आप किताबें खरीदने या पढ़ने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं, तो शायद यह आपके लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी। शिक्षा हासिल करना भी शायद कोई बड़ी बात न हो हम सबके लिए। लेकिन तारा श्वेता कट्टी, जैसी लड़की या महिलाओं के लिए यह किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है, जिनके लिए किताबें पढ़ना या शिक्षा हासिल करने का सफर आसान नहीं रहा है। खासतौर से तब, जब उनकी परवरिश मुंबई के रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा में हुई हो। ऐसे में तारा श्वेता कट्टी ने किस तरह से शिक्षा प्राप्त की, Her Circle से खास बातचीत में उन्होंने अपने इस सफर पर उनके लिए भावनात्मक रूप से जो भी परेशानियां, रुकावटें और संघर्ष आये हैं, उसकी पूरी दास्तां सुनाई है। उन्होंने बताया है कि सोशल मीडिया पर वह भले ही बेहद लोकप्रिय हैं। उन्हें भले ही उस लड़की के रूप में जाना जाता हो कि वह रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा की पहली लड़की हैं, जो स्कॉलरशिप के माध्यम से अमेरिकन विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने गई हों, लेकिन यह उनके सफर का अंत नहीं है और बस इतना ही नहीं ही, क्योंकि उनके खुद के जीवन का लक्ष्य केवल विदेश में पढ़ना भर नहीं है, बल्कि यह उनकी कहानी की शुरुआत है, जिसमें वह आत्म- जागरूकता, मानसिक स्वास्थ्य और सही मायने में समग्र और समावेशी शिक्षा को हासिल करना है।
संयुक्त राष्ट्र युवा साहस पुरस्कार की विजेता ने बताया कि किस तरह उन्हें हमेशा से ही पढ़ना बेहद पसंद रहा, किस तरह से उन्हें पढ़ाई की लत लगी। यह तब शुरू हुआ, जब उन्होंने हैरी पौत्र की फिल्में हिंदी में देखी और उसे देखने के बाद, उनकी चाहत हुई कि वह इस किताब को पढ़ें और शायद वह इसमें खो कर, अपनी वास्तविक जीवन की सच्चाई से कुछ समय के लिए पीछा छुड़ा लें। वर्ष 2011 में, वह क्रांति नामक एनजीओ से जुड़ गयीं। इस एनजीओ का निर्माण जाने माने एक्टिविस्ट रोबिन चौरसिया ने किया है, यह एनजीओ कमाठीपुरा की लड़कियों को एक सुरक्षित स्थान देता है, जहां वह खुद को निखारने का काम कर सकें। तो, कट्टी जिन्हें पढ़ाई में हमेशा से दिलचस्पी रही, उन्हें स्कॉलरशिप मिला और वह पढ़ने के लिए न्यूयॉर्क के बार्ड कॉलेज में गयीं, उनकी बहनों ने खुद को एक कलाकार बनाने के लिए सशक्त किया।
कट्टी की किताबों तक पहुंच तब बढ़ी, खासतौर से अंग्रेजी किताबों तक, जब वह क्रांति से जुड़ीं। इसके बाद से उन्होंने अपनी मानसिक स्थिति पर काम ध्यान केंद्र करना शुरू किया। उन्होंने बताया कि किस तरह से उन्होंने रॉबिन चौरसिया के अंतर्गत मानसिक स्थिरता पाने के लिए थेरेपी और मेडिटेशन का सहारा लिया। उनके लिए खुद की शारीरिक बनावट एक चुनौती बन गई थी और वह इसे बेहतर करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही थीं। वर्ष 2013 में जब वह अमेरिका पढ़ने गई थीं, तो यह चुनौतियां उनके साथ रहीं। हमारे साथ दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने अपनी भावनात्मक पहलुओं को भी साझा किया है, जिससे वह उस वक्त गुजर रही थीं। उन्होंने यह भी बताया कि लोगों के जेहन में उस वक्त सिर्फ यही बात थी, जिस पर वह ध्यान दे रहे थे कि मुझे स्कॉलरशिप मिली है और यह कितनी बड़ी बात है। लेकिन उन्होंने मेरी उन चुनौतियों और कारणों को समझने की कोशिश नहीं की, जिसकी वजह से मुझे ड्रॉप होना पड़ा या वहां की पढ़ाई आधी छोड़नी पड़ी।
कट्टी की कहानी दर्शाती है कि केवल चंद उपलब्धियां हासिल कर लेना ही सबकुछ नहीं होता है, बल्कि हमारे में जो शिक्षा की जरूरत है, बच्चों को जो शिक्षा चाहिए, उन्हें शिक्षित करना कितना जरूरी है। अधिक अंक प्राप्त करना या फिर ढेर सारी डिग्री हासिल कर लेना, एक जॉब हासिल कर लेना, भौतिक सुख आपकी जिंदगी तभी बदल सकते हैं, जब आप शिक्षित होंगे, तभी असली तरक्की करेंगे, क्योंकि शिक्षा ही हमें ताकत देती है कि हम खुद को जागरूक बना पाएं, हम भविष्य में खुद के लिए एक बेहतर जिंदगी हासिल कर पाएं और तभी सामजिक बदलाव संभव है। तो कट्टी के सफर को जानने के लिए, सबके लिए शिक्षा क्यों जरूरी है और उनका शिक्षा के महत्व को लेकर क्या नजरिया रहा है और वह कमाठीपुरा के बच्चों के लिए क्या करना चाहती हैं। जानने के लिए देखिए यह पूरा इंटरव्यू