इंटरनेशनल साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमैटिक्स डे (अंतरराष्ट्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित दिवस) के अवसर पर आइए जानते हैं 19वीं सदी की उन भारतीय महिलाओं के बारे में, जिन्होंने इन क्षेत्रों में न सिर्फ अपनी पहचान बनाई, बल्कि दूसरी महिलाओं को भी आगे आने की प्रेरणा दी।
प्राचीन भारत की पहली महिला गणितज्ञ लीलावती

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लीलावती प्राचीन भारत की एक प्रसिद्ध गणितज्ञ होने के साथ-साथ भारत के प्रतिष्ठित गणितज्ञ भास्कराचार्य की इकलौती बेटी भी थीं। ऐसी मान्यता है कि जब बहुत जतन के बावजूद लीलावती का विवाह नहीं हो पाया तो वे गहरे विषाद में डूब गई। लीलावती को गहरे विषाद से निकालने और उसकी गणितीय प्रतिभा को देखते हुए उसके पिता भास्कराचार्य ने एक युक्ति निकाली। उन्होंने उसके सामने एक गणितीय पहेली रखकर उसे एक चुनौती के रूप में लेते हुए हल करने को कहा। पिता की बात मानकर लीलावती उस पहेली को हल करने बैठ गई. कुशाग्र बुद्धि की लीलावती उस पहेली में इस कदर रम गई कि उसे पता ही नहीं चला। कुछ देर बाद जब उसने इसे हल कर लिया तो उसकी निराशा गायब हो चुकी थी। उसे लगा उसका जीवन संभावनाओं से भर चुका है। जैसा कि भास्कराचार्य संस्कृत में काफी पारंगत थे, सो वे हर दिन लीलावती को छंदों के रूप में गणित की और जटिल समस्याएं देने लगें, जिसे लीलावती ने पाइथागोरस थियरी से हल करने लगी। माना जाता है कि समय के साथ लीलावती जटिल से जटिल समस्याओं को पलक झपकते हल करने में माहिर हो गई थी। इन सभी जटिल समस्याओं को उन्होंने एक पुस्तक में एकत्रित करते हुए, उसे तेरह अध्यायों में व्यवस्थित किया और नाम दिया लीलावती। गौरतलब है कि वर्ष 1150 के आस-पास लिखी गई इस पुस्तक में संख्याओं की गिनती करने की कई विधियां सुझाई गई हैं। यह पुस्तक उनके ‘सिद्धांत शिरोमणि’ का पहला खंड भी है, जिसमें बीजगणित, ग्रहगणित और गोलाध्याय शामिल हैं। इस पुस्तक के आधार पर लीलावती को प्राचीन भारत की पहली महिला गणितज्ञ की उपाधि भी मिली हुई है।
एक साथ डॉक्टर बनी थीं कादंबिनी बोस गांगुली और आनंदीबाई जोशी

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वर्ष 1886 में कादंबिनी बोस गांगुली और आनंदीबाई जोशी, इन दोनों ने वेस्टर्न मेडिसिन में डॉक्टर की डिग्री हासिल की थी, लेकिन ब्रिटिश भारत की पहली महिला डॉक्टर कहलाने का श्रेय मिला कादंबिनी गांगुली को। इसकी वजह है सिर्फ 22 वर्ष की आयु में हुई आनंदीबाई जोशी की असामयिक मृत्यु। गौरतलब है कि वर्ष कादंबिनी बोस गांगुली ने जहां कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की थी, वहीं आनंदीबाई जोशी ने अमेरिका के फिलाडेल्फिया से मेडिकल डिग्री प्राप्त किया था। 31 मार्च 1865 को महाराष्ट्र के पुणे जिले में यमुना जोशी के रूप में पैदा हुई आनंदीबाई जोशी, की पहचान अमेरिका से मेडिकल डिग्री पानेवाली पहली भारतीय महिला के तौर पर आज भी बनी हुई है। रही बात कादंबिनी बोस गांगुली की तो भारत की पहली महिला डॉक्टर के रूप में उन्होंने न सिर्फ चिकित्सा पद्धति स्थापित की, बल्कि भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस की वे पहली महिला वक्ता भी थीं।
प्रसिद्ध बॉटनिस्ट के साथ प्लांट सिटोलॉजिस्ट ई के जानकी अम्मल

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वर्ष 1931 में मिशिगन से डॉक्टरेट ऑफ साइंस की डिग्री लेकर ई के जानकी अम्मल ने इंडियन एकेडमी ऑफ साइंस की फाउंडर फेलो हैं। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित ई के जानकी अम्मल एक प्रसिद्ध बॉटनिस्ट के साथ प्लांट सिटोलॉजिस्ट भी हैं, जिन्होंने जेनेटिक्स के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
सी वी रमन के साथ काम करनेवाली पहली और एकमात्र भारतीय महिला वैज्ञानिक अन्ना मणि

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वर्ष 1945 में मद्रास से पीएचडी की डिग्री प्राप्त कर डॉक्टर सर सी वी रमन के साथ काम करनेवाली पहली और एकमात्र भारतीय महिला वैज्ञानिक के तौर पर अन्ना मणि का नाम आता है। सर सी वी रमन के साथ मिलकर अन्ना मणि ने एटमॉसफीरिक फिजिक्स और इंस्ट्रूमेंटेशन पर प्रभावशाली काम किया है। इसके अलावा उन्होंने रेडिएशन, ओजोन और एटमॉसफीरिक इलेक्ट्रिसिटी में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वर्ष 1948 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में शामिल होकर वह दिल्ली में वेधशालाओं की पहली महिला डेप्युटी डाइरेक्टर जनरल भी बनी।
कर्नाटक की पहली महिला इंजीनियर राजेश्वरी चैटर्जी

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कर्नाटक की पहली महिला इंजीनियर राजेश्वरी चैटर्जी आईआईएससी (भारतीय विज्ञान संस्थान) में प्रोफेसर होने के अलावा इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट की चेयरपर्सन भी थीं। यही वजह है कि वे खुद को इंजीनियरिंग-वैज्ञानिक कहती थीं। 24 जनवरी 1922 को कर्नाटक में जन्मीं राजेश्वरी चैटर्जी की शुरुआती शिक्षा उनकी दादी कमलम्मा दासप्पा द्वारा बनाए गए एक स्पेशल इंग्लिश स्कूल में हुई, जो मैसूर की पहली महिला यूनिवर्सिटी भी थी। इस यूनिवर्सिटी में विशेष रूप से विधवाओं और अपने घरवालों द्वारा त्यागी गई महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी। हालांकि इतिहास में रूचि रखनेवाली राजेश्वरी चैटर्जी ने बेंगलुरु के सेंट्रल कॉलेज से न सिर्फ फिजिक्स और मैथमैटिक्स के साथ बीएससी की डिग्री हासिल की, बल्कि मैथमैटिक्स में एमएससी की डिग्री भी हासिल की। गौरतलब है कि इन दोनों ही परीक्षाओं में वे पूरे मैसूर यूनिवर्सिटी में फर्स्ट आई थीं।
मेडिसिन और सर्जरी लाइसेंस के साथ ग्रेजुएशन करनेवाली डॉक्टर जैमिनी सेन

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20 जून 1871 को बारिसल, जो अब बांग्लादेश है, में जन्मीं डॉक्टर जैमिनी सेन, एक भारतीय चिकित्सक और ग्लासगो के रॉयल फैकल्टी ऑफ फिजिशियन और सर्जन की महिला फेलो थीं। यही नहीं ब्रिटिश राज में चिकित्सा पेशे में प्रवेश करनेवाली पहली महिलाओं में से भी एक थीं। गौरतलब है कि उनकी बहन कामिनी रॉय, ब्रिटिश भारत में पहली महिला ऑनर्स ग्रेजुएट होने के साथ-साथ प्रसिद्ध फेमिनिस्ट भी थी। हालांकि राजेश्वरी चैटर्जी की बात करें तो 1897 में मेडिसिन और सर्जरी के लाइसेंस के साथ ग्रेजुएशन कर 1899 में वे नेपाल चली गईं थीं। वहां के शाही परिवार की पर्सनल डॉक्टर के साथ-साथ उन्होंने लंबे समय तक काठमांडू जनाना अस्पताल की भी देख-रेख की।
भारत की लोकप्रिय गायनैकोलॉजिस्ट हिल्डा मैरी लाजर

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23 जनवरी 1890 को दक्षिण भारत के विशाखापट्नम में जन्मीं हिल्डा मैरी लाजर, ब्रिटिश भारत की लोकप्रिय गायनैकोलॉजिस्ट थीं। आंध्र मेडिकल कॉलेज की प्रिंसिपल और विशाखापट्नम में किंग जॉर्ज अस्पताल की सुपरिटेंडेंट होने के साथ-साथ वे वेल्लोर में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की पहली भारतीय डाइरेक्टर भी थीं। अपने नौ भाई-बहनों में एक हिल्डा के पिता एक सम्मानित क्रिश्चियन टीचर होने के साथ-साथ ऑथर भी थे।
बंगाल की पहली महिला इंजीनियर इला घोष

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24 जुलाई 1930 को ईस्टर्न बंगाल के फरीदपुर जिले के मदारीपुर गांव में जन्मीं इला घोष न सिर्फ एक मैकेनिकल इंजीनियरिंग थीं, बल्कि बंगाल की पहली महिला इंजीनियर भी थीं। अपने आठ भाई-बहनों में से एक इला घोष के पिता जतिंद्र कुमार मजूमदार एक डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। बचपन से ही इंजीनियरिंग के प्रति इला में छिपी प्रतिभा को समझते हुए उनके पिता ने उन्हें बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज में भर्ती करवा दिया था, जहां उनके साथ एक और महिला भी थी। हालांकि कॉलेज एडमिशन के एक साल बाद ही उस महिला ने पढ़ाई छोड़ दी और इला घोष इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट होनेवाली पहली महिला बन गई। गौरतलब है कि वर्ष 1951 में इला घोष ने इंजीनियरिंग की उपाधि हासिल की थी।
भारतीय यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टर ऑफ साइंस से सम्मानित होनेवाली पहली महिला असीमा चैटर्जी

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वर्ष 1977 में जन्मीं असीमा चैटर्जी, वर्ष 1944 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी द्वारा डॉक्टर ऑफ साइंस से सम्मानित होनेवाली पहली महिला थी। इसके अलावा वैज्ञानिक अनुसंधान की देख-रेख करनेवाली संस्था भारतीय विज्ञान कॉंग्रेस के जनरल प्रेसिडेंट के रूप में चुनी जानेवाली भी वे पहली महिला थीं। अपने कामों के लिए उन्हें एसएस भटनागर पुरस्कार, सीवी रमन पुरस्कार और पीसीरे पुरस्कार के अलावा विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्मभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। गौरतलब है कि मेडिसिनल केमिस्ट्री में उन्हें खासी रूचि थी।
भारत में पहली टिशू कल्चर प्रयोगशाला की स्थापना करनेवाली कमल जयसिंह रणदिवे

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8 नवंबर 1917 में पुणे में जन्मीं कमल रणदिवे एक बायोमेडिकल रिसर्चर थीं, जो कैंसर और वायरस के बीच संबंधों पर अपने शोध के लिए जानी जाती हैं। इंडियन कैंसर रिसर्च सेंटर में भारत में पहली टिशू कल्चर प्रयोगशाला की स्थापना के साथ भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ (IWSA) की स्थापना भी इन्होने ही की थी। इसके अलावा कुष्ठ रोग के क्षेत्र में अपने काम के लिए इन्हें वाटुमल फाउंडेशन पुरस्कार के साथ वर्ष 1982 में चिकित्सा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।