैं , भारत की पहली ट्री वूमन ने यह कर दिखाया है। जी हां, उन्होंने अपना पूरा जीवन पेड़ों की सुरक्षा के लिए दान कर दिया है। हम बात कर रहे हैं, पद्मश्री सम्मान से सम्मानित कर्नाटक की सबसे उम्रदराज पर्यावरण प्रेमी सालुमारदा थिममक्का के बारे में। उन्होंने बहुत कम उम्र से ही पेड़ों के प्रति अपना प्रेम भाव और समर्पण दिखाया। बीते 66 सालों में सालुमारदा ने अपनी जीवनशैली से प्रकृति को अहमियत देने और उसकी कदर करने की सीख दी है। मिली जानकारी अनुसार थिममक्का की उम्र 100 साल से अधिक है।
आइए जानते हैं विस्तार से।
ऐसे हुई शुरुआत
ज्ञात हो कि थिममक्का का जन्म बेंगलुरु के ग्रामीण जिले के मगदी तालुका के हुलिकल गांव में हुआ था। बचपन से उनका पेड़ों के प्रति लगाव रहा। लेकिन शादी के बाद उन्होंने पेड़ों और पौधों के बीच अपने लिए जीवन की रोशनी की तलाश की और इसमें उनकी मदद उनके पति ने की। उन्होंने थिमक्का को हौसला दिया और पेड़ों के जरिए जीवन को नई दिशा देने का सराहनीय प्रयास किया, जिससे थिममक्का का कद देश की धरोहर के तौर पर बढ़ाया है।
8000 से अधिक पौधे
थिममक्का ने बीते 66 सालों में आठ हजार से अधिक पौधे लगाए हैं। अपने जीवन में इतनी बड़ी संख्या में पेड़ लगाने के साथ उन्होंने रिकॉर्ड कायम कर लिया और खुद को ट्री वूमन का खिताब दिया। हालांकि उनके ट्री वूमन बनने के पीछे की कहानी काफी प्रेरणादायक है। मिली जानकारी अनुसार थिममक्का को शादी के बाद बच्चे नहीं हुए। ऐसे में परिवार और समाज के बीच उन्हें काफी ताने सुनने को मिले। ऐसे में अपने जीवन में सकारात्मकता को भरने के लिए सालुमरादा ने पेड़ लगाना शुरू किया। सालुमरादा ने अपने पति के साथ मिलकर बरगद के साथ कई और भी पेड़ लगाएं और बच्चों की तरह उनकी देखभाल शुरू की।
पौधों की देखरेख में लगाया पैसे
सालुमरादा ने अपने जीवनकाल में जितने भी पेड़ लगाएं हैं, उनकी परवरिश के लिए पैसे भी खर्च किए हैं। कई लोग ऐसे होते हैं, जो पेड़ लगाने के बाद उसकी देखरेख करना भूल जाते हैं। लेकिन थिममक्का ने न सिर्फ पेड़ लगाएं बल्कि उसकी देखरेख ठीक बच्चे की तरह की और जब भी जरूरत पड़ी उन्होंने पैसे खर्च करने से पहले पीछे नहीं हटीं। हालांकि शुरू में जहां उन्होंने अपने पति के साथ पेड़ों को जीवन देने का कार्य शुरू किया, तो वहीं पति के निधन के बाद भी उन्होंने अपना हौसला बनाते हुए पेड़ लगाने का कार्य जारी रखा।
थिमक्का के जज्बे को सलाम
साल 1996 में थिममक्का को राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यहां तक कि उनके जीवन पर एक फिल्म भी बनाई गई। आर्थिक तौर पर मजबूत होने के कारण थिमक्का को पैसे की कमी का भी सामना करना पड़ा लेकिन वह कभी-भी निराश नहीं हुईं। फिलहाल उनका सपना अस्पताल बनाना है। जिसके लिए वह लगातार प्रयास कर रही हैं।