अमूमन आपने सुना होगा कि यह रंग इस ड्रेस के साथ नहीं मेल खा रहा है, वो रंग इस लिहाज से फिट नहीं बैठ रहा, ऐसे में आइए जानें फैशन की दुनिया में रंगों की क्या अहमियत रहती है।
क्या कहता है इतिहास
अगर गौर करें तो मिस्र और मेसोपोटामिया जैसी प्राचीन सभ्यताओं में इसका महत्व अधिक बढ़ा। कपड़ों के अगर रंगों की बात की जाए, तो इसका महत्व सामाजिक और धार्मिक महत्व के अनुसार था। बता दें कि आपके लिए यह जानना जरूरी होगा कि रंग जिस तरह से पहने जाते थे और जिस तरह से डाई का भी इस्तेमाल होता था, उसका समाज के विभिन्न वर्गों के आधार का भी काफी लेना-देना था। लाल और बैंगनी जैसे चमकीले और जिंदादिली से भरपूर रंगों पर जहां कभी राजपरिवार और अभिजात वर्ग का राज चलता था, तो बेज और ग्रे जैसे रंग निम्न वर्ग द्वारा पहने जाते थे।
रंगों से जुड़ा मनोविज्ञान
उल्लेखनीय है कि रंग विभिन्न प्रकार की भावनाओं और संवेदनाओं को उत्पन्न करते हैं। जैसे अगर उदाहरण की बात की जाए तो नीला रंग आमतौर पर शांति की सोच से जुड़ा हुआ होता है, जबकि लाल रंग जुनून और ऊर्जा से जुड़ा होता है। फैशन डिजाइनिंग की दुनिया की बात करें तो विभिन्न रंगों द्वारा एक डिजाइनर एक भावना को दर्शाने की कोशिश करता है और इसके लिए वे कलर थ्योरी पर बहुत ध्यान देते हैं। जी हां, रंग सिद्धांत एक ऐसी प्रणाली है, जिन्हें समझने के लिए रंग एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं और फिर रंगों के माध्यम से भावनाओं को व्यक्त करने की कोशिश की जाती है। गौर करें तो कलर थ्योरी एक मॉडल है, लेकिन फैशन डिजाइन में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। अगर कलर सर्किल की बात करें, तो प्राथमिक( प्राइमरी), द्वितीयक( सेकेंडरी) और टेरटियरी रंगों में इन्हें विभाजित किया गया है। गौर करें तो प्राथमिक रंग में लाल, नीला और पीला रंग आता है और इन्हें अन्य रंगों को मिलाकर नहीं बनाया जा सकता है। वहीं सेकेंडरी रंगों की बात करें तो नारंगी, हरा और बैंगनी हैं, और ये प्राथमिक रंगों को मिलाकर बनाए जाने वाले रंग होते हैं। प्राथमिक रंगों को सेकेंडरी रंगों के साथ मिलाकर रंगों की तीसरी श्रेणी बनाई जाती है।
कंटेम्परी रंगों का महत्व फैशन की दुनिया में
फैशन डिजाइनर्स की यह खूबी है कि वे रंगों के साथ कई तरह के एक्सपेरिमेंट्स लगातार कर रहे हैं और इसकी वजह से ही हमें रंगों की दुनिया के अनोखे डिजाइन देखने को मिलते हैं। कुछ डिजाइनर दरअसल, काफी अधिक अपने स्टाइल स्टेटमेंट्स बनाने की ही कोशिश में जुटे रहते हैं। वे बोल्ड और चमकीले रंगों का उपयोग करते हैं। अब अगर गौर करें तो रंगों के साथ किया गया एक्सपेरिमेंट ही है कि पेस्टल रंग का जम कर उपयोग हो रहा है इन दिनों। साथ ही डिजाइनर्स वैसे रंगों का भी इस्तेमाल अधिक कर रहे हैं, जो सस्टेनेबल हों और पर्यावरण के अनुकूल भी हों। फैशन ब्रांड्स की इस बात के लिए तारीफ करनी चाहिए कि वे पर्यावरण को लेकर अधिक जागरूक हो रहे हैं और सस्टेनेबल डाई का इस्तेमाल अधिक कर रहे हैं। नेचुरल और प्राकृतिक रंगों को शामिल करना भी शुरू कर चुके हैं। जैसे इंडिगो, मैडर और कोचीनियल ऐसे प्राकृतिक रंग हैं, जो खूब इस्तेमाल हो रहे, तो वहीं इनसे नीले, लाल और गुलाबी रंग के सुंदर और अनोखे रंग बनाये जा रहे हैं।
रंगों का इस्तेमाल सस्टेनेब्लिटी के लिए
फैशन डिजाइनर इस बात का खास ख्याल रख रहे हैं कि अपनी डिजाइनिंग में सस्टेनेब्लिटी को बरकरार रखना बेहद जरूरी है, तो ऐसे रंग, जो पौधों खनिजों या कीड़ों से प्राप्त होते हैं, ये रंग बायोडिग्रेडेबल, गैर विषैले होते हैं और सिंथेटिक रंगों की तुलना में पर्यावरण के लिए अच्छे होते हैं। इसलिए इन जैविक रंगों का भी इस्तेमाल जम कर हो रहा है।
कॉन्ट्रास्ट और बैलेंस
एक और तरीका है कि रंगों के माध्यम से सस्टेनेब्लिटी को फैशन की दुनिया में बरकरार रखा जा सके, तो वो है अपने फैशन डिजाइनिंग में रंगों के बीच कॉन्ट्रास्ट के साथ बैलेंस बनाना। और इसके लिए आपको कॉम्प्लिमेंट्री कलर्स, ऐनालोगस कलर्स का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए। साथ ही मोनोक्रोमैटिक रंग को भी जरूर आपको ध्यान में रखना चाहिए। आपको बता दें कि आप अगर एक ही रंग से चाहें तो विभिन्न शेड्स, टोन या टिंट का भी उपयोग कर सकती हैं।