टसर या तसर सिल्क रेशम का एक प्रकार है, जो दक्षिणी एशिया में पाये जाने वाले कई प्रकार के वृक्षों पर जीवित रहने वाले रेशम के कीड़ों के लार्वा द्वारा अपने खोल के रोप में निर्मित कोकून से प्राप्त किया जाता है।
यह एक प्रकार का जंगली रेशम होता है, जिसकी प्राकृतिक सोने की फिनिशिंग इसकी खासियत होती है। टसर या तसर सिल्क की कई किस्मों की खेती चीन, जापान, भारत और श्रीलंका में की जाती है। टसर सिल्क फैब्रिक के बने सूट, दुपट्टे और कुर्ते सभी खासा लोकप्रिय हैं लेकिन साड़ियों की बात ही निराली है, यही वजह है कि भारत की मौजूदा राष्टपति द्रौपदी मूर्मु से लेकर भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल भी इसी सिल्क से बनी साड़ी को ही पहनना पसंद करती हैं। आइए जानते हैं टसर सिल्क के बारे में खास बातें।
टसर या तसर सिल्क इन खास रेशमकीटों से मिलता है
टसर या तसर सिल्क विशेष रेशमकीटों से प्राप्त होता है, जिन्हें उनके जैविक नाम एंथेरिया माइलिटा और एंथेरिया प्रोयली के नाम से जाना जाता है। टसर या तसर सिल्क को संसाधित और परिष्कृत करने से पहले रेशम के कीड़ों के कोकून से बनाया जाता है। कोकून को इकट्ठा करने और कताई करने की प्रक्रिया बहुत अधिक मेहनत वाली होती है। टसर या तसर सिल्क के कपड़े अक्सर हाथ से बुने जाते हैं। खास बात है कि टसर या तसर सिल्क बनाने वाले रेशम के कीटों शहतूत की पत्तियों के अलावा अन्य पत्तियों पर भी भोजन करते हैं। इस सिल्क से जुड़ा बेहद दिलचस्प पहलू ये भी है कि कीटों से प्राप्त रेशम का रंग उन पत्तियों पर निर्भर करता है, जिन्हें कीड़े खाते हैं और उस क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करता है, जहां कीड़े पाले जा रहे हैं। यही वजह है कि टसर रेशम प्राकृतिक रंगों की एक शृंखला में बनाया जाता है, क्रीम से लेकर ऑफ-व्हाइट, हनी ब्राउन और भूरा रंग इसमें शामिल होता है।
टसर या तसर सिल्क का इतिहास
टसर या तसर सिल्क की उत्पत्ति से जुड़ी कोई सटीक जानकारी नहीं है। कई कहानियों से अलग-अलग बातें सामने आती रहती है, किंवदंतियों में से एक का कहना है कि चीन की राजकुमारी सी लिंग शी (2600 ईसा पूर्व) ने बगीचे में चाय पीते समय गलती से रेशम के रेशे की खोज की जिसके कारण फाइबर की खोज हुई और बाद में इसका उपयोग किया गया। जहां तक भारत में टसर सिल्क से जुड़े जड़ों का सवाल है, तो इसका इतिहास कच्चे रेशम से मिलता-जुलता है और यह मध्यकाल से जुड़ा हुआ है। भारत में कपड़े के समृद्ध प्राचीन इतिहास से मजबूत संबंध के कारण, टसर को महाराष्ट्र के भंडारा जिले के रहने वाले कोष्टी समुदाय से भी जुड़ा माना जाता है। इस वजह से इसका वैकल्पिक संस्कृत नाम कोसा सिल्क भी है।
टसर या तसर सिल्क की किस्में
टसर या तसर सिल्क रेशमकीट की मुख्य तौर पर चार किस्में मानी जाती हैं। भारतीय टसर रेशमकीट(एंथेरेमाइलिटड्यूरी), जापानी टसर रेशमकीट (एंथेरेयामाईक्वेरिन) और चीनी टसर रेशमकीट (एंथेराएपर्नी गुएरिन)। इन रेशमकीटों द्वारा उत्पादित रेशम के प्रकार एक दूसरे से काफी भिन्न होते हैं। भारत में पायी जाने वाली टसर या तसर सिल्क को मुख्य तौर पर दो किस्मों में बांटा गया है। उष्णकटिबंधीय टसर और शीतोष्ण टसर में। उष्णकटिबंधीय टसर झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल राज्यों में बहुतायत से पाया जाता है। समशीतोष्ण किस्म ज्यादातर उप-हिमालयी बेल्ट राज्यों असम, मणिपुर और मेघालय में पायी जाती है।
टसर बेल्टस और टसर सिल्क के अलग पैटर्न्स
टसर का उत्पादन मुख्य रूप से भारत के छह शहरों, मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम में किया जाता है, ये सभी टसर बेल्ट के नाम से मशहूर हैं। देश में झारखंड टसर सिल्क के उत्पादन में अग्रणी है। टसर सिल्क साड़ियों पर आपको जो पैटर्न और डिजाइन तकनीकें मिलेंगी, वे काफी हद तक इन राज्यों और उससे जुड़े समुदायों के शिल्प से प्रभावित होती है। ओडिशा की प्रसिद्ध पट्टचित्रा पेंटिंग वहां के टसर रेशम की खासियत हैं। बंगाल में, कांथा कढ़ाई वाली साड़ियों में टसर रेशम की अहम भूमिका होती हैं।टसर सिल्क साड़ियों पर पैटर्न बनाने के लिए हैंड-पेंटिंग और हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग लोकप्रिय तरीके हैं। कलमकारी हाथ से चित्रित डिजाइनों का एक प्रसिद्ध उदाहरण है। अजरख और दाबू हैंडब्लॉक प्रिंट भी इस कपड़े की सुंदरता को बढ़ाते हैं। टसर सिल्क के लिए टाई और डाई से प्रेरित प्रिंट भी लोकप्रिय हैं। पारम्परिक इकत का पैटर्न हो या नया शिबोरी का पैटर्न यह भी खूब पॉपुलर है।
टसर सिल्क रेशम की खासियत
टसर रेशम शुद्ध रेशम है, जो जंगलों में उगाया जाता है। इसकी कुछ विशेषताएं हैं, जिनको ध्यान में रखते हुए आप जांच सकती हैं कि आप असली टसर रेशम खरीद रही हैं या नहीं। तो इसके लिए सबसे पहले यह जान लें कि इसकी बनावट थोड़ी खुरदरी और दानेदार होती है। टसर रेशम के रेशे अन्य रेशम की तुलना में छोटे और कम चिकने होते हैं। परिणामस्वरूप, टसर रेशम के कपड़े कम नाजुक और अधिक टिकाऊ होते हैं। असली रेशम में प्राकृतिक चमक होती है।यह शरीर से चिपकता नहीं है। टसर रेशम के कपड़ों की एक विशिष्ट बुनाई होती है, जो अन्य प्रकार के रेशम से भिन्न होती है। उन्हें इस तरह से बुना जाता है कि एक 'चेकरबोर्ड' पैटर्न बनता है। यह पैटर्न हर कुछ इंच पर ताने और बाने के धागों की दिशा को बारी-बारी से बनाकर बनाया जाता है।
रेशम की प्रामाणिकता निर्धारित करने के लिए कभी-कभी बर्न टेस्ट का उपयोग किया जाता है। साड़ी को नुकसान पहुंचाए बिना एक धागा लें और इसे आंच पर रखें। असली रेशम जैविक होता है और यह जल जाएगा, पिघलेगा नहीं। अपने पीछे एक काला भुरभुरा अवशेष छोड़ जाएगा।
टसर सिल्क की देखभाल
टसर सिल्क फैब्रिक से बने कपड़ों के रख-रखाव की जहां तक बात है,तो इनकी देखभाल करना कोई मुश्किल काम नहीं है। बस आपको इसके लिए कुछ बातों का विशेषतौर पर ध्यान रखना होगा। टसर सिल्क के कपड़ों को प्लास्टिक या सिंथेटिक नहीं बल्कि मलमल के कपड़ों में रखा जाना चाहिए। सिल्क फैब्रिक की खासियत इसकी चमक होती है। ऐसे में फैब्रिक की चमक को बरकरार रखने के लिए टसर साड़ियों और उससे बने दूसरे कपड़ो को इस्त्री करने के साथ-साथ हर तीन महीने में एक बार ड्राई क्लीन कराना ना भूलें। इससे आपका टसर सिल्क कभी भी अपनी चमक नहीं खोएगा। टसर सिल्क की देखभाल में कपड़े को किसी भी प्रकार के दाग से बचाए रखने की जरूरत है। जिद्दी दाग टसर सिल्क के लुक को खराब कर सकता है।
जब भी दाग लगे, हल्के शैम्पू और पानी का उपयोग करके दागों को तुरंत साफ करना जरूरी है। यदि पूरी साड़ी को धोना हो तो ड्राई क्लीनिंग की सलाह दी जाती है। रेशम की साड़ियों को कुछ महीनों में बाहर निकाल कर थोड़े समय में हवा में रखा जाना चाहिए, लेकिन इस दौरान उन्हें सूरज की तेज रोशनी में नहीं, बल्कि छाया में ही रखें। टसर रेशम के रेशे नाजुक होते हैं, इसलिए सुनिश्चित करें कि आप अपनी साड़ी की तहें अक्सर बदलती रहें, इस्त्री करते समय, गर्मी के अधिक संपर्क से बचने के लिए साड़ी के ऊपर एक हल्का मलमल का कपड़ा रखें।
*Lead picture courtsey : pinterest