हमारे देश में एक नहीं, बल्कि कई सारी ऐसी महिलाएं हैं, जो कि घर के साथ-साथ घर के बाहर भी मां होने की जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही हैं। इन सभी महिलाओं ने अपने पूरे जीवन को गरीब और अनाथ बच्चों की सेवाओं के लिए पूरी तरह से समर्पित कर दिया। आइए विस्तार से जानते हैं उन महिलाओं के बारे में, जो कि मातृत्व की प्रेरणा बन गई हैं।
मदर टेरेसा
मदर टेरेसा को कोई परिचय की जरूरत नहीं है। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन गरीब और अनाथ बच्चों के लिए समर्पित कर दिया। इससे सभी वाकिफ हैं कि उनके मातृ प्रवृत्ति के कारण उन्हें प्यार और सम्मान से मदर टेरेसा बोला जाने लगा। शिक्षिका बनने के दौरान उनके जीवन में एक ऐसा बदलाव हुआ कि उन्होंने लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करने का निर्णय लिया। नन बनने के बाद उनका नया जन्म हुआ और उन्हें सिस्टर मेरी टेरेसा नाम मिल गया। अपने एक कार्य के दौरान उन्हें कलकत्ता गरीब लड़कियों को पढ़ाने का कार्य दिया गया। कलकत्ता में उन्होंने गरीबी और अज्ञानता को समीप से देखा इसके बाद उन्होंने इसी क्षेत्र में कार्य करने का अडिग निर्णय लिया। पटना में उन्होंने नर्सिंग ट्रेनिंग पूरी की और फिर गरीब बुजुर्गों की देखभाल करने वाली संस्था के साथ काम किया। मदर टेरेसा ने निर्मल हद्य और निर्मला शिशु भवन नाम से आश्रम भी खोले हैं। उन्होंने जनसेवा का प्रण लिया और पूरे विश्व का ध्यान अपने मातृत्व से अपनी तरफ खींचा।
सिंधुताई सकपाल
सिंधुताई ने अपने निजी जीवन में भेदभाव और गरीबी के साथ आगे बढ़ी हैं। लेकिन उन्होंने हमेशा से ही महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव के लिए आवाज उठाई है। अपने जीवन के एक पड़ाव पर उन्होंने अनाथ बच्चों के साथ समय बिताना शुरू किया और महसूस किया कि उनका जीवन कितना कठिन है। इसके बाद सिंधुताई ने एक दर्जन से अधिक बच्चों को गोद लिया और उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी भी उठायी। फिर अमरावती में एक आश्रम की स्थापना की। इसके बाद महाराष्ट्र के भिन्न जगहों पर उन्होंने अनाथ बच्चों के लिए कई सारे संगठनों की स्थापना की। उनके इस योगदान के लिए उन्हें कई सारे सम्मान भी दिए गए। उनके नि: स्वार्थ मातृत्व सेवा के बाद उन्हें भारत की मदर टेरेसा कहा जाने लगा।
सविता मोहंती
ओडिशा की सविता मोहंती करीब दो दशक से यशोदा मां की भूमिका निभा रही हैं। दिल्ली से सटे ग्रीन फील्ड, फरीदाबाद में एक गांव बसा है। जहां पर हर घर में एक मां है, जो कि अनाथ बच्चों की परवरिश करती हैं। इस गांव में 20 घर बनाए गए हैं, जहां हर घर में एक मां बच्चों की परवरिश कराकर उनके नौकरी के दौरान मां की जिम्मेदारी निभाना और शादी तक कराने की जिम्मेदारी लेती हैं। उन्हीं में से एक सविता मोहंती भी हैं। यहां एक नहीं, बल्कि कई सारी महिलाओं हैं, जो कि यशोदा मां की भूमिका निभा रही हैं।
माधवी सेंगर
22 साल पहले माधवी सेंगर के पास एक नवजात बच्ची की बस से फेंकने की खबर मिली। कानपुर की इस घटना ने माधवी के जीवन में बड़ा परिवर्तन ला दिया। माधवी ने यह फैसला लिया कि नि स्तान रहकर उन्हें कई बच्चों की सहायता करनी है। साल 2008 में माधवी ‘बेटी बचाओ’अभियान से जुड़ी हैं और बेटियों की रक्षा के लिए कई सारे कार्य किए। इसके साथ ही कन्या भ्रूण हत्या को लेकर एक नया अभियान शुरू किया, जिसके अंतर्गत शादी में सात फेरे लेने वाले नव युगलों को आठवां वचन दिलाने की योजना बनाई कि बेटी को जन्म लेने देंगे और कन्या-भ्रूण हत्या नहीं होगी। इस तरह से माधवी उन हजारों कन्याओं की मां बन चुकी हैं, जो कि इस जागरूकता अभियान के कारण दुनिया को देख पाई हैं।
पोर्टिया पुताटुंडा
पोर्टिया ने अपने पत्रकारिता के करियर को पीछे छोड़कर गरीब बच्चों के लिए मुफ्त बोर्डिंग स्कूल की स्थापना की। हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले में लगभर 1600 फीट की ऊंचाई पर उनका यह स्कूल स्थित है। उनके इस मकसद के पीछे की प्रेरणा उनके पिता है, जिनका निधन 2016 में हुआ। अपने पिता के निधन के बाद उन्होंने अपने पिता से कनेक्शन बनाए रखने के लिए यात्रा शुरू की। इस दौरान उन्हें कोमिका गांव के बारे में पता चला और यहां के बच्चों को शिक्षित करने के लिए उन्होंने बोर्डिंग स्कूल की स्थापना की। यहां बच्चों के खान-पान, टीवी और बाकी घर जैसी कई सारी सुविधाएं दी जाती हैं। अपने इस हौसले से पोर्टिया पुताटुंडा ने मातृत्व का परिचय दिया है।