वर्ष 2011 में दिव्यांगता का शिकार हुईं अरुणिमा सिन्हा ने वर्ष 2013 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर पहले अपने बुलंद हौंसलों की मिसाल कायम की, फिर पूरे विश्व के 7 महाद्वीपों की 7 सबसे ऊंची चोटी पर चढ़कर पूरे विश्व में इतिहास रच दिया। आइए जानते हैं उनकी प्रेरक कहानी।
ट्रेन के एक सफर ने बदल दी किस्मत

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नेशनल वॉलीबॉल खिलाड़ी और अर्धसैनिक बल (CISF) में शामिल होने का सपना देखनेवाली अरुणिमा सिन्हा ने कभी यह बात सपने में भी नहीं सोची थी कि एक रात में ही उनके सारे सपने मिट्टी में मिल जाएंगे। दरअसल, 12 अप्रैल 2011 को अपने सपनों को पंख देने के लिए अरुणिमा सिन्हा सीआईएसएफ की तरफ से दिल्ली में हो रही परीक्षा देने लखनऊ से रवाना हुई थीं, लेकिन तब वह नहीं जानती थीं कि यह सफर उनकी किस्मत बदल देगा। पद्मावती एक्सप्रेस ट्रेन के जनरल कोच में सवार हुईं अरुणिमा सिन्हा के साथ अनहोनी हुई, कुछ बदमाशों ने उनका बैग और चेन छीनने की कोशिश की, लेकिन जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उन बदमाशों ने उन्हें चलती ट्रेन से पटरी पर फेंक दिया, जहां बेसुध पड़ी अरुणिमा के पैर के ऊपर से लगभग 49 ट्रेनें गुजर गयी। ऐसे में इलाज के दौरान लाख कोशिशों के बावजूद डॉक्टर उनके पैर न बचा सके।
इलाज के दौरान लिया माउंट एवरेस्ट चढ़ाई का फैसला
20 जुलाई 1989 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में पैदा हुई अरुणिमा सिन्हा ने यह बात बिल्कुल नहीं सोची थी कि एक हादसा उनकी जिंदगी को इस कदर तहस-नहस कर जाएगा, लेकिन फाइटर पिता की बहादुर संतान रहीं अरुणिमा ने परिस्थितियों के सामने झुकने की बजाय उनसे लड़ने का फैसला किया। हालांकि अस्पताल में अपनी जान बचाने से शुरू हुई उनकी लड़ाई काफी लंबी रही, क्योंकि पुलिस ने अपनी जांच में बदमाशों के साथ हुई उनकी हाथापाई को एक नया रंग दे दिया था। उनके अनुसार अरुणिमा के साथ हुआ यह हादसा उनके आत्महत्या का असफल प्रयास था। हालांकि अरुणिमा ने इसके खिलाफ भी लड़ाई लड़ी और इलाहबाद हाई कोर्ट में जीत हासिल की। हालांकि इस दौरान अरुणिमा का इलाज दिल्ली के एम्स में चल रहा था और यहीं उन्होंने अपने आर्टिफिशियल पैर की बदौलत माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का फैसला किया और उत्तरकाशी स्थित पर्वतारोहण संस्थान और टाटा स्टील एडवेंचर से माउंटेनियरिंग में बेसिक कोर्स किया।
विश्व के सात महाद्वीपों की ऊंची चोटियों पर लहराया तिरंगा

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गौरतलब है कि माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के अपने इस फैसले के बाद अरुणिमा सिन्हा, माउंट एवरेस्ट फतेह करनेवाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल से भी मिली थीं। उनकी हौसला अफ्जाई के बाद माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की तैयारी के लिए उन्होंने आइलैंड पीक की चढ़ाई की। इस चढ़ाई के बाद वर्ष 2013 में अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की और लगभग 52 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद वे माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंची। विश्व की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचकर तिरंगा लहराने का उनका ये सपना जब पूरा हुआ, तो उसी क्षण उन्होंने एक लक्ष्य और साध लिया और वह था विश्व के सात महाद्वीपों की ऊंची चोटियों पर पहुंचकर तिरंगा लहराना। हालांकि इसके फलस्वरूप उन्होंने वर्ष 2014 में एशिया के माउंट एवरेस्ट से लेकर अफ्रीका में किलिमंजारो, यूरोप में एल्ब्रस, ऑस्ट्रेलिया में कोसियसजको, दक्षिण अमेरिका में एकॉनकागुआ और उत्तरी अमेरिका में डेनाली के बाद 1 जनवरी 2019 को अंटार्कटिका में माउंट विंसन की अपनी अंतिम चढ़ाई पूरी कर अपना लक्ष्य पूरा किया।
दिव्यांगों को पढ़ा रही हैं आत्मनिर्भरता का पाठ
अपनी मेहनत और दृश्य संकल्प के बल पर उन्होंने न सिर्फ अपना लक्ष्य पूरा किया, बल्कि देश के गरीब और विकलांग लोगों के कल्याण में जुट गईं। उनकी इच्छा थी कि वे इन लोगों के लिए एक नि:शुल्क स्पोर्ट्स अकेडमी शुरू करें। इसके लिए उन्होंने माउंट एवरेस्ट जीतने के बाद मिली 25 लाख की धनराशि के साथ अन्य पुरस्कारों और सेमिनारों के द्वारा मिलनेवाली आर्थिक मदद से उन्होंने अपने उद्देश्य की पूर्ति करते हुए उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बेथर गांव में चंद्रशेखर आजाद दिव्यांग खेल अकादमी शुरू किया है। इस अकादमी का मुख्य उद्देश्य शारीरिक रूप से दिव्यांग बच्चों को खेलों के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाकर समाज में समान अवसर दिलाना है। फिलहाल इस अकादमी में लगभग 150 वंचित विकलांग बच्चे हैं। हालांकि कर्नाटक सरकार के खेल और साहसिक विभाग के साथ उत्तर प्रदेश के स्वच्छ भारत अभियान की ब्रांड एम्बेसेडर रहीं अरुणिमा सिन्हा ने इस अकादमी के साथ प्रोस्थेटिक लिंब सेंटर सोसायटी की भी स्थापना की है।
‘पद्म श्री’अरुणिमा सिन्हा ने जीते हैं कई पुरस्कार

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माउंट एवरेस्ट फतेह करने के बाद अरुणिमा सिन्हा ने वर्ष 2014 में ‘बॉर्न अगेन ऑन द माउंटेन’ नाम पुस्तक भी लिखी है। हालांकि अपनी उपलब्धियों के लिए उन्हें भारत सरकार की तरफ से देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्म श्री’ के साथ ‘तेनजिंग नोर्गे सर्वोच्च पर्वतारोहण पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा, वह ‘प्रथम महिला पुरस्कार’, ‘मलाला पुरस्कार, ‘यश भारती पुरस्कार’ और ‘रानी लक्ष्मी बाई पुरस्कार’ से भी सम्मानित हो चुकी हैं।
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