मुंबई के ग्लेजी हॉस्पिटल की मनोचिकित्सक शुभा म्हात्रे का कहना है, “माता-पिता के लिए बच्चों के गुस्से वाले व्यवहार को संभालना अक्सर मुश्किल होता है, लेकिन यह समझना कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं, इसका जवाब आपकी बहुत मदद कर सकता है।”
शुभा पिछले 8 सालों से मनोचिकित्सक के रूप में काम कर रही हैं। अपने इस लंबे करियर में उन्होंने विशेष रूप से बच्चों के मेंटल हेल्थ पर प्रैक्टिस की है। उन्होंने हमें बताया कि बच्चों में अक्सर क्रोध की समस्या होती है, क्योंकि वे नहीं जानते कि अपनी निराशा या अन्य असहज भावनाओं से कैसे निपटा जाए। उन्होंने अभी तक परेशान हुए बिना समस्याओं को हल करने का कौशल नहीं सीखा है। शुभा यह भी कहती हैं कि कभी-कभी बच्चों में क्रोध की समस्या किसी अन्य समस्या के कारण होती है, जिसके उपचार की आवश्यकता होती है। यह एडीएचडी, चिंता, सीखने की अक्षमता या ऑटिज्म हो सकता है। लेकिन, ऐसे कई तरीके हैं, जो बच्चों को उनके व्यवहार में सुधार करने में मदद कर सकते हैं और इसमें सबसे पहले बड़ों को अपने आप पर काबू रखना होगा।
बच्चों को दें घर का एक हिस्सा
शुभा ने कहा कि आपको अपने बच्चों को घर के नियम सिखाने चाहिए। बच्चे घर के नियमों को तब तक नहीं जानते, जब तक उन्हें सिखाया नहीं जाता है, इसलिए यह आपके महत्वपूर्ण पालन-पोषण की जिम्मेदारियों में से एक है। अपने घर का एक अलग हिस्सा बच्चों को दें, जहां आपका बच्चा किताबों और खिलौनों के साथ खेल सके। जब भी बच्चे एक महत्वपूर्ण नियम तोड़ते हैं, तो उन्हें तुरंत यह समझने के लिए फटकार लगाई जानी चाहिए कि उन्होंने क्या गलत किया है।
शब्द हैं सबसे बड़े हथियार
शुभा ने आगे बताती हैं कि आप उन्हें सिखाएं कि जब वे गुस्से में हों तो लात न मारें या ना काटें, बल्कि शब्दों के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करें। उचित व्यवहार के लिए अपने बच्चे की प्रशंसा करें और यह समझाने में सहायता करें कि जब भी वह मारने, लात मारने या काटने के बजाय शांत रहते हैं, तो वह कैसे "बड़े हो गए हैं ।” उनकी प्रशंसा करें।
बड़ों का बर्ताव होता है अहम
शुभा बताती हैं कि उनके पास एक केस आया था जिसमें बच्चे के गुस्से का कारण बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था। उन्होंने कहा, “वह बच्चा 10 साल का था और मैंने उसे बहुत अलग अलग तरीके से पूछने और समझने की कोशिश की लेकिन उसे जिद्द थी कि वह कुछ भी नहीं कहेगा। तकरीबन 5 सेशन के बाद उसने मुझे बताया कि वो अपने पेरेंट्स से नफरत करता है, क्योंकि वह कई बात अपने पेरेंट्स को लड़ते-झगड़ते देखा है। डमेस्टिक वायलेंस अपने आप में बुरी चीज है और बच्चों पर इसका बहुत ही बुरा असर पड़ता है। पता नहीं कभी-कभी बड़े भी इस बात को नहीं समझते कि उनके व्यवहार का बच्चों पर क्या असर पड़ता है।”
परामर्श करें हिचके नहीं
शुभा ने यह भी कहा कि याद रखें कि खुद बच्चों को गुस्सा महसूस करना या गुस्सा करना पसंद नहीं है। अक्सर, वे निराशा और अपनी बड़ी भावनाओं को बताने में असमर्थ होते हैं और उनका गुस्सा इसकी प्रतिक्रिया है। अगर आपको परेशानी हो रही है, तो अपने बच्चे के बाल रोग विशेषज्ञ या स्कूल काउंसलर से मदद मांगें।