घर के काम-काज से लेकर कृषि क्षेत्र और अब उद्यमी बनकर कई ग्रामीण महिलाएं, न सिर्फ समाज का नेतृत्व कर रही हैं, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा भी बन रही हैं। आइए जानते हैं ऐसी ही ग्रामीण महिला उद्यमियों के बारे में।
‘मशरूम लेडी’ बीना देवी ने संवारी 1500 महिलाओं की जिंदगी
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आम तौर पर अपने परिवार के अलावा घर-बाहर की सारी जिम्मेदारियां निभाने के बावजूद महिलाओं का नाम गुमनाम ही रह जाता है, लेकिन कुछ ग्रामीण उद्यमी महिलाओं ने रूढ़िवादिता को तोड़ते हुए समृद्धि का रास्ता अपनाकर न सिर्फ अपने समाज और गांव, बल्कि पूरे देश में ख्याति बटोरी है। एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 20.5% भारतीय महिलाएं जहां मालिक हैं, वहीं 18.73% महिलाएं श्रमिक और 10.22% देश की जीडीपी में योगदान दे रही है। हालांकि इन महिला उद्यमियों में पहला नाम है ‘मशरूम लेडी’ के तौर पर मशहूर बीना देवी का। बिहार के मुंगेर की 46 वर्षीय बीना देवी ने घर, बच्चों और परिवार की घरेलू जिम्मेदारियों के बीच रहकर न सिर्फ मशरूम की खेती करनी सीखी, बल्कि इस क्षेत्र में महारत भी हासिल की। दिलचस्प बात यह है कि जगह की कमी के कारण बीना देवी ने मशरूम का पहला बैच अपने बेड के नीचे उगाया था, जिस पर वे सोती थीं। हालांकि एक बार इसमें महारत हासिल करने के बाद उन्होंने न सिर्फ अपने गांव, बल्कि अपने आस-पास के 105 गांवों की 1500 महिलाओं को प्रेरित करते हुए मशरूम की खेती करना सिखाया। आज मुंगेर के साथ पूरे बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश में ‘मशरूम लेडी’ के रूप में पहचानी जानेवाली बीना देवी मिसाल बन चुकी हैं। उनके इस योगदान को देखते हुए वर्ष 2020 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने उन्हें कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए नारी शक्ति सम्मान से सम्मानित किया था।
कच्छ, गुजरात की पाबिबेन रबाड़ी बन चुकी हैं मिसाल
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स्टार कढ़ाई शिल्पकार की कहानियां आपने काफी सुनी होंगी, किंतु गुजरात के कच्छ की पाबिबेन रबाड़ी की बात ही कुछ और है। ग्रामीण महिला उद्यमियों की सफलता को आगे बढ़ाते हुए अपनी कलाकारी से पाबिबेन रबाड़ी ने न सिर्फ राष्ट्रीय, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय फैशन जगत में भी धूम मचा रखी है। गौरतलब है कि ट्रिम्स, रिबन, हाथ और मशीन टांकों का उपयोग करते हुए पाबिबेन रबाड़ी ने ‘हरी जरी’ नामक एक नई कढ़ाई कला की खोज की है, जिसे काफी सराहा जा रहा है। इस कढ़ाई का उपयोग करते हुए उन्होंने पाबी बैग नामक शॉपिंग बैग की श्रृंखला भी शुरू की है, जिसे बॉलीवुड के साथ हॉलीवुड फिल्मों में भी इस्तेमाल किया गया है। कच्छ क्षेत्र के अंजार तालुका के एक छोटे से भदरोई गांव की पाबिबेन रबाड़ी अपने हाथों से बने टिकाऊ बैग से जहां लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं, वहीं 2 करोड़ की सालाना इनकम के साथ वे कई लोगों को आश्चर्यचकित भी कर रही हैं।
अपने हौंसलों से अपना व्यवसाय शुरू करनेवाली कनिका तालुकर
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अपनी राख से उठकर उड़ान भरने का हौंसला जिसने कर लिया, समझो उसने इतिहास रच दिया। कुछ ऐसा ही हौंसला दिखाया असम के नलबाड़ी की 27 वर्षीय कनिका तालुकर ने। मात्र 4 महीने की बेटी के साथ कनिका को अकेला छोड़कर जब कनिका के पति की मृत्यु हो गई, तो उन्हें लगा जैसे अब सब खत्म हो गया। फिर भी बेटी के लिए उन्होंने इस त्रासदी को मुंह चिढ़ाते हुए आगे बढ़ने का फैंसला किया। इसके लिए उन्होंने न सिर्फ अपने क्षेत्र में वर्मी कम्पोस्ट बनाना सीखा, बल्कि सिर्फ 500 रूपये और 1 किलो केंचुए के साथ जय वर्मी कम्पोस्ट नामक खुद का छोटा सा खाद व्यवसाय शुरू किया। गौरतलब है कि आज ऑर्गैनिक वर्मी कम्पोस्ट के तौर पर लोकप्रिय हो चुके इस खाद की शुरुआत उन्होंने अपने आस-पास की बेसिक चीजों, जैसे धान के बचे टुकड़े, जलकुंभी के तने, गाय के गोबर और बांस के गड्ढों का उपयोग करते हुए किया था। आज देश के टॉप ऑनलाइन वेबसाइट्स पर अपने जय वर्मीकम्पोस्ट को बेचकर जाना पहचाना नाम बन चुकीं कनिका तालुकर सालाना 50 लाख रूपये कमा रही हैं।
महिलाओं के साथ किसानों की जिंदगी बदल रही हैं टैगे रीता
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देश की अर्थव्यवस्था के साथ अपने आस-पास की ग्रामीण महिलाओं को भी उद्यमिता के मायने सिखाती इन महिलाओं में अगला नाम अरुणाचल प्रदेश की टैगे रीता का है, जो नारा आबा नामक ऑर्गैनिक वाइनरी बनाकर अपनी घाटी की समस्या हल कर रही हैं। पेशे से कृषि इंजीनियर टैगे रीता का जन्म अरुणाचल प्रदेश के जीरो घाटी में हुआ है, जहां कीवी फल की पैदावार बहुत बड़ी मात्रा में होती है। वर्ष 2016 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 2017 में उन्होंने नारा आबा की शुरुआत की, जिसके अंतर्गत पारंपरिक तरीके से ऑर्गैनिक फलों से वाइन बनाई जाती है। फिलहाल जीरो घाटी में कीवी की पैदावार को देखते हुए टैगे रीता ने कीवी फलों से ऑर्गैनिक वाइन बनाने का फैसला किया, जो भारत की पहली कीवी वाइन बनानेवाली कंपनी है। इसके जरिए पहले वर्ष में ही उन्होंने कीवी का उत्पादन करनेवाले 300 किसानों की जिंदगी बदल दी थी। फिलहाल यह संख्या अब हजारों में पहुंच चुकी है। कृषि के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें युनाइटेड नेशन और निति आयोग की तरफ से वर्ष 2018 में वीमेन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अवार्ड्स और वर्ष 2020 में नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।