एडवांस मेडिकल फैसिलिटीज के बावजूद, प्रेग्नेंसी और चाइल्ड बर्थ के दौरान हर दिन 800 महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। विशेष रूप से कोविड-19 के बाद से, महिलाओं और लड़कियों को नई स्वास्थ्य चुनौतियों और संकटों का सामना करना पड़ रहा है। आइए डॉक्टर सुमन पॉल से जानते हैं इससे जुड़ी सारी बातें।
चाइल्ड बर्थ के दौरान महिलाओं की मृत्यु की प्रमुख वजहें

बीते कुछ वर्षों में प्रेग्नेंसी के साथ चाइल्ड बर्थ और पोस्टपार्टम पीरियड के दौरान महिलाओं की मृत्यु में काफी बढ़ोत्तरी हुई है और इसके कई कारण हैं। इनमें विशेष रूप से चाइल्ड बर्थ के दौरान और उसके बाद भी ब्लीडिंग, हायपर टेंशन और उसके कारण हुई प्रीक्लेम्पसिया और एक्लेम्पसिया जैसी परेशानियां, यूट्रस, ब्लैडर और किडनी में हुई इंफेक्शन के कारण सेप्सिस, लंबे समय तक जारी लेबर पेन और एबॉर्शन कॉम्प्लीकेशंस शामिल है। यह वाकई दुर्भाग्य की बात है कि मेडिकल साइंस की इतनी तरक्की के बावजूद प्रेग्नेंसी के साथ चाइल्ड बर्थ के दौरान महिलाएं इन समस्याओं का सामना करते हुए अपनी जान से भी हाथ धो बैठती हैं। हालांकि मृत्यु के अलावा कुछ ऐसी गंभीर बीमारियां भी हैं, जिनका शिकार वे आम तौर पर इस दौरान हो जाती हैं।
हाई ब्लड प्रेशर के साथ एक्सेसिव ब्लीडिंग
प्रेग्नेंसी और चाइल्ड बर्थ के दौरान महिलाओं में हाई ब्लड प्रेशर आम बात हो चुकी है, जिसके कारण वे प्रीक्लेम्पसिया और एक्लेम्पसिया जैसी परेशानियों का शिकार हो जाती हैं। इसके अलावा अब प्रेग्नेंसी रिस्क में गेस्टेशनल डायबिटीज भी शामिल हो चुका है, जिसके अंतर्गत आम तौर पर ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है और कॉम्प्लीकेशंस बढ़ जाते हैं। कॉम्प्लीकेशंस में एक नाम प्लेसेंटा प्रिविया का भी है, जिसमें आम तौर पर प्लेसेंटा, सर्विक्स एरिया को पूरी तरह ढंक देता है और ये वजह बनती है एक्सेसिव ब्लीडिंग की। हालांकि एक्सेसिव ब्लीडिंग की कॉम्प्लीकेशन में प्लेसेंटल एब्रप्शन भी शामिल है, जिसमें प्लेसेंटा, सर्विक्स एरिया से पूरी तरह अलग हो जाता है। कई बार चाइल्ड बर्थ के दौरान ही यूट्रस फट जाता है और इससे भी एक्सेसिव ब्लीडिंग होने लगती है। एक्सेसिव ब्लीडिंग की इन कॉम्प्लीकेशंस के कारण अक्सर महिलाएं या तो अपनी जान से हाथ धो बैठती हैं, या फिर किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो जाती हैं।
18 घंटों से अधिक लेबर पेन और पोस्टपार्टम डिप्रेशन

चाइल्ड बर्थ के दौरान मृत्यु का शिकार होनेवाली महिलाओं में ब्लीडिंग के साथ-साथ लेबर पेन भी एक समस्या है। इसके मुताबिक जिन महिलाओं को 18 घंटों से अधिक लेबर पेन की शिकायत होती है, उन्हें दर्द के साथ अन्य परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है, जिनमें छोटे पेल्विस एरिया से बड़े बच्चे का बाहर आना भी एक समस्या होती है। इसमें दो राय नहीं है कि प्रेग्नेंसी के दौरान और चाइल्ड बर्थ के समय महिलाएं, कई परेशानियों से गुजरती है, जिसके कारण कई बार उनकी जान पर भी बन आती है। हालांकि कुछ महिलाओं के लिए समस्याएं यहीं नहीं रूकती, बल्कि उन्हें बच्चे के जन्म के बाद पोस्टपार्टम कॉम्प्लीकेशंस से भी गुजरना पड़ता है। इसके अंतर्गत कुछ महिलाओं को प्रसव के बाद एंडोमेट्राइटिस या सेप्सिस जैसे इंफेक्शंस हो जाते हैं, जो उनकी सही देखभाल न होने का इशारा होते हैं। पोस्टपार्टम कॉम्प्लीकेशंस में पोस्टपार्टम डिप्रेशन, महिलाओं में बेहद आम बात है। अचानक बच्चे के साथ आई एक नई जिम्मेदारी, उनके मानसिक स्वास्थ्य को बिगाड़ देती है और वे डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं। कुछ महिलाओं में चाइल्ड बर्थ के बाद थायरॉइड की समस्या बढ़ जाती है, जिसके कारण लगातार उनका वजन कम होने लगता है और वे थकान का शिकार हो जाती हैं।
खतरनाक है खुशिययों में भी खालीपन का एहसास
इस सिलसिले में सविता तेली बताती हैं, ‘मैं जब पहली बार मां बनी थी, तो मेरे लिए यह बेहद खूबसूरत और नया एहसास था, लेकिन कुछ दिनों में ही मेरी यह सारी खुशियां जैसे खत्म हो गई। हालांकि उस दौरान मैं अपनी मम्मी के घर थी, जहां मेरी और बच्चे की पूरी जिम्मेदारी मेरी मां ने उठा रखी थी, लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या चीज है, जो मुझे लगातार खालीपन का एहसास दे रही है। सच कहूं तो उस दौरान बच्चे को दूध पिलाना भी मुझे बहुत बड़ा काम लगता था। कई बार बिना बात के मुझे रोना आ जाता था। मेरे हस्बैंड मुझसे मिलने आते तो मैं उनसे भी बात नहीं करती थी, बल्कि गुमसुम लेटी रहती थी। मेरे इस व्यवहार से मेरे घरवाले भी परेशान थे, लेकिन जब मुझे चेक-अप के लिए डॉक्टर के पास ले जाया गया और मेरी मां ने उन्हें मेरी परेशानियां बताईं, तब मेरी डॉक्टर ने बताया कि मैं पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार हूं। मेरी मां के लिए यह बिल्कुल नया टर्म था, लेकिन मैं और मेरे हस्बैंड इस चीज से वाकिफ थे। इस विषय में उन्होंने मेरी मां को बताया और दोनों ने मिलकर मुझे उस डिप्रेशन से बाहर निकाला। वाकई वो दौर मेरे लिए काफी खतरनाक था, जिसे याद कर मैं आज भी परेशान हो जाती हूं।”
चाइल्ड बर्थ कॉम्प्लीकेशंस की अन्य वजहें

गौरतलब है कि 20 वर्ष से कम या 35 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में प्रेग्नेंसी और चाइल्ड बर्थ के दौरान मृत्यु दर का जोखिम अधिक होता है। हालांकि इन जोखिमों में चाइल्ड बर्थ कॉम्प्लीकेशंस के अलावा और भी कई कारण हैं, जिनमें प्रेग्नेंट महिलाओं में कुपोषण, गरीबी, शिक्षा की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के साथ कुछ सांस्कृतिक और पारंपरिक प्रथाएं भी जिम्मेदार हैं।