वर्तमान समय में भारत में महिला पायलटों की संख्या सबसे अधिक है, लेकिन एक वो दौर भी था जब इस फिल्ड में आनेवाली महिलाओं की संख्या न के बराबर थी। ऐसे समय में सरला ठकराल ने भारत की पहली महिला पायलट बनकर इतिहास रच दिया था। आइए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें।
पति और ससुर ने बढ़ाया हौंसला
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1914 में दिल्ली में जन्मीं सरला ठकराल मात्र 21 वर्ष की थीं, तभी उनके पति पी डी शर्मा और ससुर ने कुछ ऐसा किया, जिससे सभी की नजरें सरला ठकराल पर टिक गईं। दरअसल वर्ष 1930 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करते ही मात्र 15 वर्ष की उम्र में सरला का विवाह हो गया और वे लाहौर स्थित अपने ससुराल चली गईं। उनके ससुराल में उनके पति के साथ कुल 9 पायलट थे। इनमें सरला के पति पी डी शर्मा न सिर्फ एक अच्छे पायलट थे, बल्कि एयरमेल पायलट का लाइसेंस पानेवाले पहले भारतीय भी थे। अपने पति और ससुर के प्रोत्साहन के बाद सरला ठकराल ने पायलट के तौर पर अपना करियर शुरू करने के लिए लाहौर फ्लाइंग क्लब में दाखिला लिया। गौरतलब है कि इस वक्त सरला ठकराल की उम्र 21 वर्ष थी और वे एक बेटी की मां बन चुकी थीं। अपने ससुराल की तरफ से इतने बड़े प्रोत्साहन के बाद उन्होंने न सिर्फ लाहौर फ्लाइंग क्लब में दाखिला लिया था, बल्कि वर्ष 1936 में 21 वर्ष की उम्र में एविएशन पायलट लाइसेंस हासिल कर अकेले ही जिप्सी मॉथ उड़ा लिया था।
ट्रेनर को भी था उन पर भरोसा
हालांकि उस दौरान सरला के साथ शायद ही उनके सुसराल और परिवार वालों को इस बात का अंदेशा था कि जिप्सी मॉथ उड़ाकर सरला ने इतिहास रच दिया है। हालांकि जिप्सी मॉथ के अलावा लाइसेंस प्राप्त करने के बाद सरला ठकराल ने लाहौर फ्लाइंग क्लब के प्लेन में एक हजार घंटे की उड़ान भी पूरी की थी, जो सभी के लिए गर्व की बात थी। यह वो दौर था, जब औरतों को पढ़-लिखकर अपना करियर चुनने की आजादी बिल्कुल नहीं थी। सभी यही अपेक्षा करते थे कि वे घर-परिवार के साथ अपने बच्चों की जिम्मेदारी संभालें। ऐसी स्थिति में सरला ठकराल ने अपने पति और ससुराल की मदद से न सिर्फ अपनी पढ़ाई पूरी की, बल्कि बतौर पायलट अपना करियर भी बनाया। दिलचस्प बात यह है कि सरला ठकराल ने जब दो पंखोंवाले जिप्सी मॉथ के कॉकपिट में कदम रखा, तब उन्होंने साड़ी पहन रखी थी। उनका दिल घबरा रहा था, लेकिन उनकी मेहनत को देखकर उनके ट्रेनर को इस बात का अंदाजा हो चुका था कि वे अब अकेले उड़ने के लिए तैयार हैं। हालांकि इससे भी ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि उनके ट्रेनर ने यह फैसला महज 8 घंटों की ट्रेनिंग देने के बाद ही ले लिया था।
पति की मृत्यु ने भी नहीं तोड़ा आत्मविश्वास
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यह बात वाकई काबिले गौर है कि 8 घंटे की ट्रेनिंग के बाद न सिर्फ सरला ठकराल ने जिप्सी मॉथ के जरिए अकेले उड़ान भरी थी, बल्कि एविएशन नियमों के तहत 1000 घंटों की उड़ान पूरी करने के बाद एविएशन पायलट के लिए ‘ए’ लाइसेंस प्राप्त कर पहली भारतीय महिला भी बन गई थीं। ‘ए’ लाइसेंस पाने के बाद उनका अगला कदम था ‘बी’ लाइसेंस प्राप्त कर कमर्शियल प्लेन उड़ाना, लेकिन दुर्भाग्य से वर्ष 1939 में जोधपुर में एक ट्रेनिंग के दौरान उनके पति की मौत हो गई और वे मात्र 24 वर्ष की आयु में विधवा हो गईं। दो बेटियों की जिम्मेदारी को कंधों पर लिए सरला ठकराल ने अपने हौंसले पस्त होने नहीं दिए और कुछ सालों बाद एक बार फिर कमर्शियल पायलट की ट्रेनिंग के लिए जोधपुर लौटीं। कुछ महीनों में जोधपुर में ट्रेनिंग पूरी कर सरला ठकराल एक बार फिर लाहौर लौट गईं। यहां उन्होंने मेयो स्कूल ऑफ आर्ट्स से फाइन आर्ट्स में डिप्लोमा किया, लेकिन पति के बगैर दोनों बेटियों के साथ अपनी जिंदगी को पटरी पर बैठाने में लगी सरला ठकराल के लिए जिंदगी ने कुछ और सोच रखा था। वर्ष 1947 में बंटवारे के बाद वे अपनी बेटियों के साथ दिल्ली आ गईं और यहां उन्होंने आर पी ठकराल से शादी कर ली।
पायलट के साथ कुशल डिजाइनर और पेंटर भी थीं
फाइन आर्ट्स में डिप्लोमा कर चुकी सरला ठकराल एक पायलट होने के साथ-साथ कुशल डिजाइनर और पेंटर भी थीं। दूसरी शादी के बाद एविएशन इंडस्ट्री में अपना करियर बनाने की बजाय सरला ठकराल ने खुद को न सिर्फ एक सफल डिजाइनर के तौर पर स्थापित किया, बल्कि एक सफल बिजनेस वूमन भी बन गईं। 90 वर्ष की उम्र तक फिट और बुलंद हौंसलों वाली सरला ठकराल एक दृढ़ निश्चयी महिला थी। यूं तो वर्ष 2008 में उन्होंने अपने घर पर अपनी आखिरी सांसें ली, लेकिन सच पूछिए तो वे आज भी भारत की पहली भारतीय महिला पायलट के तौर पर प्रेरणा बन हम सबके बीच मौजूद हैं।
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