विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) में शिक्षा और प्रगति इस विकास के आवश्यक घटक हैं, जो सभी क्षेत्रों में चुनौतियों पर काबू पाने और उनके विकास और विस्तार को सुनिश्चित करते हैं। ऐसे में यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि महिलाओं की भागीदारी इसमें बढ़ें। तो इस क्षेत्र में महिलाओं को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
वर्ष 2019-2020 की बात करें, तो उच्च शिक्षा रिपोर्ट पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण का अनुमान है कि 10,56,095 से अधिक महिलाओं ने स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी में दाखिला लिया है। गौरतलब है कि भारत एक वैश्विक शक्ति बनने के पूरे प्रयास में है। लेकिन ऐसे में क्या अब भी इस क्षेत्र में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं या उनके लिए इस क्षेत्र में अच्छी जगह बन पाई है ? तो जवाब यह भी है कि ऐसी कई जगह हैं, जहां आज भी महिलाओं को समान अवसर प्राप्त करने के लिए गंभीर बाधाओं का सामना करना रहा पड़ है। जबकि महिलाएं काफी संख्या में इस क्षेत्र का हिस्सा बन रही हैं। बता दें कि विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति को इसलिए लांच किया गया था, ताकि वर्ष 2030 तक 30 प्रतिशत तक इसमें वृद्धि हो जाये। नीति का उद्देश्य उद्योग की क्षेत्रीय रणनीतियों और प्राथमिकताओं को संशोधित करना भी है, ताकि इसे अधिक समावेशी, विकेंद्रीकृत और विशेषज्ञ-संचालित बनाया जा सके। तो आइए एक बार जान लेते हैं कि आखिर किस तरह की चुनौतियों का सामना इस क्षेत्र से जुड़ीं महिलाएं करती हैं और किस तरह से महिलाएं इस क्षेत्र में अधिक आएं, इसके लिए कदम उठाये जा सकते हैं।
अब भी एक अलग है सोच
आज भी पुरुषों के बीच, महिलाओं को लेकर यह सोच है कि महिलाएं पुरुषों से तकनीकी चीजों में कमतर होती हैं, पुरुष गणित में और समस्याओं को सुलझाने में अच्छे होते हैं। खासतौर से बात जब ड्राइविंग की आती है, तब भी यह माना जाता है कि लड़कियां अच्छी ड्राइवर नहीं होती हैं, कई बार मजाक-मजाक में भी पुरुष कलीग द्वारा ये बातें खूब की जाती हैं। घर में अगर कम्प्यूटर ठीक करने की बात हो या कोई बल्ब लगाने की बात हो, तब भी यह माना जाता है कि पुरुषों को ही ये काम करने चाहिए। जबकि हकीकत यह है कि महिलाएं तकनीकी क्षेत्र में कहीं से भी पीछे नहीं हैं।
प्रोमोशन मिलने में कटौती
अब भी पुरुषों की तुलना में कई जगहों पर महिलाओं को प्रोमोशन देने में कतराती हैं कंपनी, जबकि यह बेहद जरूरी है कि निर्धारित प्रोमोशन तरीका होना ही चाहिए। साथ ही पारदर्शिता होनी भी बेहद जरूरी है।
ट्रस्ट इश्यू
अब भी इस क्षेत्र में जब भी कोई बहुत बड़ी जिम्मेदारी महिलाओं को सौंपी जाती है, उनको लेकर ट्रस्ट इश्यू जरूर होता है, इस क्षेत्र से जुड़ीं कई महिलाओं का मानना है कि बड़े प्रोजेक्ट्स की जिम्मेदारी सौंपने में पुरुषों को अधिक प्राथमिकता दे दी जाती है।
मेन्टॉरशिप और स्पॉनरशिप
यह भी एक जरूरी चरण है कि महिलाओं को मेन्टॉरशिप और स्पॉनरशिप के लिए प्रेरित किया जाए। समय-समय पर कुछ स्पॉनरशिप दिए जाएं, ऐसी चीजों से महिलाओं में लीडरशिप वाली गुणवत्ता आएगी और वह इस क्षेत्र में कदम बढ़ाने के बारे में अधिक जागरूक हो सकेंगी।
कुछ न कहना चुप रहना
यह भी एक बड़ी परेशानी है कि महिलाएं कई बार अपनी बातों को उस आत्मविश्वास के साथ नहीं बोल पाती हैं, जो उन्हें बोलना चाहिए। कई बार समय और स्थिति के साथ समझौता करना यह भी एक बड़ी चुनौती होती है, जिसका सामना महिलाएं करती हैं। कई बार उनकी चुप्पी, उनकी कमजोरी बन जाती है और फिर उनके लिए परेशानी का सबब बन जाती है।
जेंडर पे गैप
STEM के क्षेत्र में अब भी कई महिलाएं अपनी आय को लेकर यह परेशानी झेलती हैं कि उन्हें पता भी नहीं होता है कि उन्हें कई बार अपने से जूनियर स्तर के पुरुष कर्मचारियों से कम तनख्वाह मिलती है या फिर अगर वे लीडरशिप पद पर हैं, तब भी उस पद कस पुरुषों से उन्हें कम आय मिल रही होती है, तो अब भी जेंडर पे गैप की एक स्थिति को है ही, जिसकी वजह से इस क्षेत्र में महिलाओं को पूर्ण रूप से आर्थिक संतुष्टि नहीं मिलती है।