विकास के पथ पर आगे बढ़ते रहने के लिए सबसे जरूरी चीज है शिक्षा और शिक्षित आबादी। इनमें भी जब शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ जाती है, तो विकास की रफ्तार दुगुनी हो जाती है। कुछ ऐसा ही हाल है केरल राज्य का। आइए जानते हैं केरल राज्य में महिलाओं की उच्च शिक्षा दर के बारे में।
शिक्षा दर में जबरदस्त उछाल
बीते एक दशक में पूरे भारत में शिक्षा की दर में जबरदस्त उछाल आया है। वर्ष 2011 में हुए जनगणना के अनुसार जिन राज्यों की साक्षरता दर कभी 12 प्रतिशत हुआ करती थी, उनमें जबरस्दत उछाल आया है और यह आंकड़ा 12 प्रतिशत से बढ़कर सीधे 74.04 हो चुका है। हालांकि इन राज्यों से ज्यादा खुशी केरल की शिक्षा दर को देखकर होती है, जो इन सबके मुकाबले काफी बेहतर स्थिति में हैं। गौरतलब है कि आज भी सभी राज्यों की तुलना में केरल की साक्षरता दर 93.91 प्रतिशत है, जिनमें सिर्फ महिलाओं की हिस्सेदारी सबसे अधिक है, जो सभी राज्यों से कहीं अधिक है। यह वाकई सुखद आश्चर्य है कि केरल के ग्रामीण इलाकों में भी जहां कई बार बुनियादी जरूरतें नहीं मिल पाती, वहां शिक्षा इतने व्यापक रूप से मौजूद है।
उच्च शिक्षा दर की वजह
जैसा कि ये बात आप भी जानती होंगी कि केरल, भारत का एक छोटा सा राज्य है, जिसकी अधिकतर आबादी गांवों में निवास करती है। इसके अलावा वहां न कोई इंडस्ट्रियल डेवेलपमेंट है, और न ही व्यापार का कोई केंद्र है। उसके बावजूद शिक्षा के साथ-साथ बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और अच्छी जीवनशैली के मामले में केरल राज्य अन्य राज्यों से काफी बेहतर स्थिति में है। हालांकि यदि हम पूरे भारत के राज्यों के लिए केरल से प्रेरणा लेते हुए उसकी सफलता का आकलन करें तो पाएंगे कि इसके पीछे एक शिक्षित परंपरा के साथ सभ्य इतिहास छिपा हुआ है।
शिक्षित परंपरा के साथ सभ्य इतिहास
दरअसल 19वीं सदी की शुरुआत में ही केरल राज्य के राजघरानों ने शिक्षा के महत्व को समझ लिया था और उसके मद्देनजर पूरे राज्य में मुफ्त शिक्षा का ऐलान करते हुए अपनी जनता की शिक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी। हालांकि उस दौरान निचली जातियों के साथ महिलाओं को शिक्षा की अनुमति नहीं थी, लेकिन 20वीं सदी की शुरुआत में कुछ समाज सुधारकों ने इस मुद्दे को उठाया और इस तरह निचली जातियों के साथ महिलाओं को भी शिक्षा का अधिकार मिला। देश को आजादी मिलने के बाद केंद्र तथा राज्य सरकारों ने भी शिक्षा समानता के साथ सामाजिक लक्ष्यों को प्राथमिकता दी और नतीजा हमारे सामने है।
राज्य सरकार के साथ संस्थाओं और संगठनों का योगदान
शिक्षा के क्षेत्र में सबसे आगे रहनेवाले केरल राज्य की एक विशेषता है वहां समय-समय पर केरला स्टेट लिटरेसी मिशन अथॉरिटी (केरल राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण) द्वारा करवाए जानेवाले साक्षरता कार्यक्रम, जिनका ध्येय वाक्य है, ‘सभी के लिए शिक्षा एवं सदैव शिक्षा’। स्वयं संचालित यह संस्था, राज्य सरकार से फंड लेकर, उनके अधीन काम करती है। गौरतलब है कि केरला स्टेट लिटरेसी मिशन अथॉरिटी द्वारा करवाए जानेवाले कार्यक्रमों में बुनियादी साक्षरता कार्यक्रम के साथ कई अन्य कार्यक्रम भी शामिल हैं।
लक्ष्य है 100 प्रतिशत शिक्षा का
फिलहाल बुनियादी साक्षरता कार्यक्रम की योजनाओं में केरल राज्य को पूर्ण साक्षरता दर अर्थात 100 प्रतिशत तक ले जाने का प्रयास शामिल है। ये कार्यक्रम विशेष रूप से उन क्षेत्रों और लोगों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है, जिनकी साक्षरता दर सबसे कम है। इनमें विशेष रूप से झुग्गी झोपड़ियों, तटीय इलाकों और आदिवासी आबादी वाले क्षेत्र शामिल हैं। सिर्फ यही नहीं इन कार्यक्रमों के अंतर्गत स्थानीय मुद्दों और उनकी जरूरतों के अलावा जेल में रहनेवाले कैदियों के लिए भी साक्षरता मिशन चलाए जा रहे हैं, जिससे उनमें भी साक्षरता दर 100 प्रतिशत हो सके। यह संस्थाएं उन युवाओं को भी शिक्षा का अवसर देती है, जिन्होंने प्राइमरी और सेकंडरी लेवल के स्कूल अटेंड नहीं किए हैं। वे उन्हें 4थी, 7वीं, 11वीं और 12वीं की शिक्षा के साथ सर्टिफिकेट भी देते हैं।
किताबी नॉलेज के साथ प्रैक्टिकल नॉलेज भी
इस संस्था के अलावा केरल में कई ऐसे संगठन हैं, जो शिक्षा में रूचि रखनेवालों को सिखाने और उन्हें अवसर देने के लिए प्रयत्नशील है। किताबी नॉलेज के अलावा यह संस्थाएं प्रैक्टिकल नॉलेज पर भी ध्यान देते हुए, उन्हें जरूरी स्किल भी सिखाती है। सच पूछिए तो शिक्षा के क्षेत्र में इन संस्थाओं के साथ राज्य सरकार और राज्य की पुरानी प्रथाएं काफी कारगर साबित हो रही हैं, जिससे सभी राज्यों को सबक लेना चाहिए।