‘’इसका सौ गज हिस्सा सुई की आंख से होकर गुजरता है, इसकी बनावट इतनी लाजवाब है, फिर भी स्टील की सुई की नोक इसे आसानी से छेद सकती है।’’ मलमल की खूबसूरी को बयां करते ये शब्द हैं, लोकप्रिय सूफी कवि अमीर खुसरो के। आइए जानते हैं मलमल के बारे में विस्तार से।
मलमल की विशेषता
बुने हुए बारीक कपास यानी कि मलमल का इतिहास काफी पुराना है। बंगाली बुनकरों द्वारा इसकी बुनाई से लेकर पॉप कल्चर में शामिल होने तक मलमल ने एक बहुत लंबा सफर तय किया है। मलमल, जिसे मस्लिन भी कहते हैं इसका जन्म भारत का हिस्सा रहे बांग्लादेश के ढाकेश्वरी गांव से हुई थी। गौरतलब है कि ‘बुनी हुई हवा’ के रूप में अपनी पहचान रखनेवाले मलमल ने स्वदेशी आंदोलन में अपनी प्रतिष्ठित भूमिका निभाई थी। सिर्फ यही नहीं खादी के साथ इसे भी ‘फ्रीडम फैब्रिक’ का नाम दिया गया था। मलमल की विशेषता ये है कि नाजुक होने के बावजूद यह काफी मजबूत होता है। सामान्य कपास की तुलना में इसके रेशे लंबे और रेशमी होते हैं। इसके अलावा यह फैब्रिक हाइपोएलर्जेनिक है, जो शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। उदाहरण स्वरूप दिन के दौरान ठंडा और रात में आरामदायक होता है मलमल। इसके अलावा, नमी को एब्जॉर्ब करके पहननेवाले को ठंडक प्रदान करता है मलमल। यही वजह है कि गर्मियों के लिए यह सबसे अच्छा फैब्रिक है।
पर्यावरण प्रेमी है मलमल
मलमल 100 प्रतिशत पौधों से बना बायोडिग्रेडेबल फैब्रिक है, जो पर्यावरण को दूषित नहीं करता। आज के आधुनिक युग में जहां हर रोज फैशन बदलते रहते हैं, वहां मलमल आज भी अपनी गुणवत्ता के साथ आवश्यक भूमिका निभा रहा है। कहने को मलमल सामान्य बुनाई से बना एक सूती कपड़ा है, लेकिन ये बंगाली बुनकरों के गौरवशाली अतीत की प्रामाणिकता को प्रतिबिंबित करता है। सावधानी से चुने गए कपास की शुद्धता, कपड़े में काते गए हर धागे को जीवंत कर देता है। लगातार बदलती दुनिया में मलमल अपनी शाश्वतता के साथ न सिर्फ टिका हुआ है, बल्कि गॉसमर और जटिल कारीगरी का खजाना भी है। मलमल के कारोबार को बढ़ावा दे रही कई कंपनियां और संस्थान वैश्विक बाजार के साथ स्थानीय परिवारों को भी सशक्त बनाने में जुटी हुई हैं।
मलमल के प्रकार और उनका रखरखाव
कभी बुनकरों की पहचान रहे मलमल का उत्पादन आज मशीनों से भारी मात्रा में किया जा रहा है। इनमें धुंध, मुल, स्विस मलमल और कैनवास, मलमल के चार प्रमुख प्रकार हैं। धुंध, आमतौर पर मलमल का एक पारदर्शी कपड़ा होता है, जिसका उपयोग चोटों के ड्रेसिंग उपचार में किया जाता है। मुल, नाजुक और हल्का फैब्रिक है, जिसे मलमल के सूती कपड़ों और विस्कस फैब्रिक के साथ मिलाकर बनाया जाता है। मुल का इस्तेमाल मुख्य रूप से किसी ड्रेस को अतिरिक्त वजन और आकार देने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, स्विस मलमल का पकड़ा मुलायम और कोमल होता है, जिनका उपयोग गर्मियों में किया जाता है। मलमल के चौथे प्रकार कैनवास का इस्तेमाल पेंटिंग बनाने के साथ घरेलू सामान और सहायक उपकरण बनाने में होता है, क्योंकि इसकी शीटिंग काफी मोटी और खुरदरी होती है। मलमल के नाजुक कपड़ों को धोते समय उन्हें हल्के वॉशिंग पाउडर के साथ हल्के हाथों से और ठंडे पानी से धोएं। उन्हें सुखाने की गरज से उनसे अतिरिक्त पानी निकालने के लिए कपड़ों को निचोड़ने की बजाय, उन्हें धोकर लटका दें या सीधा फैला दें। सूखने के बाद आप चाहें तो उन पर हल्की इस्त्री भी कर सकती हैं, लेकिन थोड़ा ध्यान से।
मलमल का इतिहास
आपको जानकर हैरानी होगी कि आज दुनिया के हर हिस्से में पाया जानेवाला मलमल कभी सिर्फ भारतीय राजपरिवार के लिए ही उपलब्ध हुआ करता था। सदियों से बंगाली बुनकरों की पहचान रही मलमल अपनी यात्रा करते हुए भारत से यूरोप और यूरोप से स्कॉटलैंड पहुंचा। लेकिन क्या आप जानती हैं, यह बंगाल के बुनकरों तक कैसे पहुंचा? दरअसल मसलिन नाम से दुनिया भर में फेमस मलमल को मसलिन नाम इराक के शहर ‘मोसुल’ से मिला था। 1298 में लिखी गई मार्को पोलो की पुस्तक ‘द ट्रैवल्स’ के अनुसार यूरोपीय लोगों का सामना जब पहली बार मलमल से हुआ तो, वे इसके मुरीद हो गए थे। हालांकि यूरोप में मलमल की व्यावसायिक शुरुआत 1000 वर्ष पहले की मानी जाती है, लेकिन हाई क्वालिटी के मलमल का निर्माण मुगल शासन के दौरान हुआ। उस दौरान मुगल बंगाल हाई क्वालिटी के मलमल का सबसे बड़ा निर्यातक था और ढाका, विश्व भर में मलमल व्यापार की राजधानी हुआ करता था।
मलमल के प्रति हिंसात्मक क्रूरता
मुगल शासन के दौरान फला-फूला मलमल का व्यापार, ब्रिटिश राज में आक्रामक रूप से दबा दिया गया था। माना जाता है कि यूरोप में औद्योगिक रूप से मशीनों के जरिए बना मलमल, भारतीय बुनकरों द्वारा बने मलमल का मुकाबला नहीं कर पा रहा था, इसे देखते हुए क्रुद्ध अंग्रेज सरकार ने स्थानीय बुनकरों के अंगूठों को काटकर उनके हाथ विकृत कर दिए थे, जिससे उच्च गुणवत्ता के मलमल का ज्ञान और उत्पादन दोनों खत्म हो जाए। इसके कारण लगभग दो शताब्दियों तक इस बारीक बुनाई के उत्पादन में भारी गिरावट आई, लेकिन बांग्लादेश और भारतीय लोगों के प्रयासों से इसे पुन: निर्मित किया गया। हालांकि व्यापक रूप से मिल रहा मलमल, अब दाम और गुणवत्ता, दोनों ही मामलों में उस मलमल का मुकाबला नहीं कर सकता, जो पहले मिला करता था। फिर भी मलमल का समृद्ध इतिहास आज भी जिंदा है और सदियों पहले के बंगाली बुनकरों की मेहनत और उनकी गरिमा को अपने तेज से प्रकाशित कर रहा है।