राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस लोगों की जिंदगी में चिकित्सकों के योगदान को दर्शाने के लिए मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस खास दिन को मनाने की शुरुआत कब से और क्यों हुई और क्यों इस दिन को महत्व दिया जाना चाहिए।
देश में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस का महत्व
भारत में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस की शुरुआत वर्ष 1991 में पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्य्मंत्री डॉक्टर बिधानचंद्र रॉय की याद में मनाया जाता है, जिनका जन्म 1 जुलाई 1882 में हुआ था। इत्तेफाक से 1962 में उसी दिन अर्थात 1 जुलाई को ही उनका देहांत भी हुआ था। डॉक्टर बिधानचंद्र रॉय न सिर्फ एक काबिल डॉक्टर, बल्कि एक बेहतरीन राजनेता भी थे। हमारे देश में इसे मनाने का प्रस्ताव इंडियन मेडिकल असोसिएशन की तरफ से मेडिकल के क्षेत्र में किए गए बिधानचंद्र रॉय अद्भुत कार्यों को सम्मान देने के लिए किया गया था। भारत में कई मेडिकल एसोसिएशन के अलावा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एसोसिशन (AIIMS) की स्थापना का श्रेय डॉक्टर बिधानचंद्र रॉय को ही जाता है।
विदेश में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाने की शुरुआत
विदेश में इस परंपरा की शुरुआत सबसे पहले 1933 में अमेरिका में हुई थी, जहां डॉक्टर चार्ल्स बी एल्मण्ड की पत्नी यूडोरा ब्राउन एल्मण्ड ने सारे डॉक्टर्स को उनके अथक परिश्रम और नि:स्वार्थ सेवा के लिए सम्मानित करने का फैसला किया था। इसके लिए उन्होंने 30 मार्च का दिन चुना था, जो 1815 में जन्में डॉक्टर क्रॉफर्ड लॉन्ग की याद में था। 30 मार्च 1842 के दिन पहली बार डॉक्टर लॉन्ग ने अपनी सर्जरी के दौरान एनिस्थिसिया का प्रयोग करके मेडिकल साइंस में एक क्रांति लाई थी। हालांकि इस दिन को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस की मान्यता 1991 में तब मिली, जब अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने मरीजों के जीवन में चिकित्सकों के असीमित योगदान को देखते हुए इस पर अपनी मोहर लगाई थी।
भारत में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाने का उद्देश्य
हमारे देश में इस खास दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य मेडिकल के क्षेत्र में वर्षों से अपना योगदान दे रहे चिकित्सकों के साथ नए चिकित्सकों को प्रेरित करना है। इसके अलावा, मेडिकल क्षेत्र में आ रही चुनौतियों के प्रति समाज को जागरूक करना भी इसका उद्देश्य है। विशेष रूप से कोविड के दौरान जिस तरह सारी दुनिया के चिकित्सकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना, दिन रात एक करके मरीजों की जान बचायी, वह सराहनीय था। इसके अलावा भी देश और समाज के हित में चिकित्सकों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। मुश्किल से मुश्किल सर्जरी के साथ दवाइयों, इंजेक्शनों और अपने महत्वपूर्ण मेडिकल सलाह के अलावा चिकित्सक हमें मानसिक और भावनात्मक सहारा भी देते हैं। ‘घबराइए मत, सब ठीक हो जाएगा’ उनके ये चंद शब्द मरीजों के साथ उनके प्रियजनों के अंदर भी एक नई ऊर्जा का संचार कर देते हैं।
कैसे बनाएं इस खास दिन को और खास
अपने चिकित्सकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए आप भी इस दिन को और खास बना सकते हैं। फूल, चॉकलेट्स और एक खूबसूरत कार्ड के जरिए उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करने के साथ हमारे देश में कई ऐसे मेडिकल संस्थान हैं, जो मरीजों का मुफ्त में इलाज करते हैं। आप चाहें तो इन संस्थानों को अपनी तरफ से एक छोटी-सी सहायता राशि देकर इनका काम आसान कर सकते हैं। इसके अलावा, चिकित्सकों और मेडिकल संस्थानों की तरफ से लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए समय समय पर काफी कार्यक्रम किए जाते हैं। उन कार्यक्रमों में भाग लेकर आप न सिर्फ स्वयं का, बल्कि अपनों का भी मार्गदर्शन कर सकते हैं। हालांकि इन सबके अलावा, जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, वह है अपने स्वास्थ्य की उचित देखभाल करते हुए बीमारियों से दूर रहना, जिससे आपके चिकित्सकों पर अधिक बोझ न आए।
मरीजों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण हों चिकित्सक
सबसे पहले चिकित्सक ये समझें कि मरीज सिर्फ बीमार शरीर, चिकित्सा समस्याएं, दवाइयां या पैसे कमाने का साधन मात्र नहीं है। मरीज अपने चिकित्सकों से सहानुभूतिपूर्ण बर्ताव की अपेक्षा करते हैं, जिससे वो अपने चिकित्सकों से जुड़ाव महसूस कर पाएं और अपने मन की हर बात उनसे बिना झिझक कह पाएं। इसके अलावा, चिकित्सक को अपने मरीजों के लिए एक अच्छे वकील की तरह होना चाहिए, जो अपने मरीजों के प्रति आत्मीयता का बोध रखते हुए, उनकी चिकित्सकीय जरूरत के अनुसार हर संभव मदद करे। इसी के साथ हर मरीज चाहता है कि उनका चिकित्सक अहंकारी होने की बजाय मिलनसार और उनके प्रति संवेदनशील हों।
चिकित्सक ही नहीं, अपने लिए भी सुरक्षा का भाव निर्माण करें
आम तौर पर चिकित्सक हर रोज इतने सारे मरीजों से मिलते हैं कि अपने अनुभव और उनके हाव भाव से वह उनके दिल की बात जान लेते हैं, लेकिन काफी मरीजों को लगता है कि चिकित्सक न सिर्फ ध्यान से उनकी बातें सुनें, बल्कि अपनी मेडिकल भाषा की बजाय उनकी अपनी शब्दावली में उन्हें उचित निदान बताएं। इससे मरीजों में अपने चिकित्सकों के प्रति आदर भाव के साथ अपने लिए एक सुरक्षा का भाव निर्माण होता है और उन्हें लगता है कि वो एक सही चिकित्सक के हाथों में हैं। अगर आपको लगता है कि आपके चिकित्सक आपकी इस कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे हैं, तो बिना किसी नतीजे पर पहुंचे, एक बार शांति से उनसे बात करके अवश्य देखिए।
ये भी हैं अपने चिकित्सकों से, मरीजों की अपेक्षाएं
बेहतर चिकित्सकों की फेहरिस्त में मरीजों की ये अपेक्षाएं भी शामिल होती हैं कि उनके चिकित्सक अपने क्षेत्र के अच्छे जानकार हों और उनकी जरूरत के वक्त उपलब्ध हों। इसी के साथ चुटकियों में अपने मरीजों की समस्या का निदान करते हुए, अपने समय के पाबंद हों। आम तौर पर चिकित्सकों के पास उनके मरीजों की कई ऐसी बातें होती हैं, जो गोपनीय होती हैं। ऐसे में उन्हें चाहिए कि इसका जिक्र वे किसी से न करें। अपने मरीजों की प्राइवेसी का सम्मान करते हुए, वो अपनी नैतिकता पर कायम रहें। जैसा कि हम सभी इस बात से अच्छी तरह परिचित हैं कि चिकित्सकों का जीवन काफी संघर्षों और चुनौतियों से भरा होता है, लेकिन अपने मरीजों के लिए वे एक ऐसी रोशनी हैं, जो कभी कम नहीं होती। ऐसे में अपनी परेशानियों को पीछे धकेलते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट लिए सदैव सकारात्मक रवैया अपनाने वाले चिकित्सक मरीजों को बेहद अपने से लगते हैं।
बदलाव को अपनाएं और मरीजों को बेहतर बनाएं
मेडिकल साइंस में हर रोज नए-नए बदलाव होते जा रहे हैं और इसी के साथ नई-नई तकनीकें आती जा रही हैं। ऐसे में चिकित्सकों को चाहिए कि अपनी रुढ़िवादी परंपरा को पीछे धकेलते हुए तकनीक के साथ आगे बढ़ें और स्वयं में बदलाव लाएं। आर्थिक, सामाजिक तथा मानसिक स्तर पर अपने मरीजों में भेदभाव किए बिना, वे उन्हें बेहतर से बेहतर उपचार मुहैया करवाएं और उनकी समस्याओं का समाधान करें। हर मरीज, अपने चिकित्सक से एक आत्मीय रिश्ता चाहता है। वह चाहता है कि सबके हिस्से में होते हुए भी चिकित्सक का एक हिस्सा उनके साथ भी हो, जो सिर्फ और सिर्फ उनका हो। यकीन मानिए एक बीमार शरीर, दवाइयों से ज्यादा भावनाओं के सहारे ठीक होता है, इसलिए अपने हर चिकित्सक से मरीज की यही अपेक्षा होती है कि अपने सफेद कोट के अंदर वे एक भावुक इंसान को हमेशा जिंदा रखें।