थायरॉइड को लेकर हमेशा ही जेहन में एक बात महिलाओं के आती है कि अगर आपको थायरॉइड है और आप गर्भवती हैं या गर्भवती होने की प्लानिंग कर रही हैं, तो आपको किन बातों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए, आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं वेदा केयर की प्रमुख स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ शीतल पांडे ने।
थायरॉइड एक बेहद महत्वपूर्ण हार्मोन है, जिसका सामान्य वैल्यू में होना बेहद जरूरी है। न ही इस हार्मोन की मात्रा कम होनी चाहिए, न ही ज्यादा होनी चाहिए। कम मात्रा होने पर इसे हाइपो कहा जाता है और अगर इसकी मात्रा ज्यादा है, इसको हाइपर कहा जाता है। यह सच है कि दोनों ही कंडीशन प्रेग्नेंसी के लिए सही नहीं होते हैं। अगर थायरॉइड हार्मोन रेंज में नहीं हैं, खासतौर से हाइपो थायॉरिज्म, वह अंडे की क्वालिटी को प्रभावित करता है और कई बार ऐसा हो सकता है कि महिलाओं को गर्भधारण करने में परेशानी हो।
पीसीओएस से ग्रसित महिलाओं में 30 से 40 प्रतिशत महिलाओं में यह परेशानी होती है। थायरॉइड की कमी से मेटाबॉलिज्म कम होता है, वजन बढ़ता है। साथ ही अंडे की क्वालिटी भी सीधे तौर पर प्रभावित होती है, जो अंडे के फर्टिलाइजेशन पॉवर को प्रभावित करती है। तो ऐसा हो सकता है कि महिलाएं, जिनको थायरॉइड की समस्या है, उन्हें देर से प्रेग्नेंसी हो। इससे घबराने की बात नहीं है, लेकिन हां, सतर्क होने की जरूरत है, क्योंकि आपको अपने थायरॉइड हार्मोन को सामन्य करना ही है।
अगर कोई महिला गर्भवती हैं तो थायरॉइड हार्मोन पर रखें ध्यान
अगर कोई महिला गर्भवती हो चुकी है, तो प्रेग्नेंट होने पर हम बेसिक ब्लड टेस्ट जरूर कराते हैं, जिसमें थायरॉइड हार्मोन भी चेक करना होता है। तो यदि थायरॉइड हार्मोन की कमी है, उसमें फौरन सामान्य करने की कोशिश करनी होगी, साथ ही आपको यह भी समझना होगा कि प्रेग्नेंसी से पहले अगर आपने हार्मोन टेस्ट कराये थे और वो नॉर्मल थे, तो क्या एक बार फिर से उसे टेस्ट कराना जरूरी है, तो हां यह जरूरी है। अमूमन थायरॉइड का जो रेंज है, प्रेग्नेंट होने पर यह बदल जाता है, तो फिर जो नॉर्मल रेंज है, वह प्रेग्नेंसी टीएसएच की वैल्यू 0. 5 -2. 5/3 . 0 होता है। अब यह रेंज कम क्यों हो गई है, मार्जिन 5 से 2 . 5 क्यों आ गई है, क्योंकि जब महिला गर्भधारण करती हैं, उसे ग्रेटर थायरॉइड हार्मोन की जरूरत शरीर में होती है, ताकि वह कंसेप्शन और बच्चे के विकास हो सके। तो संक्षेप में कहें, तो थायरॉइड हार्मोन की जरूरत बॉडी में डेवलप हो जाती है, जब लेडी कंसीव करती है। इसलिए रेंज क्योंकि 0. 5 -2. 5/3 . 0 हो जाता है, तो जिसका हार्मोन रेंज 5 हैं, उन्हें उसे कम करने के लिए थोड़ा डोज लेना ही पड़ता है। थायरॉइड हार्मोन की जरूरत 2. 5 हो जाता है, इसलिए इसको ठीक करना जरूरी है।
समझें इस समीकरण को भी
अगर हार्मोन के इस करेक्शन को नहीं किया जाएगा तो काफी नुकसान हो सकता है, इससे मेटाबॉलिज्म प्रभावित होगा और इससे बच्चे के विकास पर भी फर्क पड़ेगा, जिस वजह से मिसकैरेज भी हो सकता है। इसके अलावा, थायरॉइड हारमोन सीधे तौर पर बच्चे के विकास को प्रभावित करता है। अगर थायरॉइड हार्मोन की कमी है, तो मिसकैरेज के चांसेस बढ़ जाते हैं, इसके अलावा थायरॉइड बेबी के ब्रेन को ग्रोथ पर असर करता है। इन मरीजों में क्रेटिनिज्म जिसको कहते हैं, जिसमें एक बच्चे को मां के पेट में ही थायरॉइड की कमी हो जाती है और बच्चे में फिर कुछ अबनॉर्मल फीचर दिखने लगते हैं। फ्लैट फेस होता है, फ्लैबी सी बॉडी हो जाती हो। मोठे जीभ हो जाते हैं। इसलिए गर्भवती महिला के लिए थायरॉइड का नॉर्मल होना बेहद जरूरी होता है। इसलिए हमेशा थायरॉइड टेस्ट करना और अपने डॉक्टर की सलाह पर अमल करना बेहद जरूरी है। कुछ मरीज में ये पाया जाता है कि थायरॉइड की दवाइयां खुद लेना बंद कर देती हैं महिलाएं, बिना डॉक्टर से सलाह लिए, तो आपको वो नहीं करना है। आपको ये समझना है कि हम जो मेडिसिन दे रहे हैं, वह 24 घंटे ही काम करते हैं, क्योंकि वे दवाइयां ले रही होती हैं, इसलिए उसका वैल्यू नॉर्मल आता है। इसलिए बिना डॉक्टर की सलाह के थायरॉइड की मेडिकेशन को नहीं रोकना चाहिए। अमूमन डिलीवरी के छह महीने के बाद, फिर से थायरॉइड टेस्ट रिपीट किया जाता है। इसलिए प्रेग्नेंसी के बाद भी थायरॉइड टेस्ट करते रहना नियमित रूप से जरूरी है।