महिलाओं ने अपनी पहचान हर क्षेत्र में बनाई है, लेकिन कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं, जिन्होंने अपना जीवन समर्पित पूरी तरह से किया है अपनी धरोहर को बचाने में। आइए कुछ ऐसी महिलाओं के बारे में जानें।
मीरा अय्यर
photo credit : outlook traveller
बंगलुरु की रहने वाली मीरा अय्यर बेंगलुरु की विलुप्त हो रही हेरिटेज बिल्डिंग को बचाने का काम कर रही हैं। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज, जो कि एक गैर-लाभकारी संगठन है, इसके तहतगम हो चुकी विरासत को संरक्षित करने का काम कर रही हैं। उनका पूरा समय भारत में वास्तुकला विरासत, जो धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही है, उनके संरक्षण को समर्पित किया जा रहा है। वह 18 वीं शताब्दी में विलुप्त हो रही इमारतों, किलों और ऐसी कई सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की कोशिश में लगी हुई हैं।
एझा, महिलाओं के नेतृत्व वाला वास्तुशिल्प समूह
photo credit : linkedIN
कोझिकोड में अपनी परियोजना के साथ भारतीय वास्तुकला के संरक्षण का काम कर रहा है महिलाओं के नेतृत्व वाला वास्तुशिल्प समूह। जी हां, एझा भारतीय धरोहर को संभालने के लिए महत्वपूर्ण काम कर रहा है। गौरतलब है कि कुन्नमंगलम भगवती मंदिर के कर्णिकारा मंडपम ने वास्तुकारों को सांस्कृतिक विरासत संरक्षण के लिए यूनेस्को एशिया-पेसिफिक पुरस्कार का सम्मान हासिल कराया। संरक्षण वास्तुकार( कंज़र्वेशन आर्किटेक्ट) स्वाति सुब्रमण्यम, सविता राजन और रितु सारा थॉमस वे नाम हैं, जो शानदार तरीके से इस क्षेत्र में काम कर रही हैं।
ऐश्वर्य टिपनिस
photo credit :ATA
ऐश्वर्य टिपनिस एक ऐसी आर्किटेक्ट हैं, जो एक संरक्षण वास्तुकार के रूप में जानी जाती हैं। दिल्ली से संबंध रखने वालीं ऐश्वर्य विरासत प्रबंधन, भवन बहाली और वास्तुशिल्प संरक्षण में विशेषज्ञ हैं। उनके काम की खासियत है कि वह स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण दोनों को महत्व देती हैं। टिपनिस, जिन्हें विरासत संरक्षण के लिए यूनेस्को पुरस्कार और फ्रांसीसी सरकार के शेवेलियर डेस आर्ट्स एट डेस लेट्रे से भी सम्मानित किया गया है। उन्होंने गोबिंदगढ़ किले और लक्ष्मी निवास पैलेस की बहाली सहित कई परियोजनाओं पर भी काम किया है।
मरियम अजमेरीवाला
अहमदाबाद से संबंध रखने वालीं मरियम अजमेरीवाला लम्बे समय से ब्लॉक पेंटिंग की कला का संरक्षण कर रही हैं। उनका पूरा परिवार कई दशकों से इस काम में जुटा हुआ है। एक दिलचस्प बात यह है कि इसके लिए उन्होंने कभी कोई ट्रेनिंग नहीं ली है। बाद में एक एनजीओ की मदद से उन्होंने इस कला को सीखा, वह 25 साल से इस काम में निपुण हैं। अब वह आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं की मदद कर रही हैं।