कल्पना चावला के बाद नासा से जुड़ी भारतीय मूल की दूसरी महिला सुनीता विलियम्स अपने साथी यात्री बुच विल्मोर के साथ पिछले छह महीनों से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर रह रही हैं। गौरतलब है कि एक महिला अंतरिक्ष यात्री के तौर पर पिछले 190 दिनों से अंतरिक्ष में रह रही सुनीता विलियम्स ने एक विश्व कीर्तिमान स्थापित कर लिया है। आइए जानते हैं उनसे और उनके मिशन से जुड़ी खास बातें।
7 दिन की अंतरिक्ष यात्रा बनीं 9 महीनों की
पिछले छह महीनों से अपने साथी के साथ अंतरिक्ष की यात्रा पर निकली सुनीता विलियम्स बोईंग के नए स्टारलाइनर क्रू कैप्सूल को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक ले जानेवाली पहली महिला भी बन चुकी हैं। इसी वर्ष 5 जून को शुरू हुई उनकी यह यात्रा पहले 7 दिन की थी, लेकिन कैप्सूल के इंजन में खराबी होने के कारण नासा ने कैप्सूल के साथ उनकी वापसी यात्रा को खारिज कर दिया। हालांकि सितंबर में उन्होंने स्टारलाइनर कैप्सूल में आई तकनीकी खराबी को ठीक करके वापस कर दिया था, लेकिन उसके बाद नासा ने सुनीता विलियम्स को स्पेसएक्स की नई जिम्मेदारी सौंपते हुए उन्हें उस मिशन का कमांडर घोषित कर दिया। फिलहाल अगले वर्ष फरवरी के अंत तक इस मिशन के पूरा होने की संभावना है। इस मिशन के पूरा होते ही सुनीता विलियम्स अपने साथी के साथ पृथ्वी पर लौट आएंगी।
स्पेस में भी फिटनेस का रखती हैं पूरा ख्याल
अपनी अंतरिक्ष यात्रा को मजेदार बताते हुए सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में भी अपनी फिटनेस का पूरा ख्याल रख रही हैं। हालांकि हाल ही में आई स्पेस से उनकी एक तस्वीर को देखकर लोग उन्हें शारीरिक रूप से कमजोर कह रहे थे, लेकिन सुनीता विलियम्स का कहना है कि जब आप स्पेस में लंबे समय तक रहते हैं, तो आपका वजन पृथ्वी की अपेक्षा कम हो ही जाता है क्योंकि स्पेस में पृथ्वी की अपेक्षा दुगुनी कैलोरी उन्हें लेनी होती हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2007 के बोस्टन मैराथन में भाग ले चुकीं सुनीता विलियम्स ने पिछले वर्ष ही केप कॉड की 7 मील फालमाउथ रोड रेस में भी भाग लिया था। हालांकि स्पेस स्टेशन में अपना समय बेहद खूबसूरती से गुजार रही सुनीता विलियम्स को अपने घर की भी याद आ रही है। विशेष रूप से अपनी दोनों बेटियों और उनके कॉलेज में होनेवाले थियेटर प्रोग्राम्स को वे बेहद मिस कर रही हैं।
सुनीता विलियम्स का प्रारंभिक जीवन
61 वर्षीय सुनीता विलियम्स मूल रूप से भारत के गुजरात के अहमदाबाद से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता दीपक पांड्या जहां गुजराती थे, वहीं उनकी मां बॉनी जालोकर, स्लोवेनिया की थीं। बॉनी से उनकी मुलाकात पढ़ाई के दौरान हुई थी, जब वे अमेरिका में थे। हालांकि बॉनी से शादी के बाद पेशे से डॉक्टर रहे दीपक पांड्या ने अपनी पहली बेटी डायना के पैदा होते ही वर्ष 1958 में अपने होम टाउन अहमदाबाद को हमेशा के लिए छोड़ दिया और बोस्टन में आकर बस गए। डायना के बाद उनके बेटे जय और सुनीता का जन्म यहीं हुआ। हालांकि अपने भरे-पूरे परिवार को दीपक पांड्या छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन बेहतर भविष्य की तलाश में उन्हें अहमदाबाद छोड़कर अमेरिका आकर बसना पड़ा, जहां 19 सितंबर 1965 को सुनीता विलियम्स का जन्म हुआ। यहां मैसाचुसेट्स से हाई स्कूल पास करने के बाद सुनीता विलियम्स ने 1987 में नौसेनिक एकेडमी से फिजिकल साइंस में ग्रेजुएशन करने के बाद फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएशन किया था।
स्पेस ट्रैवलिंग प्रोग्राम से जीवन में आया टर्निंग पॉइंट
वर्ष 1995 में फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद सुनीता विलियम्स के जीवन में टर्निंग पॉइंट तब आया, जब वर्ष 1998 में उन्होंने नासा की तरफ से ऑर्गनाइज किए गए एक स्पेस ट्रैवलिंग प्रोग्राम में उन्होंने हिस्सा लिया। लगभग 8 वर्षों तक स्पेस में जाने की ट्रेनिंग कर रही सुनीता विलियम्स ने आखिरकार 9 दिसंबर 2006 को अपनी पहली अंतरिक्ष उड़ान भरी और 11 दिसंबर को अपने साथी सदस्यों के साथ इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंच गईं। इस मिशन में सुनीता विलियम्स ने फ्लाइट इंजीनियर के रूप में काम किया था। हालांकि अपने इस पहले मिशन में ही सुनीता विलियम्स ने 29 घंटे और 17 मिनट में चार बार स्पेस में चहलकदमी करते हुए बतौर महिला एक विश्व रिकॉर्ड बनाया था। फिलहाल 30 अलग-अलग स्पेस शटल के जरिए वे 2770 उड़ानें भर चुकी हैं।
दिल से खुद को भारतीय मानती हैं
भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स का जन्म भले ही भारत में नहीं हुआ है, लेकिन दिल से वे स्वयं को भारतीय ही मानती हैं। उनका हमेशा से ही भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता से लगाव रहा है। इसके साथ ही अपने पिछले दोनों मिशन के बाद वर्ष 2007 और 2013 में वे न सिर्फ भारत आई थीं, बल्कि अपने गांव भी गई थीं। इसी के मद्देनजर 2008 में भारत सरकार ने उन्हें साइंस एंड टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित भी किया था। पद्मभूषण के अलावा उन्हें रूस की तरफ से मेडल ऑफ मेरिट इन स्पेस एक्सप्लोरेशन और स्लोवेनिया की तरफ से गोल्डन ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया है। इन सम्मानों के साथ उन्हें नेवी कमेंडेशन मेडल, नेवी एंड मरीन कॉर्प एचीवमेंट मेडल, ह्यूमेनेटेरियन सर्विस मेडल और नासा की तरफ से स्पेसफ्लाइट मेडल से भी सम्मानित किया जा चुका है।