हर वर्ष 15 अक्टूबर को मनाया जानेवाला अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस (International Day of Rural Women) दुनिया भर की उन ग्रामीण महिलाओं को समर्पित है, जिन्होंने अपनी मेहनत और संकल्प के बल पर इतिहास रच दिया है। आइए ऐसी ही कुछ भारतीय ग्रामीण महिलाओं के बारे में जानते हैं।
‘अनाथों की मां’ सिंधुताई सपकाल
अपने साहस, संघर्ष और संकल्प से लाखों ग्रामीण महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर रहीं ये महिलाएं समाज को एक नई दिशा दिखाते हुए ग्रामीण समुदायों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को भी उजागर करती हैं। फिलहाल कृषि, पर्यावरण संरक्षण, परिवार और सामाजिक विकास में अहम भूमिका निभा रहीं जिन ग्रामीण महिलाओं ने स्थानीय समुदायों के साथ-साथ अपनी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई है, उनमें पहला नाम आता है अपनी ममतामयी व्यक्तित्व के साथ ‘अनाथों की मां’ कही जानेवाली सिंधुताई सपकाल का। महाराष्ट्र के एक गरीब ग्रामीण परिवार में जन्मीं सिंधुताई सपकाल को कौन नहीं जानता? उन्होंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किए, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। अपने बच्चों के साथ हजारों अनाथ बच्चों की मां बनकर उन्होंने न सिर्फ सबकी जिंदगी बदली, बल्कि लोगों के लिए मिसाल भी बनीं। समाज सेवा के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीतनेवाली सिंधुताई की कहानी आज करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा बन चुकी है।
अवैध शराब के खिलाफ आंदोलन चलानेवाली कुइनी देवी
उत्तराखंड की कुइनी देवी एक साधारण ग्रामीण महिला थीं, जिन्होंने अवैध शराब के कारोबार के खिलाफ आंदोलन चलाया और अपनी पंचायत में महिलाओं को संगठित कर इस सामाजिक बुराई का अंत किया। उनके आंदोलन से न केवल शराब के अवैध धंधे पर रोक लगी, बल्कि समाज में महिलाओं की एक नई भूमिका को भी उजागर किया।
'तुमकुरु की मदर टेरेसा' लछमाव्वा येलप्पा
लछमाव्वा कर्नाटक की एक ग्रामीण महिला थीं, जिन्होंने बिना औपचारिक शिक्षा के अपने गांव में सामाजिक सुधार लाने में अग्रणी भूमिका निभाई थी। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के लिए काफी काम किया था, यही वजह है कि उन्हें 'तुमकुरु की मदर टेरेसा' कहा जाता है और उनकी कहानी महिलाओं के अधिकारों के संघर्ष का एक जीवंत उदाहरण बन चुकी है।
कृषि क्षेत्र में आर्थिक संपन्न बनानेवाली माया विश्नोई
राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र की माया विश्नोई ने शिक्षा और कृषि विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया। उन्होंने अपने समुदाय को जैविक खेती और स्थायी कृषि प्रथाओं की ओर प्रेरित किया। उनके प्रयासों से गांव में आर्थिक स्थिति बेहतर हुई और ग्रामीण महिलाओं को कृषि क्षेत्र में सशक्त बनाने के लिए प्रेरणा मिली।
आदिवासी समुदायों की ढ़ाल फुलमा देवी महतो
झारखंड की एक ग्रामीण महिला, फुलमा देवी महतो ने अपनी जमीन और जल संसाधनों की रक्षा के लिए आदिवासी समुदायों को संगठित किया। उन्होंने खदानों और औद्योगिक परियोजनाओं से पर्यावरण और समुदाय पर हो रहे नुकसान के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने न सिर्फ स्थानीय जल स्रोतों और जमीन की सुरक्षा के लिए संघर्ष किया, बल्कि आदिवासी समुदायों को उनके संसाधनों पर अधिकारों के प्रति जागरूक भी किया।
पारंपरिक जल प्रबंधन तकनीकों को पुनर्जीवित करनेवाली हिंगलाज देवी
राजस्थान की एक मामूली ग्रामीण महिला, हिंगलाज देवी ने पारंपरिक जल प्रबंधन तकनीकों को पुनर्जीवित करते हुए, पानी की कमी से जूझ रहे अपने गांव में जल संचयन परियोजनाओं को बढ़ावा दिया और नई पीढ़ियों को परंपरागत जल संरक्षण विधियों का ज्ञान भी दिया। हिंगलाज देवी के नेतृत्व में उनके गांव ने सूखे जैसी गंभीर समस्याओं को हल किया और उनका मॉडल अब कई अन्य गांवों में लागू किया जा रहा है।
‘चिपको आंदोलन’ की अग्रणी गौरी देवी
उत्तराखंड की ग्रामीण महिला गौरी देवी, चिपको आंदोलन का एक महत्वपूर्ण चेहरा थीं। यह आंदोलन पेड़ों की कटाई को रोकने और पर्यावरण की रक्षा के लिए चलाया गया था। उन्होंने महिलाओं के साथ मिलकर पेड़ों से लिपटकर उन्हें कटने से बचाया था। चिपको आंदोलन ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा संदेश दिया और गौरी देवी की बहादुरी ने वैश्विक स्तर पर पर्यावरण आंदोलनों को प्रेरित किया।
वित्तीय आजादी की दिशा में कदम उठानेवाली बबिता देवी
बिहार के एक छोटे से गांव से आने वाली बबिता देवी न सिर्फ अपने लिए, बल्कि अपने पूरे गांव के लिए बदलाव की बयार लेकर आईं। उन्होंने महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के जरिए संगठित करते हुए, उन्हें वित्तीय आजादी की दिशा में कदम उठाने के लिए प्रेरित भी किया। बबिता देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने आर्थिक और सामाजिक स्तर पर अपनी स्थिति को बेहतर किया। इस दिशा में उनकी सेवाओं के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
शौचालय के लिए पति का घर छोड़कर मिसाल बनी अनीता नर्रे
अपने गांव में स्वच्छता के मुद्दे पर एक बड़ा आंदोलन चलानेवाली अनीता नर्रे को कौन भूल सकता है? उन्होंने अपने घर में शौचालय न होने के कारण अपने पति का घर छोड़ दिया था, जिससे शौचालय को लेकर उनके गांव में ही नहीं, बल्कि आस-पास के गांव में भी जागरूकता फैल गई थी। सिर्फ यही नहीं महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों और वृद्धों में भी स्वच्छता के प्रति सोच में बदलाव आ गया था। अनीता नर्रे को सरकार की ओर से स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए सम्मानित किया गया, और उनके प्रयासों से गांव में कई शौचालयों का निर्माण हुआ।
ग्रामीण कारीगरों को पहचान दिलानेवाली कांता देवी
कांता देवी राजस्थान की एक साधारण महिला हैं, जिन्होंने अपने गांव की महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया। उन्होंने ग्रामीण कारीगरों के उत्पादों को बाज़ार में लाने की व्यवस्था की। उनके प्रयासों से न सिर्फ ग्रामीण महिलाओं की इनकम बढ़ी, बल्कि वे आत्मनिर्भर भी बन गईं और अपने परिवारों को आर्थिक सहयोग देने लगीं।