हाल ही में निर्देशिका किरण राव की फिल्म ‘लापता लेडीज’ रिलीज हुई थी। फिल्म कई मायनों में एक कालजयी फिल्म बन चुकी है, खासतौर से उन्होंने महिलाओं के जीवन से जुड़े ऐसे कई तार को भावनात्मक रूप से छुआ है कि यह फिल्म हमेशा प्रासंगिक और प्रेरणा से भरपूर रहेगी, आइए जान लेते हैं कि यह फिल्म किस लिहाज से महिलाओं के लिए प्रेरणा से भरपूर है।
घर की महिलाएं भी बन सकती हैं दोस्त
इस फिल्म में घर की दो बड़ी-बुजुर्ग महिला इस बात पर चर्चा करती हैं कि क्या घर की देवरानी-जेठानी, ननद-सास भी क्या आपस में दोस्त बन सकती हैं ? ऐसा क्यों नहीं हो सकता है ? आप गौर करें तो एक संवाद में ही उन्होंने महत्वपूर्ण बात कह दी है, जिस तरह से आज तक टेलीविजन में किचन गॉसिप ही दर्शाते आये हैं, जबकि घर एक ऐसा स्पेस होता है, जहां महिलाएं भी दोस्त बन सकती हैं, एक दूसरे के साथ अपने सुख-दुख बांट सकती हैं। लेकिन कभी भी घर की दो महिलाओं के संबंध को तवज्जो दी ही नहीं गई है, इन्हें संवरने का मौका ही नहीं दिया गया है, सहेजने का मौका ही नहीं दिया गया है। ऐसे में यह फिल्म एक प्रेरणा देती है कि इस दृष्टिकोण से भी चीजों को देखा जाये और इस नजरिये के माध्यम से सोचा जाये और घर की महिलाएं आपस में तय करें या पहल करें और एक दूसरे के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाएं।
खुद के लिए भी कभी सोचना
इस फिल्म में बहू अपनी सास को कहती है कि आप कमलगट्टा की सब्जी बहुत ही अच्छी बनाती हैं, ऐसे में सास कहती हैं कि हम बहुत दिन बाद बनाये हैं, हमको तो बहुत पसंद था शादी के पहले, लेकिन बाद में इनलोग (अपने पति के बारे में ) को नहीं पसंद था तो नहीं बनाये। इस पर बहू का कहना था तो क्या हुआ आप अपने लिए तो बना लेतीं, यहां भी यह प्रेरणा मिलती है कि हर बार जो महिलाएं पूरी तरह से पुरुषों की पसंद-नापसंद पर भी निर्भर करती हैं, कभी उन्हें अपने बारे में भी सोचना चाहिए और अपनी पसंद को भी तवज्जो देना चाहिए। इस लिहाज से भी यह फिल्म काफी प्रेरणा से भरपूर है।
प्यार करता है तो मारने का हक मिले, किसने कहा
इस फिल्म के एक दृश्य में एक आत्मनिर्भर महिला किरदार दूसरी बच्ची किरदार को समझाती है कि जीवन में हमेशा अपने बल पर आगे बढ़ने के बारे में सोचना चाहिए, किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए और जो प्यार करता है, उसे मारने का भी हक हो, ऐसा नहीं होना चाहिए। खुद पर अगर कोई अत्याचार करे, तो अकेले रहना सही है, न कि किसी का अत्याचार सहें।
सपने देखने के लिए कभी माफी नहीं मांगनी चाहिए
हर किसी को सपने देखना का हक है, फिल्म की एक किरदार कृषि के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहती है। ऐसे में वह बहुत ही संयोग से एक अपने अत्याचारी पति के चंगुल से निकल कर एक भले मानुष के साथ आ जाती है, इस बीच कई सारी घटनाएं होती हैं, जिसके लिए वह पुरुष किरदार से माफी मांगती है, ऐसे में वह पुरुष किरदार उसे समझता है कि सपनों को जीने या देखने के लिए सॉरी नहीं कहना चाहिए, यह सबका हक है। ऐसे में इस फिल्म से यह भी प्रेरणा मिलती है कि सपने देखने के लिए किसी भी महिला को आत्मग्लानि महसूस नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें पूरा करने का जज्बा रखना चाहिए।
हर लड़की को होना चाहिए ज्ञान
फिल्म की किरदार फूल गुम हो जाती है, ऐसे में उसे अपने घर का पता या अपने पति का पूरा नाम या पता भी मालूम नहीं होता है। फिर उसे अपने घर या पति के घर लौटने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ता है, इसलिए हर लड़की को केवल बड़े होकर शादी करनी है या पति समझ लेंगे, इस सोच से आगे बढ़ने के बारे में सोचना चाहिए और दिन दुनिया की छोटी ही सही समझ रखनी चाहिए।